Wednesday, June 25, 2025

विवस्वत सप्तमी: सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु को समर्पित एक पुण्यदायक पर्व

 हर साल भारत में अनेक पर्व-त्योहार श्रद्धा और आस्था के साथ मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है विवस्वत सप्तमी, जिसे सूर्य सप्तमी या वैवस्वत सप्तमी भी कहा जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु की पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है।



इस बार कब है विवस्वत सप्तमी?

1 जुलाई 2025, मंगलवार के दिन, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को यह पावन पर्व मनाया जाएगा। इस दिन का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व काफी गहरा है।

विवस्वत सप्तमी का धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में सूर्य देव का स्थान अत्यंत ऊँचा है और उनके पुत्र वैवस्वत मनु को मानव जाति का पहला मनु माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य, धन-समृद्धि और शत्रुओं पर विजय का आशीर्वाद मिलता है।

इसके अलावा, इस दिन सूर्य के वरुण रूप की पूजा करने की परंपरा भी है, जिससे जीवन में शांति और संतुलन बना रहता है।

एक विशेष पौराणिक मान्यता

आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को ही सूर्य 'विवस्वान्' नाम से विख्यात हुए थे। अतः इस दिन रथचक्र के समान एक गोल आकृति बनाकर उसमें भगवान विवस्वान का गंध, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। साथ ही विविध प्रकार के भक्ष्य (खाने योग्य), भोज्य (पकवान) और पेय पदार्थ अर्पित करके व्रत करना चाहिए। यह पूजा व्यक्ति के जीवन में ऊर्जा, तेज और आध्यात्मिक उन्नति लाने वाली मानी जाती है।

पूजा करने का सही तरीका – आसान विधि

अगर आप इस बार विवस्वत सप्तमी पर पूजा करना चाहते हैं, तो नीचे दी गई विधि से पूजा कर सकते हैं:

  • सवेरे जल्दी उठें, स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।

  • सूर्य देव और वैवस्वत मनु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक और धूप जलाएं।

  • तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, अक्षत और रोली डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।

  • सूर्य मंत्र जैसे "ॐ घृणि सूर्याय नमः" का जप करें।

  • अपनी मनोकामनाएं मन में बोलें और पूजा समाप्ति पर आरती करें।

  • यदि व्रत रख रहे हैं, तो दिनभर फलाहार लें और मन को शांत रखें।

क्यों रखें व्रत इस दिन?

विवस्वत सप्तमी पर व्रत रखने से व्यक्ति को आत्मिक बल और मानसिक स्पष्टता मिलती है। बहुत से श्रद्धालु मानते हैं कि यह व्रत पुराने रोगों को भी दूर करने में सहायक होता है। कुछ लोग तो इसे "आध्यात्मिक डिटॉक्स" की तरह भी मानते हैं – जहाँ एक दिन आहार सीमित करके और पूजा में मन लगाकर, शरीर और मन दोनों को शुद्ध किया जाता है।

अंत में

विवस्वत सप्तमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, स्वास्थ्य और संतुलन का प्रतीक है। यदि आप भी जीवन में ऊर्जा और समृद्धि चाहते हैं, तो इस 1 जुलाई 2025 को सूर्य देव के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित ज़रूर करें।

छोटे-छोटे धार्मिक प्रयास भी कभी-कभी जीवन में बड़ा बदलाव लाते हैं।

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Wednesday, June 18, 2025

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: 27 जून को भक्तों के दिलों में आस्था का जागरण

 हर साल जब आषाढ़ मास की गर्म हवाओं के बीच भक्तों की भीड़ पुरी की गलियों में उमड़ती है, तो ऐसा लगता है मानो सारा ब्रह्मांड भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए ठहर गया हो। रथ यात्रा, केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा का एक विशाल संगम है।



रथ यात्रा क्या है?

