Wednesday, July 30, 2025

कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

 हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार "कल्कि" को समर्पित होता है, जो शास्त्रों के अनुसार कलियुग के अंत में प्रकट होंगे

इस वर्ष कल्कि जयंती 30 जुलाई 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी।


भगवान कल्कि – अधर्म के विनाशक, धर्म के प्रतिष्ठापक

सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु अब तक नौ बार अवतार ले चुके हैं, और दसवां अवतार "कल्कि" के रूप में होगा। जब पृथ्वी पर अधर्म, पाप, अन्याय और अज्ञानता अपनी चरम सीमा पर पहुँचेंगे, तब भगवान कल्कि श्वेत अश्व "देवदत्त" पर सवार होकर, हाथों में दिव्य खड्ग लिए प्रकट होंगे।

वे वेदों के ज्ञाता और महायोद्धा होंगे, जिनका उद्देश्य पृथ्वी से अधर्म और आसुरी वृत्तियों का विनाश करना होगा, और सत्ययुग की पुनर्स्थापना करना।

कल्कि की दिव्य कथा – पुराणों में वर्णित भविष्य

कल्कि पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार:

  • भगवान कल्कि का जन्म उत्तर प्रदेश के संभल (मुरादाबाद) में विष्णुदत्त नामक ब्राह्मण के घर होगा।

  • उन्हें भगवान परशुराम वेदों का उपदेश देंगे और भगवान शिव उन्हें अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देंगे।

  • उन्हें देवदत्त नामक दिव्य घोड़ा प्राप्त होगा और शिवजी से ही खड्ग भी मिलेगा।

  • भगवान कल्कि, पृथ्वी पर व्याप्त पाप, अनाचार और अराजकता का अंत करेंगे।

  • वे दो प्रमुख सहायकों की नियुक्ति करेंगे:

    • एक धर्मगुरु "देवापि",

    • और एक राजा "मरु",
      जो एक नए धर्मनिष्ठ समाज के मार्गदर्शक बनेंगे।

भगवान के अवतरण के पश्चात जो समाज निर्मित होगा, वह इस प्रकार वर्णित है:

"न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः।
नानाहिताग्निर्नाविद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः॥"

— वहाँ न चोर होंगे, न लालची, न शराबी, न अग्निहोत्रविहीन, न मूर्ख और न ही व्यभिचारी।

कल्कि जयंती का आध्यात्मिक महत्व

  1. धर्म की पुनर्स्थापना:
    यह दिन अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना का प्रतीक है।

  2. सत्य की विजय का संदेश:
    यह पर्व सिखाता है कि अंत में विजय सच्चाई और धर्म की ही होती है।

  3. युग परिवर्तन की घड़ी:
    यह कलियुग के अंत और सत्ययुग के प्रारंभ का संकेत है — जब अधर्म की रात समाप्त होकर धर्म का सूर्य उदय होगा।

पूजा विधि – कैसे करें भगवान कल्कि की आराधना

कल्कि जयंती के दिन निम्नलिखित विधियों से भगवान की पूजा की जाती है:

  1. प्रभात में स्नान
    गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान करके व्रत का संकल्प लें।

  2. पूजन स्थल की तैयारी
    घर के मंदिर में भगवान विष्णु या कल्कि अवतार का चित्र/प्रतिमा स्थापित करें।

  3. अभिषेक और तिलक
    भगवान को पंचामृत या गंगाजल से स्नान कराएं, गोपी चंदन से तिलक करें।

  4. भोग और आरती
    फलों, मिष्ठान्न आदि से भोग लगाकर दीपक जलाएं और आरती करें।

  5. मंत्र जाप
    "ॐ कल्कि नारायणाय नमः" मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।

  6. दान-पुण्य करें
    ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और ज़रूरतमंदों को वस्त्र व आवश्यक वस्तुएँ दान करें।

 रोचक तथ्य – कल्कि अवतार के संदर्भ

  • भगवान कल्कि का अवतरण कलियुग के अंतिम चरण में होगा।

  • उनका अश्व "देवदत्त" दिव्य और तेजस्वी होगा।

  • वे वेद, शास्त्र, युद्धनीति और न्याय में पारंगत होंगे।

  • उनके अवतरण से सत्ययुग की पुनः स्थापना होगी।

कलियुग की वर्तमान स्थिति

शास्त्रों के अनुसार कलियुग की कुल अवधि 4,32,000 वर्ष है, जिनमें से अब तक लगभग 5127 वर्ष ही बीते हैं। हम अभी भी कलियुग के प्रारंभिक चरण में हैं, लेकिन नैतिक पतन की गति बहुत तेज़ है।

निष्कर्ष: कल्कि जयंती – आत्ममंथन और जागरण का पर्व

कल्कि जयंती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागृति का अवसर है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि:

🔹 जब तक भगवान कल्कि स्वयं अवतरित नहीं होते,
🔹 तब तक हम अपने भीतर के अधर्म, क्रोध, लोभ, और द्वेष का नाश करें।
🔹 सच्चे मन से ध्यान, सेवा और दान को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।

 विश्वास ही पहला कदम है भगवान के दर्शन की ओर...

