शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को आती है। इसे कोजाग्रत व्रत भी कहा जाता है। इस दिन चन्द्रमा और भगवान सत्यनारायण का पूजन करना विशेष फलदायी माना गया है। शास्त्रों में इसे “कृत्यनिर्णयामृत” के अनुसार भी महत्व दिया गया है। इस दिन किए गए अनुष्ठान और पूजा में विशेष रूप से सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
इस दिन कोई भी अनुष्ठान या पूजा कराएं तो उसका फल निश्चित रूप से मिलता है।
तीसरे पहर हाथियों की आरती करने से अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है।
अपने इष्ट देव की भक्ति और जागरण करने वाले भक्तों को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह व्रत विशेष रूप से लक्ष्मी प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
पूजा और व्रत की विधि
सुबह का पूजन
सुबह आराध्य देव को सफेद वस्त्र और आभूषणों से सजाकर षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
कांसे के पात्र में घी भरकर उसमें थोड़ा सुवर्ण डालकर ब्राह्मण को दान दें। ऐसा करने से व्यक्ति ओजस्वी और तेजस्वी बनता है।
अपराह्न का पूजन
अपराह्न में हाथियों की आरती (नीराजन) करना उत्तम माना गया है।
अन्य प्रकार के अनुष्ठान भी इस दिन करने से पूर्णतः सफल होते हैं।
रात का जागरण और खीर अर्पण
रात में उत्तम गाय के दूध की खीर बनाएं, उसमें घी और सफेद खाँड मिलाएं।
आधी रात के समय भगवान को अर्पित करें।
पूर्ण चन्द्र जब मध्य आकाश में स्थित हो, तब उसकी पूजा करें।
खीर का प्रसाद अगले दिन ग्रहण करें।
घर में दीपक जलाकर दीपावली की तरह रोशनी करना भी शुभ माना जाता है। दीपों की संख्या कम से कम 100 और अधिकतम एक लाख तक रखी जा सकती है।
स्त्रियों की परंपरा
स्त्रियाँ इस दिन पाटे पर पानी का लोटा रखती हैं।
एक गिलास में गेहूँ भरकर उसमें रुपया रखें।
13 गेहूँ के दाने लेकर कथा सुनें।
गिलास और रुपया किसी बड़े या बुजुर्ग को पैर छूकर दे दें।
रात में उसी जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और भोजन करें।
राजस्थान में मौसमी फलों के टुकड़े खीर के साथ चन्द्रमा की रोशनी में रखे जाते हैं। इसे अमृत बरसने जैसा माना जाता है।
चाँदनी रात में सूई में धागा पिरोना भी शुभ माना जाता है, ऐसा करने से पूरे वर्ष आँखों की रोशनी बनी रहती है।
शरद पूर्णिमा की कथा
एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं।
पहली पुत्री हर साल व्रत पूरी श्रद्धा से करती थी।
दूसरी पुत्री व्रत अधूरा करती थी।
जिसके कारण उसकी संताने जन्म लेने के तुरंत बाद मर जाती थीं।
पंडितों ने बताया कि अधूरा व्रत करने से यह कष्ट आता है।
इसके बाद दूसरी पुत्री ने व्रत पूरा करना शुरू किया। फिर भी उसके पुत्र का जन्म होते ही मृत्यु हो गई। उसने मृतक बच्चे को उसी पीढ़े पर लिटाकर अपनी बहन के पास ले गई। जब बहन की साड़ी उस बच्चे को छू गई, तो वह जीवित हो गया।
इस घटना के बाद इस व्रत का महत्व और बढ़ गया और इसे अधिक श्रद्धा से निभाया जाने लगा।
शरद पूर्णिमा का यह व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है बल्कि धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यदि आप इस वर्ष इस व्रत को विधिपूर्वक करें, तो आपके जीवन में शांति, सौभाग्य और दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति निश्चित है।
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