भारतीय संस्कृति में देवी की पूजा केवल श्रद्धा या भाव से ही नहीं की जाती, बल्कि उसमें विधान और नियम का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि तिथि, वार, नक्षत्र और मासानुसार यदि देवी को भोग (नैवेद्य) अर्पित किया जाए तो साधक को अद्भुत फल प्राप्त होते हैं।
इस लेख में हम जानेंगे –
तिथियों के अनुसार नैवेद्य
सप्ताह और नक्षत्रों के अनुसार अर्पण
मासिक तृतीया की विशेष पूजा
और देवी की कृपा प्राप्त करने का गुप्त रहस्य
देवी पूजा का वास्तविक स्वरूप
पुराणों में वर्णन है कि जब नारद जी ने भगवान नारायण से पूछा –
“हे प्रभो! देवी की पूजा कैसे की जाए जिससे साधक को परमपद प्राप्त हो और जीवन के कष्ट दूर हो जाएँ?”
तब भगवान ने उत्तर दिया –
“जो मनुष्य श्रद्धा से देवी जगदम्बा की पूजा करता है, वह चाहे कितने भी संकट में फँसा हो, देवी स्वयं उसकी रक्षा करती हैं। अतः हर किसी का परम कर्तव्य है कि वह विधिपूर्वक देवी की आराधना करे।”
पूजा की मूल विधि
देवी की पूजा षोडशोपचार विधि से करनी चाहिए।
पूजन के बाद तिथि और अवसर के अनुसार विशेष नैवेद्य अर्पण करना अनिवार्य है।
अर्पित नैवेद्य को बाद में ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
तिथियों के अनुसार नैवेद्य
हर तिथि पर देवी को अलग-अलग भोग चढ़ाने का विधान है –
प्रतिपदा – घी (रोग नाश)
द्वितीया – चीनी (दीर्घायु)
तृतीया – दूध (दुःखों से मुक्ति)
चतुर्थी – मालपुआ (विघ्न नाश)
पंचमी – केला (बुद्धि वृद्धि)
षष्ठी – शहद (रूप-सौंदर्य)
सप्तमी – गुड़ (शोकमुक्ति)
अष्टमी – नारियल (संताप से रक्षा)
नवमी – धान का लावा (लोक-परलोक में सुख)
दशमी – काले तिल (यम भय नाश)
एकादशी – दही (देवी प्रसन्नता)
द्वादशी – चिउड़ा (भक्ति वृद्धि)
त्रयोदशी – चना (संतान सुख)
चतुर्दशी – सत्तु (शिव कृपा)
पूर्णिमा/अमावस्या – खीर (पितृ तृप्ति)
👉 इन्हीं वस्तुओं से हवन करना भी अत्यन्त शुभ माना गया है।
सप्ताह के अनुसार नैवेद्य
रविवार – खीर
सोमवार – दूध
मंगलवार – केला
बुधवार – मक्खन
गुरुवार – चीनी
शुक्रवार – मिश्री
शनिवार – घृत
नक्षत्रों के अनुसार नैवेद्य
सत्ताईस नक्षत्रों के लिए भी अलग-अलग नैवेद्य बताए गए हैं, जैसे – घृत, तिल, चीनी, दही, दूध, मलाई, लस्सी, लड्डु, तारफेनी, घृतमण्ड, कसार, पापड़, घेवर, पकौड़ी, कोकरस, घृतमिश्रित चने का चूर्ण, मधु, चूरमा, गुड़, चारक, पुत्रा, मक्खन, मूँग के बेसन का सत्ताईस वस्तुएँ हैं ।
हर नक्षत्र में यदि उसी के अनुसार भोग अर्पित किया जाए तो देवी विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं।
योग के अनुसार नैवेद्य
विष्कुम्भ आदि योगों के लिए भी विशेष नैवेद्य निर्धारित हैं –
गुड़, दूध, दही, शहद, चना, नारियल, नींबू, अनार, आम, आँवला, खीर इत्यादि।
इन वस्तुओं का योगानुसार अर्पण साधक की मनोकामनाएँ पूरी करता है।
मासिक तृतीया की विशेष पूजा
हर महीने की शुक्ल तृतीया को देवी की पूजा का अलग ही महत्व है।
महुआ वृक्ष को देवी का रूप मानकर पूजा करनी चाहिए और हर महीने भिन्न नैवेद्य अर्पित करना चाहिए –
वैशाख – गुड़
ज्येष्ठ – मधु
आषाढ़ – महुए का रस
श्रावण – दही
भाद्रपद – चीनी
आश्विन – खीर
कार्तिक – दूध
मार्गशीर्ष – फेनी
पौष – दधिकुचिका
माघ – घृत
फाल्गुन – नारियल
इन दिनों देवी के बारह नाम भी लिए जाते हैं –
मङ्गला, वैष्णवी, माया, कालरात्रि, दुरत्यया, महामाया, मातङ्गी, काली, कमलवासिनी, शिवा, सहस्रचरणा, सर्वमङ्गला।
निष्कर्ष
देवी पूजा में केवल मंत्र या स्तोत्र ही नहीं, बल्कि सही समय और सही भोग का अर्पण भी बहुत महत्त्व रखता है।
👉 यदि साधक तिथि, वार, नक्षत्र और मासानुसार नैवेद्य अर्पित करता है तो –
रोग, शोक और संकट दूर होते हैं
पितृ प्रसन्न होते हैं
भगवान शिव तक की कृपा प्राप्त होती है
और अंततः साधक को देवी का परम आशीर्वाद मिलता है।
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