भारत त्योहारों की भूमि है — जहाँ हर दिन किसी न किसी परंपरा और श्रद्धा से जुड़ा होता है। इन्हीं पवित्र त्योहारों में एक है नाग पंचमी, जो खास तौर पर नाग देवता की पूजा और उनके प्रति आस्था प्रकट करने का दिन है। यह पर्व भक्ति, श्रद्धा और परंपराओं से भरा हुआ होता है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कहानियाँ और सामाजिक मान्यताएँ प्रचलित हैं, जो इस त्योहार को और भी खास बना देती हैं।
नाग पंचमी 2025 में कब है?
इस साल नाग पंचमी का पर्व 29 जुलाई 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। परंपरा के अनुसार, पंचमी तिथि में जब सूर्योदय हो, तब उसे 'परविद्धा पंचमी' मानकर व्रत और पूजा की जाती है। कुछ क्षेत्रों में यह पर्व कृष्ण पक्ष में भी लोकाचार अनुसार मनाया जाता है।
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, हिन्दू धर्म में नाग पंचमी के नाम से जानी जाती है। इस दिन नागों की पूजा करना एक प्राचीन परंपरा रही है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन घर की दीवारों या आंगन में नाग की आकृति बनाकर, दूध, फूल और दूर्वा अर्पण करते हुए शेषनाग, तक्षक, वासुकी जैसे नागों की पूजा करनी चाहिए।
वर्षा ऋतु और नागों का संबंध
सावन में जब बारिश अपने पूरे जोरों पर होती है, तब सर्प अक्सर अपने बिलों से बाहर निकलते हैं। क्योंकि उनके बिलों में पानी भर जाता है और उन्हें बाहर आना ही पड़ता है। ऐसे समय में उनकी पूजा करने से ना केवल भय दूर होता है, बल्कि प्रकृति के इन प्राचीन जीवों के प्रति सम्मान भी प्रकट होता है। गांवों में इसे प्यार से “नागपचैयाँ” भी कहा जाता है।
🌍 भारत के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाते हैं नाग पंचमी
बंगाल, असम और झारखंड जैसे क्षेत्रों में मनसा देवी की पूजा होती है जिन्हें नागों की देवी माना गया है। वहाँ की महिलाएँ संतान प्राप्ति की कामना से नागों की पूजा करती हैं।
दक्षिण भारत में नागों की मूर्तियों पर दूध, हल्दी और चंदन चढ़ाकर पूजा होती है।
कश्मीर में कई जलस्रोतों के नाम नागों पर रखे गए हैं जैसे अनंतनाग, भेरीनाग आदि।
🔯 ज्योतिष और पंचमी तिथि का संबंध
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार पंचमी तिथि के अधिपति स्वयं नाग माने गए हैं। अग्नि पुराण में भी लिखा गया है कि इस दिन नागों का पूजन विशेष फलदायक होता है। माना जाता है कि दूध और पुष्प नागों को अत्यंत प्रिय होते हैं।
नाग पंचमी की लोककथा: एक बहन और नागों का बंधन
बहुत पुरानी बात है... एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में सात बहुएँ थीं। जब सावन आया, तो छह बहुएँ मायके चली गईं। लेकिन सातवीं बहू की कोई सगा भाई नहीं था। बहुत दुखी होकर उसने शेषनाग को भाई मानकर याद किया।
शेषनाग वृद्ध ब्राह्मण का रूप लेकर आए और बहू को पाताल लोक ले गए। वहाँ वह बड़े चैन से रहने लगी। उसी दौरान शेषनाग की वंश में कई नाग बच्चे हुए।
एक दिन बहू को एक खास दीपक दिया गया जिससे वह अंधेरे में भी सब देख सकती थी। लेकिन एक दिन गलती से वह दीपक नीचे गिर गया और नीचे खेल रहे नाग बच्चों की पूँछें जल गईं। इससे नाग बच्चे नाराज़ हो गए।
कुछ समय बाद वह बहू फिर से ससुराल लौट आई। अगले सावन में उसने दीवार पर नाग देवता बनाकर श्रद्धा से पूजा की। जब नाग बच्चे उसे मारने पहुँचे तो उसकी सच्ची श्रद्धा और पूजा देखकर उनका सारा गुस्सा शांत हो गया।
उल्टा उन्होंने उसे दूध और चावल का प्रसाद भी लिया, उसे वरदान दिया कि वह सर्पों से सदा सुरक्षित रहेगी और साथ में मणियों की एक माला भी दी।
🐍 नागों का वचन
नागों ने कहा:
“जो कोई हमें इस दिन भाई समझकर पूजेगा, उसकी हम सदा रक्षा करेंगे।”
अंत में...
नाग पंचमी हमें प्रकृति के हर प्राणी के प्रति श्रद्धा और संवेदना का संदेश देती है। यह केवल एक धार्मिक दिन नहीं, बल्कि भाई-बहन जैसे पवित्र बंधनों को भी दर्शाता है। जब हम दिल से किसी को भाई मान लेते हैं, तो वह चाहे इंसान हो या सर्प, वह हमारी रक्षा जरूर करता है।
इसलिए, नाग पंचमी केवल नागों की पूजा नहीं, एक आत्मीय रिश्ते को निभाने का दिन भी है।
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