पुरी (ओडिशा) में होने वाली यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की एक वार्षिक नगर यात्रा है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर ये पर्व पूरे 9 दिनों तक चलता है। इस दौरान तीनों देवता भव्य रथों में विराजमान होकर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं और कुछ दिन वहीं विश्राम करते हैं।

 इस यात्रा का महत्व

📿 आध्यात्मिक अनुभव

कहते हैं कि रथ यात्रा में भाग लेने से जीवन के सारे पाप कट जाते हैं और व्यक्ति को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। 

🙏 सदियों पुरानी परंपरा

ये कोई नई बात नहीं है। रथ यात्रा की परंपरा बहुत पुरानी है, और आज भी वैसी ही श्रद्धा के साथ मनाई जाती है जैसी कभी प्राचीन समय में होती रही होगी।

रथ यात्रा की ऐतिहासिक झलक

📖 पौराणिक कथा

किंवदंती है कि एक बार देवी सुभद्रा ने अपनी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर जाने की इच्छा जताई। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने यह इच्छा पूरी करने के लिए रथ पर बैठकर उनके साथ जाने का निश्चय किया। और यहीं से इस यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।

🏗️ मंदिर का इतिहास

पुरी का प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था। ये मंदिर न केवल वास्तुशिल्प का चमत्कार है, बल्कि लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र भी है।

रथ यात्रा की तैयारी

🔨 रथ निर्माण

रथों का निर्माण अक्षय तृतीया से शुरू होता है। इन्हें खास किस्म की पवित्र लकड़ियों से बनाया जाता है, और पूरी प्रक्रिया पारंपरिक शिल्पकारों द्वारा निभाई जाती है।

🎨 सजावट

रथों को रंग-बिरंगे कपड़ों, देवी-देवताओं की आकृतियों, फूलों और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजाया जाता है। हर रथ की अपनी एक खास पहचान होती है — जैसे भगवान जगन्नाथ का रथ "नंदीघोष", बलभद्र का "तालध्वज" और सुभद्रा का "दर्पदलना" कहलाता है।

🤲 रथ खींचना

हज़ारों की संख्या में भक्त रस्सियों से रथ खींचते हैं। यह कार्य न केवल श्रम, बल्कि आस्था का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं, रथ की रस्सी पकड़ना मतलब सीधे भगवान का हाथ थाम लेना।

 यात्रा की समाप्ति और वापसी

एक हफ्ते तक गुंडिचा मंदिर में विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मूल मंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को "बहुदा यात्रा" कहा जाता है। मंदिर लौटने पर विशेष मंगल आरती और पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं।

 धार्मिक मान्यताएँ और विश्वास

  • रथ यात्रा के दर्शन मात्र से हजार यज्ञों का पुण्य मिलता है।

  • जो भक्त भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

  • इस दिन भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं, इसलिए इसे 'पहुंच योग्य दर्शन' का दिन भी माना जाता है।

रथ यात्रा में शामिल होने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • यात्रा हर साल जून-जुलाई (आषाढ़ मास) में होती है, तो समय का ध्यान ज़रूर रखें।

  • आयोजन पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होता है।

  • भारी भीड़ होती है, इसलिए आवास की व्यवस्था पहले से कर लें।

  • श्रद्धा और सेवा भाव लेकर जाएँ — बस यही सबसे बड़ी तैयारी है।

 निष्कर्ष: सिर्फ एक यात्रा नहीं, एक जीवन अनुभव

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह एक जीवन बदलने वाला अनुभव है — एक ऐसा मौका जब आप भीड़ में अकेले होकर भी खुद से जुड़ जाते हैं। यदि कभी जीवन में मौका मिले, तो इसे मिस मत करिएगा।

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Tuesday, June 17, 2025

गुप्त नवरात्रि 2025: 26 जून से शुरू हो रहा है तंत्र साधना और शक्ति उपासना का विशेष काल

 भारत की संस्कृति में पर्व और व्रतों का एक गहरा महत्व है। इन्हीं पर्वों में से एक है गुप्त नवरात्रि, जो आम नवरात्रि से कुछ अलग होती है। इस साल गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 26 जून से हो रही है और यह 4 जुलाई तक चलेगी।




गुप्त नवरात्रि क्या होती है?

गुप्त नवरात्रि का मतलब है – एक ऐसा पर्व जहाँ मां दुर्गा की आराधना गोपनीय रूप से की जाती है। इस दौरान विशेष रूप से दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। आमतौर पर यह नवरात्रि साधकों और तांत्रिक परंपराओं से जुड़े लोगों के बीच अधिक प्रसिद्ध होती है, लेकिन अब सामान्य लोग भी इसमें रुचि लेने लगे हैं।

कब मनाई जाती है गुप्त नवरात्रि?

