भारत का हर पर्व किसी न किसी आध्यात्मिक भाव से जुड़ा होता है। ऐसा ही एक महान पर्व है — श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। यह दिन न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और आस्था का भी प्रतीक है।
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब है?
2025 में अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त को रात 11:49 बजे से होगी और यह समाप्त होगी 16 अगस्त को रात 9:34 बजे।
ऐसे में 16 अगस्त, शनिवार को पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व
भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को मथुरा की कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। यह वही समय था जब अन्याय और पापों से धरती कराह रही थी और धर्म अधर्म के नीचे दबता जा रहा था। श्रीकृष्ण का जन्म इस अंधकार को समाप्त करने और सत्य की पुनः स्थापना के लिए हुआ।
🌼 क्या करते हैं इस दिन?
व्रत रखते हैं और रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म के बाद ही फलाहार या प्रसाद लेते हैं।
मंदिरों में झांकियां, कीर्तन, और पालना उत्सव होते हैं।
घरों में देवकी-वसुदेव और बालकृष्ण की झांकी सजाकर पूजन किया जाता है।
अगले दिन 'नन्दोत्सव' मनाया जाता है, जिसमें भगवान को झूले में झुलाया जाता है और उन्हें घी, दही, हल्दी से अभिषेक किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्म की पौराणिक कथा
🌍 जब पृथ्वी बोली – “अब और नहीं”
द्वापर युग में जब धरती पापों और अत्याचारों से बोझिल हो गई, तब वह गौ का रूप धरकर सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के पास पहुँची। ब्रह्मा जी सब देवताओं को लेकर क्षीर सागर गए और वहाँ भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया — "मैं स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर धर्म की रक्षा करूंगा।"
उन्होंने बताया कि वे वसुदेव और देवकी के पुत्र रूप में मथुरा में जन्म लेंगे।
कंस का अत्याचार और आकाशवाणी
देवकी, जो कंस की बहन थीं, का विवाह वसुदेव से हुआ। विवाह के बाद जब कंस उन्हें विदा कर रहा था, तभी आकाशवाणी हुई – “हे कंस! तेरी बहन का आठवाँ पुत्र तेरा अंत करेगा।”
कंस ने देवकी को मारने की ठानी, पर वसुदेव ने वचन दिया कि वह अपनी सभी संतानें उसे सौंप देगा। कंस ने दोनों को बंदीगृह में डाल दिया।
एक-एक कर कंस ने वसुदेव-देवकी की सात संतानों को मार डाला।
कृष्ण का चमत्कारी जन्म
आठवीं संतान के रूप में जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो पूरी कारागार में प्रकाश फैल गया। हथकड़ियाँ अपने आप खुल गईं, दरवाजे खुल गए और पहरेदार गहरी नींद में सो गए। श्रीकृष्ण ने वसुदेव को आदेश दिया कि वे उन्हें गोकुल ले जाकर वहाँ यशोदा के पास छोड़ आएं और वहां की नवजात कन्या को वापस ले आएं।
वसुदेव ने टोकरी में श्रीकृष्ण को रखा और जैसे ही यमुना में उतरे, पानी बढ़ गया। भगवान ने पाँव बाहर निकाले, तो यमुना शांत हो गई। वे गोकुल पहुँचे, श्रीकृष्ण को सुला दिया और यशोदा की कन्या को लेकर लौट आए।
कन्या बनी देवी और कंस को चेतावनी
जैसे ही वसुदेव लौटे, सब कुछ फिर से पहले जैसा हो गया। जब कंस ने कन्या को पत्थर पर पटकना चाहा, वह हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली —
“हे कंस! तुझे मारने वाला तो गोकुल में पहले ही जन्म ले चुका है।”
श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं और अधर्म पर विजय
बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने पूतना, शकटासुर, अघासुर जैसे अनेक राक्षसों का अंत किया। उन्होंने धर्म की पुनः स्थापना, भक्तों की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए अनेक लीलाएं कीं।
जन्माष्टमी व्रत की महिमा
इस दिन व्रत रखने से कहा जाता है कि व्यक्ति सात जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।
धर्मग्रंथों में पलंग पर देवकी-वसुदेव के साथ श्रीकृष्ण की मूर्ति रखकर उनका पूजन करने की परंपरा है।
रात्रि 12 बजे आरती करके भगवान श्रीकृष्ण को झूले में झुलाया जाता है।
अंत में एक प्रार्थना…
जन्माष्टमी सिर्फ एक पर्व नहीं, यह उस प्रेम का दिन है जो राधा-कृष्ण में दिखता है, वह विश्वास जो वसुदेव-देवकी में था, और वह साहस जो अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ।
🙏 हे नंदलाल, हमारे जीवन में भी उजाला करो, जैसे तुमने द्वापर में किया था।
🕯️ "जय कन्हैयालाल की!"
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