धूमावती जयंती हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन देवी धूमावती की पूजा का महत्व बहुत अधिक होता है, जो दरिद्रता और आलस्य को दूर करने वाली मानी जाती हैं। इस साल, यानी 2025 में, धूमावती जयंती 3 जून को पड़ी। देवी धूमावती दस महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या के रूप में जानी जाती हैं। उन्हें दरिद्रता नष्ट करने और जीवन में समृद्धि लाने वाली देवी माना जाता है।
धूमावती जयंती का महत्व
धूमावती जयंती का दिन विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। इस दिन देवी धूमावती की पूजा करने से जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ दूर होती हैं और मनुष्य को आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से पूजा करता है, तो उसकी दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उसकी किस्मत बदल जाती है। विशेष रूप से इस दिन की पूजा से मानसिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धूमावती देवी का स्वरूप एक विधवा का होता है, इसीलिए विवाहित महिलाएं उनकी पूजा करने से बचती हैं। इस रूप में देवी के दर्शन करना या पूजा करना एक विशेष उद्देश्य के साथ किया जाता है, जो जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
पूजा विधि
धूमावती जयंती पर पूजा विधि बहुत विशेष होती है। इस दिन को सही तरीके से मनाने के लिए आपको कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होते हैं:
ब्रह्म मुहूर्त में उठें:
पूजा शुरू करने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। यह समय बहुत ही पवित्र माना जाता है और पूजा के लिए उपयुक्त होता है।मूर्ति या चित्र स्थापित करें:
देवी धूमावती की मूर्ति या चित्र को एक चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद, देवी के सामने सफेद वस्त्र, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी, दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चंदन, नारियल और पंचमेवा अर्पित करें।मंत्र का जाप करें:
'ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा' यह मंत्र रुद्राक्ष की माला से जाप करें। इस मंत्र का जाप विशेष रूप से दरिद्रता को दूर करने में सहायक माना जाता है।भोग अर्पित करें:
पूजा में देवी को भोग में सूखी रोटी पर नमक लगाकर या कचौड़ी और पकौड़ी अर्पित करें। ये भोग विशेष रूप से धूमावती को प्रिय होते हैं।धूमावती स्तोत्र का पाठ करें:
पूजा के अंत में, धूमावती स्तोत्र का पाठ करें। यह स्तोत्र देवी धूमावती की कृपा को प्राप्त करने में मदद करता है और विशेष रूप से मानसिक शांति और सुख-समृद्धि का अहसास कराता है।
धूमावती की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगी थी। अपनी भूख को शांत करने के लिए उन्होंने भगवान शिव को ही निगल लिया। भगवान शिव ने इस पर उन्हें श्राप दिया कि वह हमेशा विधवा स्वरूप में रहेंगी। इस श्राप के कारण देवी पार्वती ने विधवा का रूप धारण किया और उनका यही रूप देवी धूमावती के रूप में पूजित हुआ।
धूमावती देवी के इस रूप में पूजा का उद्देश्य मानसिक शांति, दरिद्रता को समाप्त करना और जीवन को समृद्ध बनाना है। उनके बारे में यह माना जाता है कि वे उन लोगों की मदद करती हैं जो कठिनाइयों और कष्टों से जूझ रहे होते हैं।
निष्कर्ष
धूमावती जयंती का पर्व केवल एक धार्मिक दिन नहीं है, बल्कि यह जीवन की मुश्किलों से उबरने, दरिद्रता से छुटकारा पाने और मानसिक शांति प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यदि आप भी जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं, तो इस दिन देवी धूमावती की पूजा करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएं।
इस विशेष दिन को श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाएं, ताकि देवी की कृपा आपके ऊपर बनी रहे।
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