Thursday, July 10, 2025

बुध की वक्री चाल 2025: कैसे बनाएं इस समय को सहज और संतुलित

 18 जुलाई से 11 अगस्त 2025 के बीच बुध दूसरी बार वक्री (Retrograde) होगा, और यह संपूर्ण रूप से सिंह राशि में घटित होगा। बुध की प्रतिगामी चाल अक्सर भ्रम, संचार में बाधाएं, और यात्रा संबंधी व्यवधानों का समय मानी जाती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम इस खगोलीय परिवर्तन को समझें और उसके अनुसार अपनी दिनचर्या में कुछ परिवर्तन करें।


🌠 बुध वक्री क्यों मायने रखता है?

बुध ग्रह बुद्धि, संवाद, तकनीक, व्यापार और यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है। जब यह ग्रह प्रतिगामी गति में आता है, तो इन सभी क्षेत्रों में असमंजस, देरी और रुकावटों की संभावना बढ़ जाती है। सिंह राशि में वक्री बुध खासतौर पर आत्म-अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और नेतृत्व से जुड़े क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।

🌀 इस वक्री अवधि के संभावित प्रभाव

1. संचार में बाधा और गलतफहमियां

बुध के वक्री होने पर अक्सर ऐसा देखा गया है कि लोग एक-दूसरे की बातों को ठीक से नहीं समझ पाते, जिससे अनावश्यक विवाद या भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। टेक्स्ट मैसेज, ईमेल या मौखिक बातचीत – किसी भी माध्यम से होने वाला संवाद अस्पष्ट हो सकता है।

2. यात्रा और तकनीकी समस्याएं

इस दौरान यात्रा की योजनाएं अचानक बदल सकती हैं या तकनीकी उपकरणों में गड़बड़ियाँ आ सकती हैं। फोन, लैपटॉप या इंटरनेट से जुड़ी समस्याएं आम हो सकती हैं।

3. निर्णय लेने में असमर्थता

इस समय लिया गया कोई बड़ा फैसला बाद में पछतावे का कारण बन सकता है। इसलिए, नए समझौते, सौदे, नौकरी बदलने या वित्तीय निवेश से जुड़ी योजनाओं को थोड़े समय के लिए टालना बेहतर हो सकता है।

✔ इस समय को कैसे करें सहज?

🔍 जानकारी की दोबारा जांच करें

किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे ध्यानपूर्वक पढ़ें। ईमेल भेजने या किसी जरूरी सूचना को साझा करने से पहले सुनिश्चित करें कि सारी जानकारी स्पष्ट है।

🗣 संवाद में सावधानी बरतें

स्पष्टता बनाए रखें। यदि कोई बात समझ में नहीं आए तो पूछने में हिचकिचाएं नहीं। यह समय किसी बात को लेकर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने का नहीं है।

🧳 योजनाओं में लचीलापन रखें

यदि आप यात्रा या कोई महत्वपूर्ण योजना बना रहे हैं, तो उसमें कुछ लचीलापन रखें। "प्लान बी" तैयार होना इस समय बहुत फायदेमंद रहेगा।

🔮 सिंह राशि पर विशेष प्रभाव

चूंकि यह प्रतिगामी काल पूरी तरह से सिंह राशि में हो रहा है, इसलिए उन लोगों को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए जिनकी कुंडली में सिंह लग्न या चंद्रमा है। यह समय आत्ममूल्यांकन का हो सकता है – अपने विचारों, रचनात्मकता और नेतृत्व के तरीकों पर फिर से सोचने का अवसर।

🧘‍♀️ क्या करें इस समय?

