Monday, June 09, 2025

संत कबीर दास जयंती 2025: 11 जून को कबीर के उपदेशों पर चिंतन

 हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को संत कबीर दास जी की जयंती बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। साल 2025 में ये पावन दिन 11 जून को पड़ रहा है। ये दिन केवल उनके जन्म की याद नहीं दिलाता, बल्कि उनके गहरे विचारों और समाज को दिए गए संदेशों पर मनन करने का भी अवसर होता है।



कब हुआ था संत कबीर का जन्म?

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, संत कबीर दास का जन्म 1398 ईस्वी में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी (जो आज वाराणसी के नाम से जाना जाता है) में हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कई मत हैं, लेकिन जनमान्यता के अनुसार उन्हें एक मुस्लिम जुलाहा परिवार ने पाला था। यही बात उन्हें खास बनाती है — उनका जीवन एकता और इंसानियत की मिसाल रहा है।

क्यों खास है कबीर जयंती?

कबीर दास सिर्फ एक संत नहीं थे, वो एक ऐसे विचारक थे जि  ने उस समय की सामाजिक कुरीतियों को खुलकर चुनौती दी। उन्होंने जात-पात, धार्मिक पाखंड और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई और समाज को सच्चाई और भक्ति का रास्ता दिखाया।

कबीर के दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। उनकी वाणी हमें सिखाती है कि धर्म इंसानियत से ऊपर नहीं हो सकता।

कैसे मनाई जाती है कबीर जयंती?

इस दिन देशभर में कबीरपंथी और उनके अनुयायी सत्संग, कीर्तन और भजन सभाओं का आयोजन करते हैं। संत कबीर की कविताओं और दोहों को पढ़ा और गाया जाता है, जिनसे जीवन के गहरे अर्थ समझने को मिलते हैं।

कई जगहों पर भण्डारे का आयोजन होता है जहाँ सभी धर्म, जाति और वर्ग के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं — जो खुद में कबीर के संदेश को ज़िंदा रखने का तरीका है।

कबीर का संदेश आज के समय में

आज के समाज में जहाँ फिर से धार्मिक और सामाजिक विभाजन की बातें ज़ोर पकड़ रही हैं, कबीर के विचार पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी लगते हैं। उन्होंने कहा था:

“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।”

उनका सीधा सा मतलब था कि किसी इंसान को उसके कर्म और ज्ञान से पहचानो, न कि उसके जन्म या जाति से।

अंत में…

कबीर दास जयंती सिर्फ एक परंपरा नहीं है, ये एक मौका है उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का। अगर हम वाकई संत कबीर को मानते हैं, तो जरूरी है कि हम भी इंसानियत, समानता और सच्चाई की राह पर चलने की कोशिश करें।

इस साल 11 जून को आइए, कबीर की वाणी को सिर्फ पढ़ें नहीं — उसे जिएं भी।

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