शरद ऋतु का आगमन होते ही पूरा भारतवर्ष त्योहारों के रंग में रंग जाता है। इन उत्सवों की शुरुआत नवरात्रि से होती है। नवरात्रि न केवल देवी की शक्ति का उत्सव है, बल्कि यह भारत की विविध संस्कृति और परंपराओं को भी जोड़ता है। पूरे देश में तिथि तो समान रहती है, परंतु पूजा-पद्धतियां और मान्यताएं अलग-अलग क्षेत्रों में अपने विशेष रंग बिखेरती हैं। कहीं माता का गौरी रूप पूजित है, कहीं शेरांवाली मां, कहीं अम्बे मां तो कहीं सरस्वती।
उत्तर भारत : गौरी मां की आराधना
उत्तर भारत में मां दुर्गा के "गौरी स्वरूप" की पूजा विशेष महत्त्व रखती है। महिलाएं प्रायः सात दिन तक व्रत करती हैं और अन्न का त्याग करती हैं। दिन-रात दीप जलाकर माता की प्रतिमा या चित्र के आगे फूल चढ़ाए जाते हैं।
अष्टमी के दिन व्रत का समापन होता है। इस अवसर पर छोटी कन्याओं को भोजन कराना और उनके चरण पखारना शुभ माना जाता है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में यह परंपरा लगभग समान रूप से प्रचलित है।
पंजाब : शेरांवाली मां का हुंकारा
पंजाब में नवरात्रि का माहौल माता के भजन-कीर्तन और जागरण से गूंजता है। यहां शेरांवाली माता की विशेष पूजा होती है। अधिकांश परिवार नौ दिनों तक मांस-मदिरा का त्याग करते हैं।
अष्टमी या नवमी को उपवास खोला जाता है और कन्याओं को पूजकर भोजन कराया जाता है। मिट्टी के बर्तन में जौ उगाने की परंपरा भी यहां प्रचलित है, जिसे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। सिंधी परिवार भी इसी प्रकार नवरात्रि मनाते हैं, परंतु वे अपने पारिवारिक गुरु की अनुमति लेकर ही पूजा-विधि का पालन करते हैं। सिंधियों में "एकणा" की परंपरा होती है, जिसमें पूरे दिन में केवल एक बार भोजन किया जाता है।
जम्मू-कश्मीर : शेरांवाली का त्रिशूल रूप
कश्मीर में नवरात्रि विशेष आस्था के साथ मनाई जाती है। यहां शेर पर सवार, त्रिशूलधारी माता की पूजा होती है। लोग दिनभर उपवास रखते हैं और केवल शाम को फलाहार करते हैं।
कश्मीरी पंडित पूरे नौ दिन का व्रत निभाते हैं। यहां भी जौ उगाने की परंपरा है। मान्यता है कि संकट आने पर मंदिर के सरोवर का जल मटमैला हो जाता है। नवमी की संध्या पर विशेष आरती के साथ व्रत खोला जाता है।
पश्चिम बंगाल : दुर्गा पूजा की भव्यता
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा किसी महोत्सव से कम नहीं होती। यहां पांच दिन तक पंडालों में मां की भव्य प्रतिमाएं सजाई जाती हैं। पूजा से पहले "महालया" मनाना अनिवार्य है, जिसे देवी को असुर संहार का दायित्व मिलने का दिन कहा जाता है।
भक्तजन प्रतिदिन 108 कमल पुष्प अर्पित करते हैं। अंतिम दिन मूर्तियों का विसर्जन शोभायात्रा और धूमधाम के साथ किया जाता है।
गुजरात : गरबा और डांडिया की रौनक
गुजरात में नवरात्रि का नाम लेते ही गरबा और डांडिया की धूम आंखों के सामने आ जाती है। यहां मां अम्बे की पूजा हर घर में होती है और रात्रि को लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सजकर गरबा और डांडिया खेलते हैं।
महिलाएं दीपक से सजी थालियों के साथ "जाग" नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष और महिलाएं मिलकर बांस की डंडियों से रास रचाते हैं। हर आयोजन का समापन गरबा से ही होता है।
महाराष्ट्र : कन्याओं का विशेष पूजन
महाराष्ट्र में नवरात्रि उतनी ही श्रद्धा से मनाई जाती है जितनी गणेशोत्सव। यहां नौ दिनों तक देवी की मूर्तियों की पूजा और माल्यार्पण होता है। त्योहार समाप्त होने पर प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
यहां छोटी कन्याओं की विशेष पूजा होती है। 10 वर्ष तक की बालिकाओं को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें खिलौने और मनपसंद भोजन दिए जाते हैं।
केरल और दक्षिण भारत : ज्ञान और शक्ति का संगम
दक्षिण भारत में नवरात्रि को शक्ति आराधना का पर्व माना जाता है, लेकिन केरल में इसे शिक्षा और ज्ञान से जोड़ा जाता है। दस दिनों तक मंदिरों में पूजा चलती है।
अष्टमी को "आयुध पूजा" होती है, जिसमें औजार और उपकरण पूजे जाते हैं। नवमी को "सरस्वती पूजा" मनाई जाती है, जहां पुस्तकें और दस्तावेज पूजित होते हैं। कोट्टायम और पालघाट के मंदिरों में हजारों भक्त इन रस्मों में सम्मिलित होते हैं।
निष्कर्ष
भारत में नवरात्रि केवल देवी की उपासना भर नहीं है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक हर क्षेत्र ने इस पर्व को अपनी परंपराओं, विश्वासों और जीवनशैली के साथ जोड़ा है। परंतु सबका उद्देश्य एक ही है—मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करना और जीवन में शक्ति, समृद्धि तथा सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करना।
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