  • ध्यान और आत्मचिंतन करें

  • पुराने कार्यों को सुधारने का प्रयास करें

  • अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने पर ध्यान दें

  • धैर्य और संयम बनाए रखें

✨ निष्कर्ष

बुध की प्रतिगामी चाल डरने की नहीं, समझदारी से जीने की घड़ी है। यह समय हमें धीमा होने, सोचने, और फिर से संगठित होने का अवसर देता है। यदि हम सावधानी और सजगता के साथ इस समय का उपयोग करें, तो यह काल हमारी व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में स्थायित्व और गहराई ला सकता है। #बुध_की_वक्री_चाल #बुध_ग्रह #बुध_का_प्रभाव #बुध_दोष #बुध_गोचर #वक्री_बुध #BudhVakriChal #BudhTransit2025 #MercuryRetrograde #JyotishShastra #वैदिक_ज्योतिष #AstrologyHindi #grahonkikhaal #spiritualastrology #communicationblockages #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

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शनि की वक्री चाल: 13 जुलाई से जानिए किन राशियों को मिलेगा लाभ

 13 जुलाई 2025 को शनि ग्रह अपनी वक्री चाल में प्रवेश करेंगे, जो कुंभ राशि में सुबह 9:40 बजे से शुरू होगी। शनि की वक्री चाल एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, और यह 138 दिनों तक जारी रहेगी। शनि के वक्री होने का प्रभाव हमारे जीवन पर अलग-अलग तरीके से पड़ सकता है, और यह विशेष रूप से उन राशियों के लिए महत्वपूर्ण है जिनके जीवन में बदलाव आ सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि शनि की वक्री चाल का प्रभाव किन राशियों पर पड़ेगा और किसे इसका लाभ हो सकता है।


शनि की वक्री चाल का मतलब

शनि ग्रह की वक्री चाल का मतलब है कि यह ग्रह अपनी सामान्य गति के विपरीत चलने लगता है। जब शनि वक्री होते हैं, तो यह पुराने कर्मों, लेन-देन, और मुद्दों को फिर से सक्रिय करता है। शनि का यह प्रभाव व्यक्ति की जिम्मेदारियों और कड़ी मेहनत को लेकर ज्यादा जागरूकता लाता है। यह समय कुछ महत्वपूर्ण फैसले लेने और पुराने कार्यों को पूरा करने के लिए अनुकूल होता है। हालांकि, वक्री शनि से बचाव की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह ग्रह किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है।

शनि वक्री चाल का प्रभाव

शनि की वक्री चाल का प्रभाव अलग-अलग राशियों पर अलग-अलग रूप से पड़ेगा। कुछ राशियाँ इससे अधिक प्रभावित हो सकती हैं, जबकि कुछ को इसका सकारात्मक प्रभाव मिलेगा। अब हम जानते हैं कि कौन सी राशियाँ शनि के वक्री होने से लाभान्वित हो सकती हैं।

1. मकर राशि

मकर राशि के जातकों के लिए शनि का वक्री होना विशेष रूप से लाभकारी हो सकता है। शनि पहले से ही मकर राशि के स्वामी हैं, और जब वह वक्री होते हैं, तो यह उनके जीवन में कुछ पुराने कार्यों को निपटाने का समय होता है। करियर, पारिवारिक जीवन, और व्यक्तिगत विकास में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। पुराने कामों को फिर से देखना और उन्हें खत्म करना इस समय की आवश्यकता हो सकती है।

2. वृषभ राशि

वृषभ राशि के जातकों के लिए शनि का वक्री होना एक अच्छा समय साबित हो सकता है। शनि का वक्री होना वृषभ राशि के लिए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। इस समय आपकी मेहनत और समर्पण का फल मिल सकता है। शनि के वक्री होने से पुराने रिश्तों में सुधार हो सकता है और आप अपने परिवार या पेशेवर जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय ले सकते हैं।

3. तुला राशि

तुला राशि के लिए भी शनि की वक्री चाल लाभकारी हो सकती है। इस समय आपके जीवन में स्थिरता और शांति का अनुभव हो सकता है। शनि के वक्री होने से तुला राशि के जातकों को अपने करियर और वित्तीय स्थिति में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। पुराने अटके हुए काम अब गति पकड़ सकते हैं और आपके प्रयासों का फल मिल सकता है।

