भारतीय संस्कृति में मां लक्ष्मी को केवल धन और वैभव की देवी नहीं, बल्कि सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा स्वरूप भी माना गया है। उनके प्रत्येक प्रतीक – चाहे वाहन हो, आसन हो या प्रिय वस्तुएं – अपने भीतर गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक व्याख्या छिपाए हुए हैं। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों लक्ष्मी जी को उल्लू, कौड़ी और कमल प्रिय हैं।
लक्ष्मी का वाहन – उल्लू क्यों?
उल्लू की गलत धारणा
हमारे समाज में उल्लू को अक्सर मूर्खता का पर्याय मान लिया जाता है। जैसे गधा मूर्खता का प्रतीक माना जाता है, वैसे ही उल्लू भी। लेकिन सच्चाई इससे अलग है। उल्लू न तो मूर्ख है और न ही अंधविश्वासी प्राणी। यह शांत, स्थिर और एकांतप्रिय स्वभाव का पक्षी है।
योगी का प्रतीक
मां लक्ष्मी ने उल्लू को इसलिए अपना वाहन चुना क्योंकि यह साधना और योग का प्रतीक है। जैसे एक साधक रात के अंतिम पहर में उठकर ध्यान और पूजा करता है, वैसे ही उल्लू रात्रि का प्रहरी माना जाता है।
शुभ और अशुभ संकेत
जब लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु के साथ आती हैं, तो वे गरुड़ पर सवार होती हैं। गरुड़ को समाज में शुभ और मंगलकारी माना गया है। परंतु यदि कोई व्यक्ति विष्णु को छोड़कर केवल लक्ष्मी की आराधना करता है, तब उनके आगमन का प्रतीक उल्लू माना जाता है, जिसे अशुभ समझा जाता है।
➡️ संकेत साफ है – जहां भक्ति, जप-तप और पुण्यकर्म होते हैं, वहां लक्ष्मी नारायण साथ-साथ आते हैं। लेकिन जहां पाप, व्यभिचार, अत्याचार और धन का दुरुपयोग होता है, वहां केवल लक्ष्मी का आगमन होता है, वह भी उल्लू पर सवार होकर।
लक्ष्मी को प्रिय क्यों है कौड़ी?
कौड़ी का सांस्कृतिक महत्व
आज भले ही कौड़ी का प्रयोग मुद्रा के रूप में न हो, लेकिन हमारी भाषा और परंपराओं में यह अब भी जीवित है। “दो कौड़ी का” जैसे मुहावरों से लेकर धार्मिक अनुष्ठानों तक, कौड़ी हर जगह अपना महत्व रखती है।
समुद्र से संबंध
कौड़ी समुद्र से उत्पन्न होती है और समुद्र से जन्मी वस्तुएं लक्ष्मी से जुड़ी मानी जाती हैं। शंख को जहां लक्ष्मी का भाई कहा गया है, वहीं कौड़ी को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। पूजा, श्रृंगार, आभूषण और टोटकों में इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है।
शिव से संबंध
कौड़ी का रिश्ता भगवान शिव से भी जोड़ा गया है। उनकी जटाओं का आकार कौड़ी जैसा माना जाता है और इसी कारण उन्हें कपर्दिन कहा जाता है। नंदी की सजावट में भी कौड़ियों का प्रयोग विशेष रूप से होता है।
➡️ मान्यता है कि यदि गल्ले या तिजोरी में पीले कपड़े में हल्दी या केसर से रंगी कौड़ियां रखी जाएं, तो घर में लक्ष्मी का वास होता है।
लक्ष्मी का आसन – कमल क्यों?
कमल का गुण
लक्ष्मी जी सदैव कमल पर विराजमान दिखाई देती हैं। कमल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कीचड़ और जल में उत्पन्न होते हुए भी पवित्र और सुंदर बना रहता है। उसकी पत्तियों पर जल की बूंद तक नहीं टिकती।
आध्यात्मिक प्रतीक
कमल इस बात का प्रतीक है कि इंसान संसार में रहकर भी लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार जैसी बुराइयों से ऊपर उठ सकता है। लक्ष्मी ऐसे ही निर्मल और सात्विक हृदय वाले व्यक्तियों के यहां निवास करती हैं।
पौराणिक कथा
मान्यता है कि समुद्र मंथन से सबसे पहले कमल ही प्रकट हुआ। विष्णु की नाभि से निकले कमल पर ब्रह्माजी प्रकट हुए और सृष्टि की रचना की। यही कारण है कि लक्ष्मी को पद्मजा कहा गया है।
➡️ कमल हमें सिखाता है कि संसार रूपी कीचड़ में रहकर भी मनुष्य को शुद्ध और सात्विक बने रहना चाहिए।
निष्कर्ष
मां लक्ष्मी के इन तीन प्रतीकों – उल्लू, कौड़ी और कमल – में गहरा संदेश छिपा है।
उल्लू हमें चेताता है कि यदि धर्म और ईश्वर की उपेक्षा होगी तो धन विनाशकारी सिद्ध होगा।
कौड़ी हमें याद दिलाती है कि संपदा केवल भौतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर भी है।
कमल सिखाता है कि जीवन में वैभव तभी टिकेगा जब हम लोभ-मोह से ऊपर उठकर सात्विक मार्ग अपनाएंगे।
👉 इस प्रकार लक्ष्मी जी केवल भौतिक ऐश्वर्य की देवी नहीं, बल्कि शुद्धता, संतुलन और विवेकपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा भी देती हैं।
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