जैसा उन्होंने पहले नौ बार अवतार लिया,
वैसे ही वे फिर पधारेंगे – यह विश्वास हमारा धर्म है।

🕊️ कल्कि जयंती पर प्रार्थना करें कि हम सभी के जीवन में भी धर्म, शांति और उजास का सत्ययुग आरंभ हो। #कल्कि_जयंती #भगवान_कल्कि #कल्कि_अवतार #दशम_अवतार #विष्णु_के_अवतार #कलियुग_का_अंत #श्री_विष्णु #धर्म_की_वापसी #अधर्म_का_विनाश #सनातन_धर्म #पौराणिक_कथा #हिंदू_त्योहार #धार्मिक_मान्यता #शुभ_कल्कि_जयंती #KalkiJayanti2025 #SanatanDharma #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami

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Friday, July 25, 2025

31 जुलाई को मनाएं तुलसीदास जयंती, राम नाम में लगाएं मन

 हर साल सावन महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गोस्वामी  तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। यह दिन उन महान कवि और संत गोस्वामी तुलसीदास जी की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने ‘रामचरितमानस’ जैसी कालजयी रचना से भारतीय संस्कृति को एक नई दिशा दी। इस साल तुलसीदास जयंती 31 जुलाई को मनाई जाएगी।



कौन थे गोस्वामी तुलसीदास जी ?


श्री गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले के सोरों नामक गाँव में हुआ था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान राम के अनन्य भक्त थे और उनका पूरा जीवन रामभक्ति में ही समर्पित रहा। उन्होंने अपनी लेखनी से समाज को न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से जागरूक किया, बल्कि भक्ति साहित्य की एक मजबूत नींव भी रखी।


रामचरितमानस: एक अमर काव्य

तुलसीदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितमानस’ है, जो श्रीराम के जीवन पर आधारित है। यह काव्य न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि आज भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। इसे घर-घर में पढ़ा जाता है और इसकी चौपाइयाँ हर किसी की ज़ुबान पर होती हैं।

कैसे मनाई जाती है तुलसीदास जयंती?

इस दिन खासतौर पर राम दरबार की पूजा की जाती है। लोग अपने घरों और मंदिरों में भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की पूजा करते हैं। रामचरितमानस का पाठ किया जाता है, भजन-कीर्तन होते हैं और प्रसाद का वितरण भी किया जाता है।

आदर्शों से जुड़ने का दिन

तुलसीदास जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि ये हमें अपने जीवन में भक्ति, सेवा और सच्चाई जैसे मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा भी देती है। कई लोग इस दिन से नई शुरुआत करते हैं — जैसे नियमित पाठ शुरू करना या भक्ति मार्ग पर चलने का संकल्प लेना।

अंत में...

31 जुलाई को मनाई जाने वाली तुलसीदास जयंती हमें अपने साहित्य, संस्कृति और परंपराओं की ओर लौटने का एक सुनहरा अवसर देती है। इस दिन अगर हम थोड़ी देर के लिए भी तुलसीदास जी की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें, तो यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आत्मिक अनुभव बन सकता है। 

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नाग पंचमी 2025: 29 जुलाई को क्यों है यह विशेष दिन?

 भारत त्योहारों की भूमि है — जहाँ हर दिन किसी न किसी परंपरा और श्रद्धा से जुड़ा होता है। इन्हीं पवित्र त्योहारों में एक है नाग पंचमी, जो खास तौर पर नाग देवता की पूजा और उनके प्रति आस्था प्रकट करने का दिन है। यह पर्व भक्ति, श्रद्धा और परंपराओं से भरा हुआ होता है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कहानियाँ और सामाजिक मान्यताएँ प्रचलित हैं, जो इस त्योहार को और भी खास बना देती हैं।



नाग पंचमी 2025 में कब है?

