गंगा दशहरा 2025 कब है?
गंगा दशहरा का पर्व 2025 में 5 जून, बुधवार को मनाया जाएगा।
वर्तमान वैदिक पंचांग के अनुसार:
दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जून 2025 को रात 11:54 बजे
दशमी तिथि समाप्त: 5 जून 2025 को रात 2:17 बजे
चूंकि 5 जून को उदया तिथि है, इसलिए गंगा दशहरा इसी दिन मनाया जाएगा।
गंगा दशहरा का महत्व
गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं।
इस दिन:
गंगा स्नान से दश (10) प्रकार के पापों का नाश होता है।
देवी गंगा की पूजा, तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य से अक्षय फल प्राप्त होता है।
यह दिन आध्यात्मिक शुद्धि, मोक्ष और पितृ मुक्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
गंगा दशहरा की पूजा विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, विशेष रूप से गंगा या किसी पवित्र नदी में।
गंगाजल में स्नान न कर सकें तो कुछ बूंदें गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान करें।
माँ गंगा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
सफेद फूल, अक्षत, धूप-दीप, तुलसी पत्र और मिठाई अर्पित करें।
“ॐ नमः शिवाय”, “ॐ गंगायै नमः” मंत्रों का जाप करें।
पितरों के लिए तर्पण व पिंडदान करें।
गंगा जल का छिड़काव पूरे घर में करें।
ज़रूरतमंदों को जल, फल, वस्त्र और पंखे आदि का दान करें।
गंगा दशहरा की पौराणिक कथा
राजा सगर और उनके साठ हजार पुत्रों की कथा
प्राचीन काल में अयोध्या में राजा सगर राज्य करते थे। उनकी दो रानियाँ थीं – केशिनी और सुमति। सुमति के 60,000 पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ का घोड़ा छोड़ा।
इंद्र ने उस घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। सगर ने अपने पुत्रों को घोड़ा खोजने भेजा। वे मुनि की तपस्या में विघ्न डाल बैठे, जिससे क्रोधित होकर मुनि की दृष्टि से वे सभी भस्म हो गए।
गंगा के धरती पर आने की कथा
राजा सगर के पोते अंशुमान और परपोते दिलीप ने गंगा को धरती पर लाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे।
अंततः भागीरथ ने घोर तपस्या की, जिससे ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और गंगा को धरती पर भेजने का वरदान दिया।
गंगा का वेग अत्यधिक होने के कारण ब्रह्मा जी ने सलाह दी कि केवल भगवान शिव ही उसे संभाल सकते हैं। भागीरथ ने शिवजी की भी कठोर तपस्या की।
शिवजी प्रसन्न हुए और गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। गंगा वहीं अटक गईं क्योंकि उन्हें अपने वेग पर घमंड था।
जान्हवी नाम की उत्पत्ति
जब गंगा धरती पर उतर रही थीं, तब उन्होंने ऋषि जन्हु की तपस्या में विघ्न डाला। क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को पी लिया। बाद में देवताओं की प्रार्थना पर उन्होंने गंगा को अपनी जांघ से पुनः प्रकट किया। तभी से गंगा को जान्हवी कहा जाने लगा।
सगरपुत्रों को मिला मोक्ष
गंगा अंततः कपिल मुनि के आश्रम पहुँची और वहाँ सगर के पुत्रों के भस्म को स्पर्श कर उन्हें मुक्ति प्रदान की।
ब्रह्मा जी ने इस पुण्य कार्य से प्रसन्न होकर गंगा को भागीरथी नाम दिया और भागीरथ को सुखपूर्वक राज्य करने का आशीर्वाद दिया।
गंगा दशहरा से जुड़ी मान्यताएँ
इस दिन स्नान से शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।
दस पाप (कायिक, वाचिक और मानसिक) नष्ट होते हैं।
गंगा दर्शन और स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप मिटते हैं।
यह दिन मोक्ष प्रदान करने वाला और पितरों को तृप्त करने वाला माना जाता है।
निष्कर्ष
गंगा दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का एक महान अवसर है। माँ गंगा का धरती पर आगमन न केवल हमारे पूर्वजों के उद्धार का प्रतीक है, बल्कि यह हमें भी अपने जीवन को शुद्ध, सरल और सेवा-भाव से परिपूर्ण करने की प्रेरणा देता है।
इस गंगा दशहरा पर माँ गंगा से यही प्रार्थना करें:
“पावन गंगा, हमारे जीवन को भी पवित्र कर दो। हमारे पापों का हरण करो और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दो।”
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