Thursday, July 03, 2025

6 जुलाई 2025: हरिशयनी एकादशी और शिव शयनोत्सव – एक आध्यात्मिक विश्राम का प्रारंभ

 भारत की धार्मिक परंपराओं में हर तिथि और पर्व का अपना एक अनूठा महत्व होता है। इनमें से एक बेहद खास तिथि है हरिशयनी एकादशी, जिसे विष्णु शयनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं, जो हमारे लिए आत्मिक उन्नति और आत्मनिरीक्षण का एक विशेष समय लेकर आता है। साथ ही, इस पावन काल में भगवान शिव भी विश्राम करते हैं, जिसे हम शिव शयनोत्सव के रूप में जानते हैं। आइए जानते हैं इन दोनों पर्वों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व, और इनके पीछे छुपा रहस्य।


हरिशयनी एकादशी – विष्णु का दिव्य विश्राम

पुराणों में वर्णित है कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 6 जुलाई 2025, रविवार को है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने की अवधि के लिए क्षीरसागर की अनंत शय्या पर योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय को चातुर्मास्य कहते हैं, जो आषाढ़ मास से लेकर कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी तक रहता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह विष्णु भगवान का विश्रामकाल है। इसी दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्यों से परहेज किया जाता है क्योंकि यह समय ईश्वर के निद्रालीन होने का काल माना जाता है। इस दौरान संसार का संचालन भगवान शिव और ब्रह्मा जी करते हैं।

इस समय साधु-संत और तपस्वी एक ही स्थान पर रहकर अपने तप और साधना में लीन रहते हैं। चातुर्मास्य के दौरान समस्त तीर्थ स्थल ब्रज में निवास करते हैं, इसलिए ब्रज यात्रा ही इस दौरान प्रचलित और शास्त्रसम्मत मानी जाती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में हरिशयनी एकादशी के व्रत का विशेष महात्म्य बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि इसे करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शिव शयनोत्सव – शिव का भी विश्राम

हरिशयनी एकादशी के साथ ही भगवान शिव भी योग निद्रा में प्रवेश करते हैं। इस पर्व को शिव शयनोत्सव कहा जाता है। यद्यपि इसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में बहुत कम मिलता है, फिर भी कई परंपराओं और स्थानीय मान्यताओं में इसे बहुत श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाया जाता है।

शिवभक्त इस समय महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक, और अन्य विधियों से भगवान शिव की आराधना करते हैं। यह काल शिव की विश्रामावस्था का प्रतीक है, जो हमें भी अपने जीवन में संयम और आत्मनिरीक्षण का संदेश देता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व

हरिशयनी एकादशी और शिव शयनोत्सव केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं हैं, बल्कि ये हमारे लिए मन, तन और आत्मा की यात्रा का प्रतीक हैं। जब भगवान विष्णु और शिव विश्राम करते हैं, तो यह संकेत होता है कि हमें भी अपनी व्यस्त दिनचर्या से विराम लेकर अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता है।

यह समय ध्यान, व्रत और मंत्रजप के माध्यम से आत्मिक उन्नति का होता है। यह पर्व हमें प्रकृति की लय के साथ तालमेल बैठाने, संयमित जीवन जीने और अपने भीतर की गहराइयों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।

कब मनाएं ये पर्व?

इस वर्ष 2025 में हरिशयनी एकादशी और विष्णु शयनोत्सव 6 जुलाई रविवार को पड़ रहे हैं। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है। इस काल में शिव शयनोत्सव भी माना जाता है।

निष्कर्ष

हरिशयनी एकादशी और शिव शयनोत्सव हमारे धार्मिक पंचांग के ऐसे महत्वपूर्ण पर्व हैं जो केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं। ये हमें प्रकृति की लय से जुड़ने, संयम और ध्यान के माध्यम से आत्मनिरीक्षण करने और आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता दिखाते हैं।

जब आप इस बार 6 जुलाई को हरिशयनी एकादशी मनाएं, तो बस एक पल के लिए ठहरिए, अपनी सांसों को महसूस कीजिए और भगवान के दिव्य विश्राम को अपनी आत्मा में उतरने दीजिए।

जय श्री विष्णु। हर हर महादेव।

#हरिशयनीएकादशी #विष्णुशयनोत्सव #चातुर्मास #व्रत #धार्मिकपरंपरा #आध्यात्मिकता #भगवानविष्णु #योगनिद्रा #शिवशयनोत्सव #भक्ति #पूजा #एकादशीव्रत #हिंदूधर्म #व्रतकीमहिमा #ध्यान #मंत्रजप #आध्यात्मिकउन्नति #पवित्रतिथि #श्रद्धा #धार्मिकत्योहार #शिवभक्ति #भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

For more information: www.benimadhavgoswami.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612


No comments:

Post a Comment

कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...