नवरात्रि के नौ दिनों का समापन महानवमी के साथ होता है। यह तिथि देवी दुर्गा के आराधन का विशेष पर्व मानी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन माता दुर्गा ने असुरों के राजा महिषासुर का संहार किया था। इसलिए यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
नवमी व्रत का संकल्प
आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन प्रातः स्नान कर नित्यकर्म समाप्त करना चाहिए। इसके बाद भगवती के समक्ष व्रत का संकल्प इस मंत्र के साथ किया जाता है—
"उपोष्य नवम त्वद्य यामेष्वष्टसु चण्डिके।
तेन प्रीता भव त्वं भोः संसारात् त्राहि मां सदा॥"
अर्थात्—हे चण्डिके! आज मैं नवमी का उपवास कर रहा हूँ, आप प्रसन्न होकर मुझे इस संसार सागर से पार करें।
पूजा स्थल की सजावट
देवी पूजन के स्थान को ध्वजा, पताका, पुष्पमालाओं और बंदनवार से सजाना चाहिए।
उपलब्धता के अनुसार पंद्रह, सोलह, छत्तीस या राजोपचार विधि से पूजन करना श्रेयस्कर होता है।
माता को विविध प्रकार के अन्न और पेय का भोग अर्पित करें।
अंत में घृत की बत्ती या कपूर जलाकर नीराजन किया जाता है।
विशेष पूजा और अश्व पूजन
इस दिन राजाओं और शासकों को विशेष रूप से नए घोड़ों का पूजन करना चाहिए। इसका विस्तृत विवरण दशमी के शस्त्र पूजन में बताया गया है।
नवमी की विशेषता
इस दिन पूर्वविद्धा नवमी को ही प्रमुख माना गया है।
यदि इस तिथि में मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग हो तो यह नवमी त्रैलोक्य दुर्लभ कही जाती है।
इस संयोग में विविध उपहारों और सामग्रियों से पूजा करने पर महाफल की प्राप्ति होती है।
महत्त्व और मान्यता
महानवमी का महत्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि अंततः जीत सदैव सत्य और धर्म की ही होती है। माता दुर्गा का महिषासुर वध इसी बात का द्योतक है कि जब भी अधर्म बढ़ेगा, तो देवशक्ति अवश्य प्रकट होकर उसका नाश करेगी।
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