अश्विन मास में आने वाली शारदीय नवरात्रि का महत्व केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। यह समय जीवन को सकारात्मक दिशा देने और आत्मिक शक्ति प्राप्त करने का होता है। माना जाता है कि इन नौ दिनों की साधना से साधक अपने भीतर की बुराइयों पर विजय प्राप्त कर पाता है।
नवरात्रि की नौ रातें तीन-तीन भागों में बंटी होती हैं –
प्रथम तीन दिन – माँ दुर्गा की आराधना
मध्य के तीन दिन – माँ लक्ष्मी की साधना
अंतिम तीन दिन – माँ सरस्वती की उपासना
इन्हीं तीन देवियों की साधना से जीवन की संपूर्ण साधना पूरी होती है।
माँ दुर्गा: आंतरिक विकृतियों का नाश
नवरात्रि की शुरुआत माँ दुर्गा की पूजा से होती है। दुर्गा को दुर्गति नाशिनी कहा गया है यानी वे हमारे अंदर की बुराइयों का नाश करती हैं।
महिषासुर का वास्तविक अर्थ
कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। यह ‘भैंसा’ कोई बाहरी दैत्य नहीं बल्कि हमारे भीतर की तामसिक प्रवृत्तियाँ हैं – आलस्य, अज्ञान और जड़ता। दुर्गा साधना का मतलब है अपने इन दुर्गुणों की बलि देना। बलि का आशय किसी पशु की बलि नहीं, बल्कि अंदर की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करना है।
माँ लक्ष्मी: सच्ची समृद्धि की प्राप्ति
चतुर्थी से षष्ठी तक महालक्ष्मी की साधना की जाती है। अधिकांश लोग लक्ष्मी को केवल धन-वैभव की देवी मानते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं गहरी है।
धन का असली अर्थ
सोना-चाँदी, गड्डियाँ या भौतिक साधन ही धन नहीं हैं। असली धन है – आत्मसंयम और शुद्ध अंतःकरण। यदि संयम न हो तो चाहे जितना पैसा आए, वह बुरी आदतों में नष्ट हो जाता है।
महालक्ष्मी की साधना हमें आत्मअनुशासन, सद्गुण और आंतरिक समृद्धि प्रदान करती है। जब मन शुद्ध होता है तभी भौतिक धन का भी सही उपयोग हो पाता है।
माँ सरस्वती: आत्मज्ञान का प्रकाश
नवरात्रि की अंतिम तीन रातें माँ सरस्वती के लिए होती हैं। दुर्गा साधना से विकार दूर हुए, लक्ष्मी साधना से मन शुद्ध हुआ, अब आवश्यकता है ज्ञान की।
सर्वोच्च ज्ञान क्या है?
सरस्वती केवल किताबों का ज्ञान या कलाओं की देवी नहीं हैं। वे आत्मज्ञान की देवी हैं। गीता में भी भगवान कृष्ण कहते हैं – आत्मा का ज्ञान ही सर्वोच्च ज्ञान है। जब तक इंसान अपने ‘स्व’ को नहीं पहचानता, तब तक जीवन अधूरा ही रहता है।
सरस्वती साधना हमें यही आत्मबोध कराती है।
रात्रि साधना का रहस्य
नवरात्रि में रात को जागरण और साधना करने का विशेष महत्व है। दिन में नहीं, बल्कि रात में ही साधना करने का विधान है।
रात नींद और आलस्य का समय है, जो तमोगुण का प्रतीक है। नवरात्रि का संदेश है – तमोगुणी निद्रा से जागो। जब साधक जागरण करता है, तो उसके भीतर का ‘महिषासुर’ यानी आलस्य और अज्ञान पराजित होने लगता है।
नवरात्रि: जीवन साधना का पर्व
दुर्गा साधना – दुर्गुणों का अंत
लक्ष्मी साधना – आंतरिक शुद्धता और समृद्धि
सरस्वती साधना – आत्मज्ञान की प्राप्ति
इन तीनों साधनाओं को मिलाकर ही जीवन साधना पूरी होती है। नवरात्रि हमें शक्ति, संयम और ज्ञान तीनों देती है। यही त्रिशक्ति साधना साधक के जीवन को सार्थक और सफल बनाती है।
निष्कर्ष
नवरात्रि केवल व्रत-उपवास या धार्मिक कर्मकांड का पर्व नहीं है। यह आत्मिक जागरण और जीवन सुधार का अवसर है।
जो व्यक्ति इन पावन दिनों में साधना करता है, वह अपने भीतर नई ऊर्जा, साहस और प्रकाश का अनुभव करता है। लेकिन जो इन दिनों को यूँ ही व्यर्थ जाने देता है, वास्तव में वही अभागा कहलाता है।
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