Thursday, June 12, 2025

कुमार षष्ठी 30 जून 2025: संतान सुख और कल्याण के लिए समर्पित एक पावन पर्व

 हर महीने जब चंद्रमा शुक्ल पक्ष में होता है और उसका छठा दिन आता है, तब मनाया जाता है एक खास पर्व – कुमार षष्ठी, जिसे स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। ये दिन भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है, जो कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और देवताओं के सेनापति के रूप में जाने जाते हैं।

इस पर्व को खासतौर पर संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखद भविष्य के लिए मनाया जाता है। कई माता-पिता तो इसे संतान षष्ठी भी कहते हैं, खासकर उत्तर भारत में। वहीं दक्षिण भारत में इस दिन की भक्ति और धूमधाम का अंदाज़ थोड़ा अलग और बेहद रंगीन होता है।



कुमार षष्ठी क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने इसी दिन ताड़कासुर जैसे राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस दिन को असुरों पर विजय और दिव्य शक्ति की आराधना के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

संतान के इच्छुक दंपत्ति या वो माता-पिता जो अपने बच्चों की तरक्की, सेहत और दीर्घायु चाहते हैं, वे इस दिन भगवान स्कंद की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पूजा की तैयारी कैसे करें?

1. सुबह जल्दी उठना और स्नान

जैसे ही सूरज की पहली किरण फूटे, कोशिश करें कि आप जाग जाएं। स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें। पूजा में स्वच्छता सबसे ज़रूरी होती है — ये बात हम सब जानते हैं।

2. घर और पूजा स्थल की सफाई

सिर्फ शरीर नहीं, घर और विशेष रूप से पूजा का स्थान भी साफ करना चाहिए। अगर संभव हो तो कुछ फूलों से सजावट करें। घर का माहौल खुद-ब-खुद भक्ति से भर जाएगा।

3. व्रत का संकल्प लें

भगवान स्कंद को स्मरण करते हुए मन ही मन संकल्प लें कि आज आप उपवास रखेंगे और श्रद्धा से पूजा करेंगे। कुछ लोग फलाहार करते हैं, तो कुछ केवल जल पर व्रत रखते हैं — ये पूरी तरह आपकी क्षमता और श्रद्धा पर निर्भर करता है।

भगवान स्कंद की पूजा विधि

  • एक साफ वेदी पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर रखें।

  • पंचामृत (दूध, दही, शहद, शक्कर और घी) से उनका अभिषेक करें।

  • इसके बाद उन्हें चंदन और हल्दी का तिलक लगाएं।

  • दीपक जलाएं — घी का दीपक सबसे शुभ माना जाता है।

  • ताजे फूलों की माला अर्पित करें।

  • कुछ मीठा भोग लगाएं, जैसे गुड़, नारियल, या घर की बनी मिठाई।

  • मंत्रों का उच्चारण करें और आरती करें।

मूल मंत्र:
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महा सैन्या धीमहि, तन्नो स्कंदः प्रचोदयात्।”

“देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥”

अगर आप मंत्र न जानें, तो भी भगवान के प्रति सच्चे मन से प्रार्थना करें — यही सबसे बड़ा मंत्र होता है।

अर्चना, कथा और दान

पूजा के बाद भगवान स्कंद की कहानी (कथा) सुनना बेहद शुभ माना जाता है। इससे उनकी महिमा और जीवन से जुड़ी प्रेरणाएं पता चलती हैं।

इस दिन दान भी ज़रूरी माना गया है। अन्न, वस्त्र, और जरूरतमंदों की मदद करें। ऐसा करने से पूजा का फल और भी बढ़ जाता है।

स्कंद षष्ठी का आध्यात्मिक महत्व

इस दिन की गई पूजा और व्रत से न सिर्फ संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में आने वाली अनेक बाधाएं, रोग और मानसिक परेशानियाँ भी दूर होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो सच्चे मन से भगवान स्कंद की आराधना करता है, उसे साहस, शक्ति और आत्मबल की प्राप्ति होती है।

दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी

तमिलनाडु और केरल में इस पर्व का रूप बेहद भव्य होता है। मंदिरों में विशेष आयोजन, शोभायात्राएं और भजन-कीर्तन होते हैं। कुछ भक्त तो इस दिन कावड़ी यात्रा जैसी कठिन तपस्याएं भी करते हैं।

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