Thursday, July 03, 2025

गुरु पूर्णिमा 2025: श्रद्धा, परंपरा और व्यास पूजन की दिव्यता

 गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत ही नहीं, नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक ऐसा दिन है जो हमें जीवन के सच्चे पथप्रदर्शकों—गुरुओं—के योगदान को भावपूर्वक याद करने और उनका आभार व्यक्त करने का अवसर देता है।

इस बार गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 10 जुलाई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा, जो हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि है। इसी दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था—जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत की रचना और अठारह पुराणों की रचना की। उनका योगदान सनातन ज्ञान परंपरा का आधार स्तंभ है।


गुरु कौन होता है?

गुरु केवल एक शिक्षक नहीं होता, वह उस दीपक की तरह होता है जो अज्ञान के अंधकार में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। जीवन की उलझनों में जब दिशा की आवश्यकता होती है, तो गुरु ही होते हैं जो सही मार्ग दिखाते हैं। चाहे वे हमारे विद्यालय के शिक्षक हों, आध्यात्मिक मार्गदर्शक हों या वे मित्र जिन्होंने कठिन समय में साथ दिया—जो भी हमें ज्ञान, चेतना और विवेक देता है, वह हमारे लिए गुरु है।

गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक पक्ष: व्यास पूजन विधि

इस दिन विशेष रूप से व्यास पूजा की जाती है, जो केवल ऋषि वेदव्यास को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण गुरुपरंपरा को समर्पित होती है। शास्त्रों में इस पूजन की विधि इस प्रकार बताई गई है:

  • प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म के बाद, संकल्प करें —
    "गुरुपरम्परासिद्ध्यर्थं व्यासपूजां करिष्ये।"

  • इसके बाद श्रीपर्णी वृक्ष (अर्जुन, पीपल आदि) की छाया में या घर में चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर, उस पर पूर्व-पश्चिम (प्राग) और उत्तर-दक्षिण (उदग) दिशा में गंध से बारह-बारह रेखाएं खींचें और व्यास-पीठ स्थापित करें।

  • फिर दशों दिशाओं में अक्षत (चावल) डालकर दिग्बंधन करें।

  • इसके बाद ब्रह्म, ब्रह्मा, परा-अपरा शक्ति, वेदव्यास, शुकदेव, गौड़पाद, गोविन्दस्वामी और आदि शंकराचार्य का नाममंत्र से आवाहन और पूजन करें।

  • अंत में अपने दीक्षा गुरु, पिता, पितामह, भ्राता आदि का देवतुल्य भाव से पूजन करें।

यह विस्तृत विधान आदि शंकराचार्य विरचित 'व्यासपूजाविधि' ग्रंथ में पाया जा सकता है।

कैसे मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?

  • इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में उपस्थित होकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।

  • मंदिरों में विशेष पूजा, हवन और प्रवचन होते हैं।

  • कई लोग व्रत रखते हैं और गुरु-गृह या विद्यालय जाकर अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं।

  • कुछ लोग अपने आध्यात्मिक गुरुओं के आश्रमों में जाकर सेवा करते हैं या भावपूर्ण भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं।

एक भावनात्मक जुड़ाव

गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि संस्कारों और कृतज्ञता की ऊर्जा का उत्सव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में जहाँ कहीं हम पहुँचे हैं, वहाँ तक पहुँचने में किसी न किसी गुरु का हाथ अवश्य होता है। यह दिन हमारी जड़ों से जुड़ने, विनम्रता और आभार प्रकट करने का श्रेष्ठ अवसर है।

अंतिम विचार

10 जुलाई 2025 की गुरु पूर्णिमा एक बार फिर हमें याद दिलाएगी कि ज्ञान केवल पुस्तकों में नहीं होता, वह जीवन में मार्ग दिखाने वाले लोगों में भी होता है।
इस दिन कुछ पल रुककर उन गुरुओं को धन्यवाद अवश्य दें—चाहे वे आपके शिक्षक हों, आध्यात्मिक आचार्य हों या आपके जीवन के अनुभव हों—क्योंकि उन्होंने ही आपको वह बनाया जो आज आप हैं।

🙏 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
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