4. कुम्भ राशि

कुंभ राशि में शनि वक्री हो रहे हैं, तो यह आपके जीवन में कई बदलाव लेकर आ सकता है। आपकी सोच और दृष्टिकोण में परिवर्तन हो सकता है, जो आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। आपके विचार अब ज्यादा स्पष्ट हो सकते हैं और आप अपनी दिशा को सही तरीके से पहचान सकते हैं। पुराने मुद्दों का समाधान भी निकल सकता है।

शनि की वक्री चाल का समय

शनि की वक्री चाल 13 जुलाई से शुरू होकर 138 दिनों तक चलने वाली है, और इस अवधि में शनि की ऊर्जा काफी तीव्र हो सकती है। यह समय आत्म-विश्लेषण और आत्म-विकास के लिए उपयुक्त होगा। जो जातक अपने कर्मों और कार्यों पर ध्यान देंगे, उन्हें इस अवधि में अच्छा फल मिल सकता है। वहीं, जो जातक अपने पुराने कर्तव्यों को नजरअंदाज करेंगे, उनके लिए यह समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

निष्कर्ष

शनि का वक्री होना एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जिसका प्रभाव हमारी जिंदगी पर विभिन्न तरीकों से पड़ता है। यह समय पुराने कार्यों को निपटाने, आत्म-विश्लेषण करने, और जीवन में स्थिरता लाने के लिए उपयुक्त है। मकर, वृषभ, तुला, और कुंभ राशियों को इस वक्री चाल से विशेष लाभ हो सकता है। हालांकि, यह जरूरी है कि हम इस समय को सकारात्मक रूप से अपनाकर अपने कर्मों को सही दिशा में मार्गदर्शन दें। #शनि_की_वक्री_चाल #शनि_ग्रह #शनि_का_प्रभाव #शनि_दोष #शनि_साढ़ेसाती #वक्री_शनि #ShaniVakriChal #ShaniTransit2025 #JyotishShastra #वैदिक_ज्योतिष #AstrologyHindi #GrahoKiChal #spiritualblog #sawan2025 #कर्म_और_फल #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami For more information: www.benimadhavgoswami.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612

Thursday, July 03, 2025

श्री शिव शयनोत्सव: एक विशेष तिथि और उसका महत्व

 आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को जटाजूट की व्यवस्था के अनुसार भगवान शिव सिंह-चर्म के विस्तर पर शयन करते हैं। इसलिए, इस दिन से पहले की पूर्णिमा यानी पूर्वविद्धा पूर्णिमा में शिवपूजन कर रुद्रव्रत करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है। इसी प्रसंग से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण और विशेष पर्व है — शिव शयनोत्सव, जिसे हिन्दू धर्म में बड़े श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।

शिव शयनोत्सव का महत्व और तिथि

यह पर्व भगवान शिव के शयन की शुरुआत का प्रतीक है, जो चातुर्मास के दौरान होता है। इस दिन भगवान शिव योग निद्रा में प्रवेश करते हैं और सृष्टि के संचालन का कार्य अपने स्वरूप रुद्र को सौंप देते हैं। इस साल (2025) शिव शयनोत्सव 10 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन भक्तगण भगवान शिव की पूजा, ध्यान और साधना में लीन रहते हैं।


भगवान शिव का शयन और रुद्र को कार्यभार सौंपना

शिव शयनोत्सव चातुर्मास के चार महीने के पवित्र काल की शुरुआत करता है, जब भगवान शिव अपने योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान रुद्र, जो शिव का एक प्रबल रूप है, सृष्टि के प्रबंधन का कार्य संभालते हैं। यह समय भले ही भगवान शिव की प्रत्यक्ष उपस्थिति का अभाव हो, लेकिन रुद्र के रूप में उनकी दिव्य ऊर्जा और आशीर्वाद भक्तों तक पहुंचती रहती है।

