हम सभी जानते हैं कि ईश्वर निराकार भी है और साकार भी। परंतु निराकार की उपासना हर किसी के लिए सहज नहीं होती। यही कारण है कि सनातन धर्म में आदिशक्ति को निराकार मानने के साथ-साथ महालक्ष्मी के रूप में साकार रूप में भी पूजा जाता है।
आदिशक्ति और त्रिदेव
सृष्टि के संचालन के लिए ब्रह्मा को सृजन, विष्णु को पालन और शिव को संहार का कार्य मिला है। लेकिन इन सबके पीछे जो मूल प्रेरणा और शक्ति है, वह है आदिशक्ति – महालक्ष्मी।
यही शक्ति सभी देवताओं के कार्यों की आधारभूत ऊर्जा है। सरल शब्दों में कहें तो देवता शरीर हैं, तो महालक्ष्मी उनकी प्राणशक्ति।
विराट स्वरूप का दर्शन
पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार हिमालय की प्रार्थना पर महालक्ष्मी ने अपना विराट स्वरूप प्रकट किया।
स्वर्ग उनका मस्तक बना।
सूर्य और चंद्रमा उनके नेत्र।
संपूर्ण ब्रह्मांड उनका हृदय।
पृथ्वी उनकी जंघाएँ।
दिशाएँ उनके कान और पवन उनकी श्वास।
अग्नि उनका मुख और दिन-रात उनकी पलकें।
यह रूप इतना विराट और अनंत था कि शेषनाग भी अपने हजार मुखों से उसका पूरा वर्णन नहीं कर सके।
सगुण और निर्गुण का रहस्य
महालक्ष्मी साकार भी हैं और निराकार भी। वे प्रकाशरूपा हैं – यानी अपने स्वयं के तेज से प्रकट। उनका प्रकाश किसी और से लिया हुआ नहीं, बल्कि सभी को दिया हुआ है। दया, करुणा, श्रद्धा, भक्ति, शांति, तृप्ति – ये सब उन्हीं की शक्तियों के छोटे-छोटे अंश हैं।
शक्ति का महत्व
भगवान शिव ने स्वयं कहा –
"हे शक्ति! तुम्हारे बिना मैं शव हूँ। तुम्हारे साथ ही मैं शिव हूँ।"
अर्थात शक्ति के बिना ईश्वर भी निष्क्रिय हैं।
इसी तरह भगवान विष्णु को भी पालनकर्ता कहने का कारण उनकी अर्धांगिनी लक्ष्मी ही हैं। लक्ष्मी के बिना वे विष्णु नहीं, केवल एक अस्तित्व भर रह जाते।
महालक्ष्मी के विविध स्वरूप
महालक्ष्मी ही पंच महाशक्ति, दस महाविद्या, नवदुर्गा, अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, सरस्वती, काली, गौरी आदि रूपों में पूजित होती हैं। भक्त के लिए वे स्त्री या पुरुष नहीं – बल्कि परब्रह्म की चेतना हैं।
शक्ति ही आधार है
वेद और पुराणों ने स्पष्ट कहा है – "प्रकृति, माया और शक्ति ही सृष्टि का आधार है।"
देवताओं की सामर्थ्य उनकी अपनी नहीं, बल्कि उस एक शक्ति से प्राप्त है।
जैसे शिव शब्द से यदि "इ" निकाल दिया जाए तो वह "शव" रह जाता है। यानी शक्ति के बिना शिव भी निश्चेष्ट।
निष्कर्ष
चाहे हम निराकार ब्रह्म की साधना करें या साकार महालक्ष्मी की आराधना, अंततः उपासना उसी परमशक्ति की होती है। यही हिंदू धर्म की सुंदरता है कि यहाँ हमें दोनों ही मार्ग खुले हुए हैं – ध्यान और मूर्तिपूजा।
महालक्ष्मी केवल धन की अधिष्ठात्री नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आधारशिला हैं। वही साकार रूप में भी ब्रह्म हैं और निराकार सत्ता में भी।
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