भारत में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है, जिनमें हर एक का अपना धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भाव होता है। इन्हीं में से एक है कोकिलाव्रत, जो विशेष रूप से आषाढ़ मास की पूर्णिमा से शुरू होकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है तथा स्त्रियों के लिए सौभाग्य, संतान सुख, सुखमय वैवाहिक जीवन और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
कोकिला व्रत कब रखा जाता है?
कोकिलाव्रत की शुरुआत आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (पूर्णिमासे) के दिन होती है और यह श्रावणी पूर्णिमा तक चलता है। उदाहरण स्वरूप, वर्ष 2024 में यह व्रत 20 जुलाई से शुरू हुआ था।
कोकिलाव्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता है कि देवी सती ने भगवान शिव को पाने के लिए कोयल के स्वर और रूप में कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अगले जन्म में पार्वती के रूप में स्वीकार किया। इसलिए इस व्रत में कोयल पक्षी का प्रतीकात्मक महत्व है और इसे “कोकिला व्रत” कहा जाता है।
कोकिला व्रत का महत्व
विवाहित स्त्रियों के लिए: यह व्रत पति की लंबी आयु, अखंड सौभाग्य और सुख-शांति पूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है।
अविवाहित कन्याओं के लिए: वे इस व्रत के माध्यम से गुणी और सुयोग्य वर की प्राप्ति की कामना करती हैं।
यह व्रत श्रद्धा, संयम और तप का प्रतीक है और मनोकामनाएँ पूरी करने वाला माना जाता है।
कोकिलाव्रत का विधान और पूजा विधि
व्रत की शुरुआत:
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के सायंकाल स्नान करके संकल्प लें कि आप ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कोकिलाव्रत करेंगी।संकल्प और स्नान नियम:
श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को नदी, झरना, बावड़ी, कुआं या तालाब के पास जाकर यह संकल्प करें —
“मम धन-धान्यादि सहित सौभाग्य प्राप्ति के लिए, शिवजी को प्रसन्न करने हेतु कोकिलाव्रत करूँगी।”प्रारंभ के आठ दिन: भीगे और पिसे हुए आँवले में सुगंधित तिलतैल मिलाकर स्नान करें।
अगले आठ दिन: भीगे और पिसी हुई मुरमांसी तथा दस औषधियों (जैसे वच, कुश्ता आदि) से स्नान करें।
फिर आठ दिन: भीगे और पिसे हुए बच के जल से स्नान करें।
अंत के छह दिन: तिल और आँवले के जल से स्नान करते रहें।
पूजा विधि:
प्रतिदिन स्नान के बाद मिट्टी से बनी कोयल (कोकिला) की मूर्ति की पूजा करें।
चंदन, सुगंधित पुष्प, धूप, दीप, तिल और तन्दुल आदि का नैवेद्य अर्पित करें।
‘तिलस्नेहे’ से प्रार्थना करें।
भगवान शिव को अर्पित करें: भांग, धतूरा, बेलपत्र, केसर, लाल पुष्प।
माता पार्वती को अर्पित करें: लाल पुष्प, रोली, सिंदूर।
पंचोपचार विधि से पूजा करें (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य)।
शिव चालीसा का पाठ करें और शिव-पार्वती मंत्रों का जाप करें।
व्रत का पालन:
दिनभर निराहार (अनाहार) व्रत रखें।
सूर्यास्त के बाद पुनः पूजन करें।
व्रत का समापन (पारण):
श्रावणी पूर्णिमा के दिन, तांबे के पात्र में मिट्टी से बनी कोयल को सुवर्ण के पंख और रत्नों की आँखें लगाकर वस्त्र-आभूषण से सजाएं।
सास-ससुर, ज्योतिषी, पुरोहित या कथा वाचक को भेंट करें।
अगले दिन प्रातःकाल फलाहार ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
निष्कर्ष
कोकिला व्रत नारी शक्ति की आस्था, श्रद्धा और संकल्प का प्रतीक है। यह व्रत न केवल भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि यह बताता है कि संयम, तप और प्रेम से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। यदि आप जीवन में सुख, समृद्धि और अच्छे वैवाहिक संबंध की कामना रखते हैं, तो कोकिला व्रत श्रद्धापूर्वक करना अत्यंत शुभ एवं फलदायी होता है। #कोकिला_व्रत #सौभाग्य_का_व्रत #शिव_पार्वती_व्रत #नारी_शक्ति #व्रत_विधि #श्रावण_व्रत #आषाढ़_पूर्णिमा #श्रद्धा_और_भक्ति #भारतीय_संस्कृति #पार्वती_पूजन #व्रत_त्योहार #धार्मिक_परंपरा #आस्था_का_त्योहार #विवाहिक_सौभाग्य #स्त्री_धर्म #भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami
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