Monday, September 08, 2025

श्रीमहालक्ष्मी व्रत : धन, सुख और समृद्धि का दिव्य उत्सव

 महालक्ष्मी व्रत का महत्व



भारतीय परंपरा में माता लक्ष्मी को धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माना गया है। मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से जब सूर्य कन्या राशि में होता है, तभी महालक्ष्मी व्रत का शुभारंभ होता है। यह व्रत लगातार १६ दिनों तक चलता है और जब सूर्य कन्या राशि के मध्य भाग में पहुँचता है, तो आगे आने वाली अष्टमी को इसका समापन होता है।

विशेष रूप से राधा अष्टमी से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक इसका पालन करने की परंपरा है। इस व्रत को करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है, सुख-समृद्धि आती है और जीवन की कठिनाइयाँ धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं।

श्रीमहालक्ष्मी व्रत कब है?

हर वर्ष यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक मनाया जाता है। कुल मिलाकर यह व्रत १६ दिन का होता है। परंपरा के अनुसार इस व्रत को १६ वर्षों तक लगातार करने की भी विशेष मान्यता है।

व्रत की विधि

  • सबसे पहले इस दिन माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर साफ वस्त्र पहनाएँ।

  • माता को फूल, चन्दन, धूप, दीप और नए पकवान अर्पित करें।

  • आरती कर प्रसाद बाँटें।

  • रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर अर्घ्य दें और फिर भोजन करें।

  • व्रती को अपने दाहिने हाथ में १६ गाँठों वाला डोरक (गण्डा) बाँधना चाहिए, क्योंकि इस व्रत में संख्या १६ का विशेष महत्व है।

महालक्ष्मी व्रत की कथा

प्राचीन समय में एक गाँव में एक गरीब लेकिन विद्वान ब्राह्मण रहता था। वह नियमपूर्वक जंगल के एक पुराने विष्णु मंदिर में प्रतिदिन पूजा करने जाता था। उसकी निष्ठा देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उसे दर्शन देकर बोले—

“तुम्हारे घर में लक्ष्मी निवास करें, इसके लिए कल सुबह मंदिर के सामने जो स्त्री गोबर के कंडे थापने आती है, उसका आँचल पकड़ लेना। वह मेरी अर्धांगिनी लक्ष्मी हैं। यदि वह तुम्हारे घर रहेंगी तो तुम्हारे सारे दुःख समाप्त हो जाएंगे।”

दूसरे दिन ब्राह्मण भोर में ही मंदिर के सामने बैठ गया। जैसे ही लक्ष्मीजी आईं, उसने उनका आँचल पकड़ लिया। लक्ष्मीजी ने छो़ड़ने को कहा, पर ब्राह्मण बोला—“पहले यह वचन दो कि तुम मेरे घर निवास करोगी, तभी छोड़ूँगा।”

तब लक्ष्मीजी मुस्कुराईं और बोलीं—“तुम और तुम्हारी पत्नी १६ दिन तक मेरा व्रत करो। सोलहवें दिन रात को चन्द्रमा की पूजा करने के बाद उत्तर दिशा की ओर मुझे पुकारना, तब मैं अवश्य तुम्हारे घर आऊँगी।”

ब्राह्मण ने पूरी श्रद्धा से व्रत किया। सोलहवें दिन चन्द्रमा की पूजा कर उसने उत्तर दिशा की ओर लक्ष्मीजी को पुकारा। माता लक्ष्मी प्रकट हुईं और उसी के घर में निवास करने लगीं। इसके बाद उसके घर से गरीबी हमेशा के लिए दूर हो गई और सुख-समृद्धि का वास हो गया।

व्रत का फल

मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से यह व्रत करता है, उसे न केवल धन और वैभव प्राप्त होता है, बल्कि तीन जन्मों तक लक्ष्मीजी उसका साथ नहीं छोड़तीं। व्रतकर्ता को दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष

महालक्ष्मी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और विश्वास का प्रतीक है। जैसे लक्ष्मी माता उस ब्राह्मण के घर गईं, वैसे ही विश्वास है कि सच्ची श्रद्धा से व्रत करने वालों के घर भी माँ लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है।

हे माँ लक्ष्मी! जैसे आपने उस ब्राह्मण के घर में निवास किया, वैसे ही हमारे घरों में भी कृपा करके पधारें।


#श्रीमहालक्ष्मीव्रत #महालक्ष्मीव्रत #लक्ष्मीपूजा #हिंदूपर्व #व्रतकथाएँ #भक्ति_और_विश्वास #धन_और_समृद्धि #लक्ष्मीमाता #हिंदूधर्म #पूजाविधान #व्रतकथा #हिंदूपूजा #आध्यात्मिकजीवन #धार्मिकपरंपरा #लक्ष्मीव्रत #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

For more information: www.benimadhavgoswami.com Website: www.himachalpublications.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612 Facebook: Ribhukant Goswami Instagram: Ribhukant Goswami Twitter: Ribhukant Goswami Linkedin: Ribhukant Goswami Youtube: AstroGurukulam

No comments:

Post a Comment

विजयादशमी : विजय, शक्ति और नए आरम्भ का पर्व

  भारतीय संस्कृति में कुछ तिथियाँ ऐसी होती हैं जो पूरे वर्ष विशेष शुभ मानी जाती हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, जिसे हम विजयादशमी या आ...