इस साल नाग पंचमी का पर्व 29 जुलाई 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। परंपरा के अनुसार, पंचमी तिथि में जब सूर्योदय हो, तब उसे 'परविद्धा पंचमी' मानकर व्रत और पूजा की जाती है। कुछ क्षेत्रों में यह पर्व कृष्ण पक्ष में भी लोकाचार अनुसार मनाया जाता है।

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, हिन्दू धर्म में नाग पंचमी के नाम से जानी जाती है। इस दिन नागों की पूजा करना एक प्राचीन परंपरा रही है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन घर की दीवारों या आंगन में नाग की आकृति बनाकर, दूध, फूल और दूर्वा अर्पण करते हुए शेषनाग, तक्षक, वासुकी जैसे नागों की पूजा करनी चाहिए।

वर्षा ऋतु और नागों का संबंध

सावन में जब बारिश अपने पूरे जोरों पर होती है, तब सर्प अक्सर अपने बिलों से बाहर निकलते हैं। क्योंकि उनके बिलों में पानी भर जाता है और उन्हें बाहर आना ही पड़ता है। ऐसे समय में उनकी पूजा करने से ना केवल भय दूर होता है, बल्कि प्रकृति के इन प्राचीन जीवों के प्रति सम्मान भी प्रकट होता है। गांवों में इसे प्यार से “नागपचैयाँ” भी कहा जाता है।

🌍 भारत के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाते हैं नाग पंचमी

  • बंगाल, असम और झारखंड जैसे क्षेत्रों में मनसा देवी की पूजा होती है जिन्हें नागों की देवी माना गया है। वहाँ की महिलाएँ संतान प्राप्ति की कामना से नागों की पूजा करती हैं।

  • दक्षिण भारत में नागों की मूर्तियों पर दूध, हल्दी और चंदन चढ़ाकर पूजा होती है।

  • कश्मीर में कई जलस्रोतों के नाम नागों पर रखे गए हैं जैसे अनंतनाग, भेरीनाग आदि।

🔯 ज्योतिष और पंचमी तिथि का संबंध

ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार पंचमी तिथि के अधिपति स्वयं नाग माने गए हैं। अग्नि पुराण में भी लिखा गया है कि इस दिन नागों का पूजन विशेष फलदायक होता है। माना जाता है कि दूध और पुष्प नागों को अत्यंत प्रिय होते हैं।

नाग पंचमी की लोककथा: एक बहन और नागों का बंधन

बहुत पुरानी बात है... एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में सात बहुएँ थीं। जब सावन आया, तो छह बहुएँ मायके चली गईं। लेकिन सातवीं बहू की कोई सगा भाई नहीं था। बहुत दुखी होकर उसने शेषनाग को भाई मानकर याद किया।

शेषनाग वृद्ध ब्राह्मण का रूप लेकर आए और बहू को पाताल लोक ले गए। वहाँ वह बड़े चैन से रहने लगी। उसी दौरान शेषनाग की वंश में कई नाग बच्चे हुए।

एक दिन बहू को एक खास दीपक दिया गया जिससे वह अंधेरे में भी सब देख सकती थी। लेकिन एक दिन गलती से वह दीपक नीचे गिर गया और नीचे खेल रहे नाग बच्चों की पूँछें जल गईं। इससे नाग बच्चे नाराज़ हो गए।

कुछ समय बाद वह बहू फिर से ससुराल लौट आई। अगले सावन में उसने दीवार पर नाग देवता बनाकर श्रद्धा से पूजा की। जब नाग बच्चे उसे मारने पहुँचे तो उसकी सच्ची श्रद्धा और पूजा देखकर उनका सारा गुस्सा शांत हो गया।

उल्टा उन्होंने उसे दूध और चावल का प्रसाद भी लिया, उसे वरदान दिया कि वह सर्पों से सदा सुरक्षित रहेगी और साथ में मणियों की एक माला भी दी।

🐍 नागों का वचन

नागों ने कहा:

“जो कोई हमें इस दिन भाई समझकर पूजेगा, उसकी हम सदा रक्षा करेंगे।”

अंत में...

नाग पंचमी हमें प्रकृति के हर प्राणी के प्रति श्रद्धा और संवेदना का संदेश देती है। यह केवल एक धार्मिक दिन नहीं, बल्कि भाई-बहन जैसे पवित्र बंधनों को भी दर्शाता है। जब हम दिल से किसी को भाई मान लेते हैं, तो वह चाहे इंसान हो या सर्प, वह हमारी रक्षा जरूर करता है।

इसलिए, नाग पंचमी केवल नागों की पूजा नहीं, एक आत्मीय रिश्ते को निभाने का दिन भी है।

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कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...