भारतीय संस्कृति में कुछ तिथियाँ ऐसी होती हैं जो पूरे वर्ष विशेष शुभ मानी जाती हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, जिसे हम विजयादशमी या आम बोलचाल में दशहरा कहते हैं, उन्हीं में से एक है। यह दिन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
विजयादशमी का महत्व
धर्मग्रंथों जैसे हेमाद्रि, निर्णयसिन्धु, व्रतराज और धर्मसिन्धु आदि में विजयादशमी का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस दिन को तीन सबसे शुभ तिथियों में गिना गया है। अन्य दो हैं – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा।
इसी कारण लोग इस दिन –
नए कार्य की शुरुआत करते हैं,
बच्चे अक्षरारंभ (विद्या की शुरुआत) करते हैं,
और राजा युद्ध-प्रयाण को शुभ मानते थे।
तिथि और नक्षत्र का विचार
शास्त्रों के अनुसार विजयादशमी का मुख्य समय अपराह्न माना गया है। प्रदोष (शाम का समय) गौण होता है।
यदि दशमी पर श्रवण नक्षत्र आता है तो वह विशेष शुभ होती है।
यदि दशमी नवमी से मिलती है तो भी उसे मान्य माना गया है।
कई ग्रंथों में दशमी और एकादशी के संयुक्त होने पर भी अलग-अलग नियम बताए गए हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो विजयादशमी का समय और तिथि जटिल जरूर है, परंतु लोगों की आस्था इसे हर रूप में शुभ मानती है।
प्रमुख अनुष्ठान
विजयादशमी पर कई परंपराएँ प्रचलित हैं। इनमें मुख्य हैं –
1. अपराजिता पूजन
अपराह्न काल में गाँव या नगर के उत्तर-पूर्व दिशा में जाकर भूमि को लीपकर, आठ कोणों का चित्र बनाकर अपराजिता देवी का पूजन किया जाता है। देवी जया और विजया का आवाहन कर 16 उपचारों से पूजा की जाती है।
2. शमी पूजन
शमी वृक्ष का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। यदि शमी उपलब्ध न हो तो अश्मन्तक वृक्ष (bauhinia racemosa) का पूजन किया जा सकता है। वैदिक यज्ञों में शमी की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी, इसीलिए यह शक्ति और साहस का प्रतीक मानी जाती है।
3. सीमोल्लंघन
इस दिन लोग अपने गाँव या नगर की सीमा लाँघकर लौटते हैं। इसे समृद्धि और शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
4. शस्त्र और औजारों की पूजा
किसानों द्वारा हल और औजारों की, तथा सैनिकों द्वारा शस्त्रों की पूजा की जाती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
प्राचीन काल में राजाओं द्वारा इस दिन घोड़ों, हाथियों और सेना का नीराजन (आरती) किया जाता था।
कुछ स्थानों पर पशुबलि की परंपरा भी जुड़ी रही है।
स्वतंत्रता से पहले मैसूर और बड़ौदा जैसी रियासतों में विजयादशमी पर भव्य शोभायात्राएँ और दरबार लगते थे।
कालिदास ने भी रघुवंश महाकाव्य में रघुवंशी राजाओं द्वारा अश्व-नीराजन का वर्णन किया है।
रामलीला और रावण-दहन
उत्तर भारत में विजयादशमी का सबसे लोकप्रिय रूप है रामलीला का समापन। नौ दिनों तक चलने वाली रामलीला का अंतिम दिन रावण-दहन के साथ होता है। यह अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
दशहरे की उत्पत्ति
दशहरे की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं –
कुछ लोग इसे कृषि-उत्सव मानते हैं, क्योंकि इस समय नई फसल आती है।
कुछ इसे युद्ध-प्रयाण का समय मानते हैं, क्योंकि बरसात समाप्त हो जाती है और मार्ग सुगम हो जाते हैं।
‘दशहरा’ शब्द दश + अहन् (दस दिन) से बना है। यही कारण है कि नवरात्र के दस दिनों के बाद दशमी को यह पर्व मनाया जाता है।
निष्कर्ष
विजयादशमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन में नई शुरुआत, शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक है। यही कारण है कि आज भी लोग इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने में हिचकिचाते नहीं हैं।