अशुभ कार्यों से बचाव

शिव शयनोत्सव के दिन विशेष रूप से कुछ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है, जैसे कि दान या पारंपरिक पूजा करना शुभ नहीं माना जाता। यह दिन मुख्यतः साधना, ध्यान और आत्मिक शांति प्राप्ति के लिए समर्पित होता है।

रुद्र की पूजा और उसके लाभ

इस दिन रुद्र की पूजा का विशेष महत्व होता है। रुद्राष्टक, रुद्राभिषेक और अन्य रुद्र संहिताओं का पाठ करके व्यक्ति अपने जीवन से कष्ट, बाधाएं और विपत्तियां दूर कर सकता है। इस पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

निष्कर्ष

आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को शिवजी के सिंह-चर्म विस्तर पर शयन का महत्त्व एवं शिव शयनोत्सव का पर्व हमें आध्यात्मिक उन्नति, आत्मसाक्षात्कार और शांति की ओर प्रेरित करता है। यह दिन हमें भगवान शिव और उनके रूप रुद्र के प्रति भक्ति और संयम का पाठ पढ़ाता है।

इस साल 10 जुलाई को इस पावन अवसर पर भगवान शिव और रुद्र की पूजा करके, हम अपने जीवन को समृद्ध, शांत और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बना सकते हैं। शिव शयनोत्सव हमें यह स्मरण कराता है कि शांति, भक्ति और साधना के मार्ग पर चलकर हम अपने अंदर की शुद्धता और परम आनंद को प्राप्त कर सकते हैं। #शिव_शयनोत्सव #भगवानशिव #रुद्रपूजन #योगनिद्रा #चातुर्मास #शिवभक्ति #रुद्राभिषेक #शिवशक्ति #भोलेनाथ #हरहरमहादेव #शिवभक्त #शिवपूजा #महादेव #शिवरात्रि #शिव_शक्ति #शिव_की_महिमा #शिव_अनंत #शिव_शांति_साधना #भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

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गुरु पूर्णिमा 2025: श्रद्धा, परंपरा और व्यास पूजन की दिव्यता

 गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत ही नहीं, नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक ऐसा दिन है जो हमें जीवन के सच्चे पथप्रदर्शकों—गुरुओं—के योगदान को भावपूर्वक याद करने और उनका आभार व्यक्त करने का अवसर देता है।

इस बार गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 10 जुलाई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा, जो हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि है। इसी दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था—जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत की रचना और अठारह पुराणों की रचना की। उनका योगदान सनातन ज्ञान परंपरा का आधार स्तंभ है।


गुरु कौन होता है?

गुरु केवल एक शिक्षक नहीं होता, वह उस दीपक की तरह होता है जो अज्ञान के अंधकार में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। जीवन की उलझनों में जब दिशा की आवश्यकता होती है, तो गुरु ही होते हैं जो सही मार्ग दिखाते हैं। चाहे वे हमारे विद्यालय के शिक्षक हों, आध्यात्मिक मार्गदर्शक हों या वे मित्र जिन्होंने कठिन समय में साथ दिया—जो भी हमें ज्ञान, चेतना और विवेक देता है, वह हमारे लिए गुरु है।

गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक पक्ष: व्यास पूजन विधि

इस दिन विशेष रूप से व्यास पूजा की जाती है, जो केवल ऋषि वेदव्यास को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण गुरुपरंपरा को समर्पित होती है। शास्त्रों में इस पूजन की विधि इस प्रकार बताई गई है:

  • प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म के बाद, संकल्प करें —
    "गुरुपरम्परासिद्ध्यर्थं व्यासपूजां करिष्ये।"

  • इसके बाद श्रीपर्णी वृक्ष (अर्जुन, पीपल आदि) की छाया में या घर में चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर, उस पर पूर्व-पश्चिम (प्राग) और उत्तर-दक्षिण (उदग) दिशा में गंध से बारह-बारह रेखाएं खींचें और व्यास-पीठ स्थापित करें।

