यम-दीपदान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (१३) की रात्रि में किया जाने वाला एक पवित्र और शुभ संस्कार है। इसे करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और असामयिक मृत्यु तथा आकस्मिक आपदाओं से रक्षा मिलती है। इस अनुष्ठान का वर्णन पुरुषार्थ चिन्तामणि और स्मृतिकौस्तुभ के साथ-साथ स्कंदपुराण में भी किया गया है।
यम-दीपदान करने की विधि
१. दीपक तैयार करना
सबसे पहले मिट्टी के दीपकों को लें और उनमें तिल तेल भरें। नई रूई की बत्ती लगाएँ और दीपकों को प्रज्वलित करें।
२. पूजन और आह्वान
दीपकों को जलाकर उनके चारों ओर गंध और अन्य पूजन सामग्री के साथ पूजन करें। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का उच्चारण करें:
"मृत्युना दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ॥"
इस मंत्र के साथ दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और मृत्यु के भय से रक्षा होती है।
३. समय और शुभ मुहूर्त
यह अनुष्ठान त्रयोदशी के प्रदोषकाल में किया जाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि त्रयोदशी दो दिन तक हो या किसी कारणवश न हो, तो दूसरे दिन भी यह दीपदान किया जा सकता है।
यम-दीपदान का महत्व
यम-दीपदान न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि यह परिवार और घर में सुख, शांति और दीर्घायु का संकेत भी माना जाता है। इस दिन किये गए दीपदान से यमराज प्रसन्न होते हैं और जीवन में आकस्मिक संकटों से सुरक्षा मिलती है।
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