नरक चतुर्दशी, जिसे कभी-कभी 'छोटी दिवाली' भी कहा जाता है, कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से नरकासुर से मुक्ति और यमदेव की प्रसन्नता के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
नरक चतुर्दशी का महत्व
पुराणों के अनुसार, इस दिन नरकासुर का वध भगवान कृष्ण ने किया था। नरकासुर ने देवताओं के आभूषण छीने, अनेक कन्याओं को बंदी बनाया और धरती पर उपद्रव फैला दिया। कृष्ण ने उनका नाश किया और बंदी कन्याओं की सामाजिक स्थिति सुधार कर उन्हें सम्मान दिया। यही कारण है कि इस दिन नरकासुर का स्मरण करते हुए विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
तैल स्नान और अपामार्ग का महत्व
नरक चतुर्दशी के दिन प्रातः काल सूर्य उदय होने पर तेल से स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस स्नान के दौरान सिर पर अपामार्ग की टहनियाँ घुमानी चाहिए और साथ में जोती हुई भूमि की मिट्टी और कांटे का प्रयोग भी किया जाता है। ऐसा करने से नरक के कष्ट दूर होते हैं और यमदेव प्रसन्न होते हैं।
धर्मशास्त्रों में यह भी बताया गया है कि यदि कोई प्रातःकाल स्नान नहीं कर पाए, तो सूर्योदय के बाद भी यह स्नान किया जा सकता है।
यम तर्पण और दीप जलाना
स्नान के बाद तिल-युक्त जल से यम तर्पण करना आवश्यक है। इस दौरान यमदेव के सात नामों का स्मरण किया जाता है।
इसके अलावा, इस दिन एक दीप जलाना भी शुभ माना गया है। पुराणों में इसे इस तरह बताया गया है कि दीप जलाते समय इसे निम्न स्थानों पर रखना चाहिए:
ब्रह्मा, विष्णु, शिव के मंदिर
मठ, चैत्यों और उच्च स्थलों पर
सभाभवन, नदियों, भवन प्रांगण और उद्यान
कुएँ, राजपथ, अंतःपुर
सिद्धों, अर्हतों, बुद्ध, चामुण्डा और भैरव के मंदिर
दक्षिण भारत में आज भी लोग स्नान के बाद कारीट नामक कड़वे फल को पैर से कुचलते हैं, जिसे नरकासुर के नाश का प्रतीक माना जाता है।
नरकासुर वध की कथा
कहानी के अनुसार, प्राग्ज्योतिष नगरी (कामरूप) के राजा नरकासुर ने अत्याचार किया था। उसने १६१०० कन्याओं को बंदी बना लिया और देवताओं के आभूषण छीने। भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उन कन्याओं से विवाह कर उनकी सामाजिक स्थिति को सुधार दिया। यही कारण है कि नरक चतुर्दशी के दिन पूजा और दीप जलाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
समापन
नरक चतुर्दशी केवल अंधकार और कष्टों से मुक्ति का दिन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, धर्म और भगवान कृष्ण की कृपा का भी प्रतीक है। इस दिन के अनुष्ठान, स्नान, यम तर्पण और दीप जलाने की प्रथा हमें यह याद दिलाती है कि अच्छाई और धर्म की राह पर चलना हमेशा लाभकारी है।
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