  • फिर दशों दिशाओं में अक्षत (चावल) डालकर दिग्बंधन करें।

  • इसके बाद ब्रह्म, ब्रह्मा, परा-अपरा शक्ति, वेदव्यास, शुकदेव, गौड़पाद, गोविन्दस्वामी और आदि शंकराचार्य का नाममंत्र से आवाहन और पूजन करें।

  • अंत में अपने दीक्षा गुरु, पिता, पितामह, भ्राता आदि का देवतुल्य भाव से पूजन करें।

यह विस्तृत विधान आदि शंकराचार्य विरचित 'व्यासपूजाविधि' ग्रंथ में पाया जा सकता है।

कैसे मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?

  • इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में उपस्थित होकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।

  • मंदिरों में विशेष पूजा, हवन और प्रवचन होते हैं।

  • कई लोग व्रत रखते हैं और गुरु-गृह या विद्यालय जाकर अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं।

  • कुछ लोग अपने आध्यात्मिक गुरुओं के आश्रमों में जाकर सेवा करते हैं या भावपूर्ण भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं।

एक भावनात्मक जुड़ाव

गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि संस्कारों और कृतज्ञता की ऊर्जा का उत्सव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में जहाँ कहीं हम पहुँचे हैं, वहाँ तक पहुँचने में किसी न किसी गुरु का हाथ अवश्य होता है। यह दिन हमारी जड़ों से जुड़ने, विनम्रता और आभार प्रकट करने का श्रेष्ठ अवसर है।

अंतिम विचार

10 जुलाई 2025 की गुरु पूर्णिमा एक बार फिर हमें याद दिलाएगी कि ज्ञान केवल पुस्तकों में नहीं होता, वह जीवन में मार्ग दिखाने वाले लोगों में भी होता है।
इस दिन कुछ पल रुककर उन गुरुओं को धन्यवाद अवश्य दें—चाहे वे आपके शिक्षक हों, आध्यात्मिक आचार्य हों या आपके जीवन के अनुभव हों—क्योंकि उन्होंने ही आपको वह बनाया जो आज आप हैं।

🙏 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ #गुरुपूर्णिमा #गुरु_पूर्णिमा_2025 #गुरु_का_आशीर्वाद #गुरु_बिना_ज्ञान_नहीं #गुरु_वंदना #गुरु_भक्ति #गुरुपरंपरा #गुरु_की_महिमा #व्यास_पूज #गुरु_स्मरण #गुरु_की_शरण #धन्य_है_गुरु #गुरु_दिवस #गुरु_की_कृपा #भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

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कोकिला व्रत का महत्व: 10 जुलाई को विवाह के सौभाग्य की प्राप्ति

 भारत में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है, जिनमें हर एक का अपना धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भाव होता है। इन्हीं में से एक है कोकिलाव्रत, जो विशेष रूप से आषाढ़ मास की पूर्णिमा से शुरू होकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है तथा स्त्रियों के लिए सौभाग्य, संतान सुख, सुखमय वैवाहिक जीवन और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।


कोकिला व्रत कब रखा जाता है?

कोकिलाव्रत की शुरुआत आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (पूर्णिमासे) के दिन होती है और यह श्रावणी पूर्णिमा तक चलता है। उदाहरण स्वरूप, वर्ष 2024 में यह व्रत 20 जुलाई से शुरू हुआ था।

कोकिलाव्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता है कि देवी सती ने भगवान शिव को पाने के लिए कोयल के स्वर और रूप में कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अगले जन्म में पार्वती के रूप में स्वीकार किया। इसलिए इस व्रत में कोयल पक्षी का प्रतीकात्मक महत्व है और इसे “कोकिला व्रत” कहा जाता है।

