हर साल जब बरसात की पहली बूंद ज़मीन को छूती है, तब प्रकृति के साथ-साथ धार्मिक माहौल भी कुछ अलग सा हो जाता है। इस साल 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास का शुभारंभ हो रहा है। यह चार महीने की विशेष धार्मिक अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है। इस समय को भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जोड़ा जाता है, जब वे क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। माना जाता है कि इस दौरान सृष्टि का संचालन ब्रह्मा और शिव करते हैं।
देवशयनी एकादशी व्रत विधि और पूजन
इस पावन अवसर पर भगवान की मूर्ति या चित्र सोने, चाँदी, ताँबे, पीतल या कागज से बनवाकर विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। रात्रि में 'सुप्ते त्वयि जगन्नाथे' मंत्र से प्रार्थना कर भगवान को सुखसाधनों से सजी शय्या पर आराम कराना चाहिए। ऐसा कहा गया है कि भगवान सोते समय, करवट बदलते समय और जागने के समय विशेष नक्षत्रों के तृतीयांश (अनुराधा, श्रवण और रेवती) में होते हैं। इसलिए चातुर्मास के व्रत पारण के समय भी इन नक्षत्रों के तृतीयांश का ध्यान रखा जाता है।
चातुर्मास में आचार-विचार और नियम
यह केवल व्रत नहीं, बल्कि आत्मिक अनुशासन और संयम का समय है। इस दौरान भक्त यात्रा करने की बजाय एक स्थान पर रहकर साधना, ध्यान और आराधना में संलग्न रहते हैं। देवशयन के चातुर्मासीय व्रतों में पलंग पर सोना, पत्नी के साथ स्नेह करना, मिथ्या बोलना, मांसाहार, शहद, और दूसरे द्वारा दिया गया दही-भात, मूली, पटोल, बैगन आदि सब्जियों का सेवन त्यागना चाहिए।
चातुर्मास के दौरान भोजन
क्या न खाएं: मांस, मछली, अंडा, प्याज, लहसुन, दही, मूली, साग और भारी तली हुई चीज़ें।
क्यों न खाएं: बारिश के मौसम में पाचन तंत्र कमजोर होता है और ये वस्तुएं शरीर में विकार उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे साधना में बाधा आती है।
क्या खाएं: हल्का, सात्विक और घर का बना भोजन, मौसमी फल, उबली हुई सब्जियाँ और एकादशी व अन्य तिथियों पर फलाहार।
ज़मीन पर सोने का नियम
कई भक्त इस समय ज़मीन पर सोते हैं, जो परंपरा ही नहीं बल्कि विनम्रता और संतुलन का प्रतीक भी है।
चातुर्मास का आध्यात्मिक महत्व
भक्ति और साधना का समय: मंदिरों में भजन-कीर्तन, कथा, प्रवचन और साधना के विशेष आयोजन होते हैं।
प्रकृति से जुड़ाव: वर्षा ऋतु का शुद्ध वातावरण साधकों को प्रकृति और परमात्मा से जुड़ने का अवसर देता है।
संयम और त्याग: यह समय हमारे भीतर की इच्छाओं को नियंत्रित कर सरल और सच्चे जीवन की सीख देता है।
चातुर्मास के लाभ
शारीरिक: उपवास और संयम से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और रोगों से बचाव होता है।
मानसिक: ध्यान और साधना से मन शांत और स्थिर रहता है।
आध्यात्मिक: पापों का प्रायश्चित होता है और ईश्वर के प्रति आत्मीयता बढ़ती है।
निष्कर्ष
चातुर्मास कोई दिखावे का समय नहीं, बल्कि आत्मा को निखारने, जीवन को समझने और ईश्वर से जुड़ने का पवित्र अवसर है। इस 6 जुलाई से एक छोटा-सा संकल्प लें कि भले ही पूरी तरह नियमों का पालन न हो पाए, पर सच्ची श्रद्धा और मन से प्रयास जरूर करेंगे। इससे जीवन में सकारात्मक बदलाव अवश्य आएगा।
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