भारतभर में मान्य उत्सव
दीपावली या दिवाली, पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। इसे केवल रोशनी का त्योहार ही नहीं बल्कि आस्था, परंपरा और उत्सव का संगम भी कहा जा सकता है। यद्यपि इसके रीति-रिवाज अलग-अलग प्रान्तों और युगों में बदलते रहे हैं, पर इसका मूल भाव सदैव एक ही रहा है – अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना।
केवल पूजा नहीं, एक लम्बा उत्सव
जन्माष्टमी या नवरात्र की तरह यह केवल किसी एक देवता की पूजा का दिन भर नहीं है। दीपावली कई दिनों तक चलने वाला पर्व है। शास्त्रों में इसे सामान्यतः तीन दिन का बताया गया है, लेकिन व्यवहार में यह पाँच दिनों तक अलग-अलग अनुष्ठानों के साथ मनाई जाती है।
दीपावली के नाम और उल्लेख
अनेक ग्रंथों में इस पर्व को दीपावली कहा गया है, जबकि कहीं-कहीं इसे दीपालिका भी लिखा गया है। विशेष अनुष्ठानों के आधार पर इसे "सुखरात्रि", "यक्षरात्रि" और "सुखसुप्तिका" जैसी संज्ञाएँ भी दी गई हैं। प्राचीन ग्रंथों से यह भी पता चलता है कि यह उत्सव पहले कौमुदी महोत्सव के रूप में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी से प्रतिपदा तक तीन दिन मनाया जाता था।
दीपावली क्यों मनती है पाँच दिन
आजकल दीपावली पाँच दिनों तक विभिन्न रूपों में मनाई जाती है। हर दिन का अपना अलग महत्व और कथा जुड़ा है।
1. धनतेरस
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। इस दिन लोग घर की विशेष साफ-सफाई करते हैं, दरवाजों और आँगन को लीपते-पोतते हैं और नये बर्तन या धातु की वस्तुएँ खरीदते हैं। चिकित्सक समुदाय इसे धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मानते हैं।
2. नरक चतुर्दशी
इस दिन श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की स्मृति मनाई जाती है। इसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली भी कहते हैं। लोग इस दिन सुबह स्नान-ध्यान कर दीप जलाते हैं।
3. अमावस्या और लक्ष्मीपूजन
दीपावली की असली चमक अमावस्या की रात को दिखाई देती है। इसी दिन माँ लक्ष्मी की पूजा होती है और घर-आँगन दीपों से जगमग हो उठते हैं। माना जाता है कि लक्ष्मीजी स्वच्छ और प्रकाशमान घरों में ही प्रवेश करती हैं।
4. गोवर्धन पूजा / बलिप्रतिपदा
अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है, जो भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों को इन्द्र के कोप से बचाने की स्मृति में की जाती है। कुछ स्थानों पर इसे बलिप्रतिपदा भी कहते हैं, जहाँ असुरराज बलि पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव होता है।
5. भाई दूज
दीपावली का अंतिम दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें भाइयों को तिलक कर उनके मंगल की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।
दीप और खुशियों का संगम
दीपावली केवल पटाखों और सजावट तक सीमित नहीं है। यह पर्व हमें अपने घर को ही नहीं बल्कि अपने मन को भी स्वच्छ और प्रकाशमान बनाने का संदेश देता है। अंधकार चाहे बाहर का हो या भीतर का, दीपावली हमें उसे मिटाकर प्रकाश फैलाने की प्रेरणा देती है।
No comments:
Post a Comment