कोकिला व्रत का महत्व

  • विवाहित स्त्रियों के लिए: यह व्रत पति की लंबी आयु, अखंड सौभाग्य और सुख-शांति पूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है।

  • अविवाहित कन्याओं के लिए: वे इस व्रत के माध्यम से गुणी और सुयोग्य वर की प्राप्ति की कामना करती हैं।

  • यह व्रत श्रद्धा, संयम और तप का प्रतीक है और मनोकामनाएँ पूरी करने वाला माना जाता है।

कोकिलाव्रत का विधान और पूजा विधि

  1. व्रत की शुरुआत:
    आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के सायंकाल स्नान करके संकल्प लें कि आप ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कोकिलाव्रत करेंगी।

  2. संकल्प और स्नान नियम:
    श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को नदी, झरना, बावड़ी, कुआं या तालाब के पास जाकर यह संकल्प करें —
    “मम धन-धान्यादि सहित सौभाग्य प्राप्ति के लिए, शिवजी को प्रसन्न करने हेतु कोकिलाव्रत करूँगी।”

    • प्रारंभ के आठ दिन: भीगे और पिसे हुए आँवले में सुगंधित तिलतैल मिलाकर स्नान करें।

    • अगले आठ दिन: भीगे और पिसी हुई मुरमांसी तथा दस औषधियों (जैसे वच, कुश्ता आदि) से स्नान करें।

    • फिर आठ दिन: भीगे और पिसे हुए बच के जल से स्नान करें।

    • अंत के छह दिन: तिल और आँवले के जल से स्नान करते रहें।

  3. पूजा विधि:

    • प्रतिदिन स्नान के बाद मिट्टी से बनी कोयल (कोकिला) की मूर्ति की पूजा करें।

    • चंदन, सुगंधित पुष्प, धूप, दीप, तिल और तन्दुल आदि का नैवेद्य अर्पित करें।

    • ‘तिलस्नेहे’ से प्रार्थना करें।

    • भगवान शिव को अर्पित करें: भांग, धतूरा, बेलपत्र, केसर, लाल पुष्प।

    • माता पार्वती को अर्पित करें: लाल पुष्प, रोली, सिंदूर।

    • पंचोपचार विधि से पूजा करें (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य)।

    • शिव चालीसा का पाठ करें और शिव-पार्वती मंत्रों का जाप करें।

  4. व्रत का पालन:

    • दिनभर निराहार (अनाहार) व्रत रखें।

    • सूर्यास्त के बाद पुनः पूजन करें।

  5. व्रत का समापन (पारण):

    • श्रावणी पूर्णिमा के दिन, तांबे के पात्र में मिट्टी से बनी कोयल को सुवर्ण के पंख और रत्नों की आँखें लगाकर वस्त्र-आभूषण से सजाएं।

    • सास-ससुर, ज्योतिषी, पुरोहित या कथा वाचक को भेंट करें।

    • अगले दिन प्रातःकाल फलाहार ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

निष्कर्ष

कोकिला व्रत नारी शक्ति की आस्था, श्रद्धा और संकल्प का प्रतीक है। यह व्रत न केवल भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि यह बताता है कि संयम, तप और प्रेम से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। यदि आप जीवन में सुख, समृद्धि और अच्छे वैवाहिक संबंध की कामना रखते हैं, तो कोकिला व्रत श्रद्धापूर्वक करना अत्यंत शुभ एवं फलदायी होता है। #कोकिला_व्रत #सौभाग्य_का_व्रत #शिव_पार्वती_व्रत #नारी_शक्ति #व्रत_विधि #श्रावण_व्रत #आषाढ़_पूर्णिमा #श्रद्धा_और_भक्ति #भारतीय_संस्कृति #पार्वती_पूजन #व्रत_त्योहार #धार्मिक_परंपरा #आस्था_का_त्योहार #विवाहिक_सौभाग्य #स्त्री_धर्म #भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

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बुध की वक्री चाल 2025: कैसे बनाएं इस समय को सहज और संतुलित

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