सनातन धर्म में व्रत और त्योहार केवल परंपराएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन को अनुशासन, श्रद्धा और ईश्वर-भक्ति से जोड़ने का माध्यम भी हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली अनंत चतुर्दशी भी ऐसा ही एक व्रत है, जिसमें भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कब है?
इस वर्ष अनंत चतुर्दशी व्रत 2025, 6, सितम्बर (शनिवार) को मनाया जाएगा।
इस दिन सुबह स्नान कर व्रती कलश स्थापना के साथ भगवान अनंत का पूजन करते हैं और हाथ में अनंत सूत्र धारण करते हैं।
अनंत चतुर्दशी का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान विष्णु ही "अनंत" हैं। वे काल हैं, वे ही सृष्टि के पालनहार हैं और वे ही चौदह लोकों के आधार हैं।
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रती भगवान से प्रार्थना करता है कि—
"हे वासुदेव! इस अनंत संसार सागर से मुक्ति दिलाइए और हमें आपके दिव्य स्वरूप का ध्यान करने की शक्ति प्रदान कीजिए।"
अनंत सूत्र का रहस्य
इस व्रत में पुरुष दाहिने हाथ और महिलाएँ बाएँ हाथ में एक विशेष सूत्र (धागा) बांधती हैं।
यह धागा रुई या रेशम का होता है
इसे हल्दी या कुमकुम से रंगा जाता है
इसमें 14 गाँठें होती हैं, जो भगवान विष्णु द्वारा बनाए गए चौदह लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं।
पूजा-विधि
व्रती कुश (दर्भ) से बने विष्णु की प्रतिमा को कलश में स्थापित करता है।
चन्दन, धूप, पुष्प और नैवेद्य से पूजा की जाती है।
धान के आटे की पूड़ियाँ बनाई जाती हैं। आधी पूड़ियाँ ब्राह्मण को दी जाती हैं और बाकी स्वयं ग्रहण की जाती हैं।
यह व्रत नदी के तट पर करना श्रेष्ठ माना गया है, जहाँ हरि की कथाएँ सुनना विशेष पुण्यदायी होता है।
अनंत व्रत की कथा
हेमाद्रि पुराण और अन्य ग्रंथों में अनंत व्रत की कथा विस्तार से आती है।
कथा के अनुसार, एक बार ऋषि कौण्डिन्य और उनकी पत्नी शीला ने यह व्रत किया। लेकिन एक समय कौण्डिन्य ने इस सूत्र को हल्के में लेकर त्याग दिया। फलस्वरूप उन्हें जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। अंततः वे भगवान कृष्ण से मिले और तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि अनंत वास्तव में विष्णु का ही रूप है। व्रत के प्रति श्रद्धा और नियम पालन से ही जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
विशेष मान्यता
कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति 14 वर्षों तक निरंतर अनंत चतुर्दशी का व्रत करे, तो उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
इस व्रत से जीवन के दुःख दूर होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है।
आज के समय में अनंत चतुर्दशी
हालांकि आजकल व्रती पहले की तरह अधिक संख्या में नहीं रहे, फिर भी श्रद्धालु आज भी पूरे विश्वास के साथ यह व्रत करते हैं। विशेषकर महाराष्ट्र और उत्तर भारत में इसका महत्व अधिक देखा जाता है।
✨ निष्कर्ष
अनंत चतुर्दशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि श्रद्धा, नियम और भक्ति से ही जीवन का सागर पार किया जा सकता है।
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