भारत की परंपराओं में व्रत-त्योहार का विशेष महत्व है। हर व्रत अपने भीतर गहन आध्यात्मिक संदेश और देवी-देवताओं की कृपा का आशीर्वाद समेटे होता है। इन्हीं व्रतों में से एक है उपांग ललिता व्रत, जो आश्विन मास की शुक्ल पंचमी को किया जाता है।
उपांग ललिता व्रत 2025 तिथि
इस वर्ष उपांग ललिता व्रत 26 सितंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
उपांग ललिता व्रत का महत्व
देवी ललिता की आराधना
यह व्रत माँ ललिता को समर्पित है, जिन्हें त्रिपुरसुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। वे दस महाविद्याओं में से एक प्रमुख शक्ति हैं। मान्यता है कि उनकी पूजा से साधक को विशेष आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
इच्छाओं की पूर्ति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उपांग ललिता व्रत करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की इच्छाएँ पूरी होती हैं। चाहे मन की शांति हो, करियर में सफलता हो या पारिवारिक सुख—देवी की कृपा सब संभव बनाती है।
सुख-समृद्धि और शांति
यह व्रत विशेषकर महिलाएँ करती हैं। इसका उद्देश्य होता है परिवार में समृद्धि लाना, जीवन में शांति पाना और आध्यात्मिक प्रगति करना।
रोग और दोष से मुक्ति
कहा जाता है कि देवी ललिता की आराधना करने से जीवन के रोग, दोष और कष्ट दूर हो जाते हैं। श्रद्धापूर्वक किया गया व्रत साधक को शारीरिक और मानसिक बल प्रदान करता है।
दस महाविद्याओं में विशेष स्थान
देवी ललिता शक्ति की प्रतीक हैं। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं और त्रिपुरसुंदरी के रूप में सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।
व्रत की संक्षिप्त पूजा विधि
व्रती को इस दिन अपामार्ग (ऊँगा) की 21 दातून लेकर, प्रत्येक पर “आयुर्बल मिदम्” मंत्र बोलते हुए स्नान करना चाहिए।
इसके बाद श्वेत वस्त्र धारण कर देवी ललिता की सुवर्णमयी प्रतिमा या चित्र का पूजन करें।
रात्रि में चंद्रोदय के समय देवी को अर्घ्य अर्पित करके नक्तव्रत (रात्रि में भोजन) करें।
अगले दिन प्रातः देवी का विसर्जन किया जाता है।
निष्कर्ष
उपांग ललिता व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन में शक्ति, सुख, शांति और समृद्धि लाने का साधन है। महाराष्ट्र सहित भारत के कई हिस्सों में यह व्रत विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है।
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