यह नवरात्रि साल में दो बार आती है – एक माघ मास में और दूसरी आषाढ़ मास में। इस बार यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाएगी।

आध्यात्मिक ऊर्जा और सिद्धि का समय

गुप्त नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य होता है आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय और साधना में सिद्धि प्राप्त करना। कई लोग इस समय को आत्ममंथन और शक्ति उपासना के लिए उपयुक्त मानते हैं।

पूजा विधि और परंपराएं

गुप्त नवरात्रि के दौरान भक्त कलश स्थापना करते हैं, और नौ दिनों तक व्रत रखकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं। इस समय विशेष मंत्रों का जाप, हवन, तंत्र साधना और ध्यान जैसी गतिविधियाँ की जाती हैं।

  • सुबह-शाम दीप प्रज्वलन करें

  • देवी को लाल फूल, चंदन, और भोग अर्पित करें

  • विशेषकर रात्रिकाल में मंत्र जाप करें

  • घर को स्वच्छ और शांत रखें

क्या नहीं करना चाहिए?

इस विशेष समय के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है:

  • मांस, शराब, लहसुन और प्याज का सेवन बिल्कुल न करें

  • घर में कलह, अपशब्द या किसी का अपमान न करें

  • नारी का अपमान भूल से भी न हो – क्योंकि मां दुर्गा स्वयं नारी रूप हैं

महिलाओं के लिए विशेष संदेश

गुप्त नवरात्रि नारीशक्ति की उपासना का प्रतीक है। इस समय महिलाओं को सम्मान देना, उनके साथ विनम्रता से पेश आना बहुत ज़रूरी माना गया है। घर की स्त्रियों का आशीर्वाद भी मां दुर्गा की कृपा दिला सकता है।

व्रत और उपवास

गुप्त नवरात्रि में उपवास का विधान होता है। कुछ लोग फलाहार करते हैं, तो कुछ केवल जल पर रहते हैं। यह आपके स्वास्थ्य और श्रद्धा पर निर्भर करता है। अगर स्वास्थ्य अनुमति न दे, तो मानसिक रूप से उपवास का संकल्प लेना भी फलदायी होता है।

क्यों खास है गुप्त नवरात्रि?

यह पर्व उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है जो जीवन में गूढ़ ज्ञान, शक्ति, साधना या मनोबल की तलाश में होते हैं। कई साधक इसे तांत्रिक साधनाओं के लिए श्रेष्ठ मानते हैं।

अंत में

गुप्त नवरात्रि सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने का एक दुर्लभ अवसर है—जहां बाहरी विधियों से ज़्यादा ज़रूरी है अंतरात्मा की सच्ची आस्था और समर्पण।"

मां दुर्गा आप पर अपनी कृपा बनाये रखें।

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Monday, June 16, 2025

2025 में सूर्य का दक्षिणायन प्रवेश: क्या है धार्मिक महत्व?

 हर साल की तरह, इस बार भी 21 जून को सूर्य दक्षिणायन की दिशा में अपने पथ पर अग्रसर होंगे। भारतीय पंचांग के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जिसका सीधा संबंध हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन से भी जुड़ा हुआ है। आइए समझते हैं कि दक्षिणायन क्या है और इसका क्या आध्यात्मिक अर्थ होता है।



दक्षिणायन क्या होता है?

जब सूर्य अपनी दिशा बदलते हुए उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ने लगते हैं, तो उस प्रक्रिया को दक्षिणायन कहा जाता है। यह आमतौर पर हर साल 21 जून को शुरू होता है और 21 दिसंबर तक चलता है।

यह केवल खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म में इसे विशेष आध्यात्मिक महत्त्व प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि इस समय काल में सूर्य दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हैं, जो यम और पितरों की दिशा मानी जाती है।

देवताओं की रात्रि क्यों कहा जाता है?

धार्मिक ग्रंथों में इस अवधि को देवताओं की रात्रि कहा गया है। माना जाता है कि जैसे हमारा एक दिन और रात होता है, वैसे ही देवताओं का भी होता है — फर्क सिर्फ इतना है कि उनका एक दिन हमारे छह महीनों के बराबर होता है।

उत्तरायण (जनवरी से जून) देवताओं का दिन होता है, जबकि दक्षिणायन (जून से दिसंबर) उनकी रात्रि। इसलिए इस समय को शांति, साधना और आत्म-अनुशासन का समय माना गया है।

इन कार्यों से करें परहेज़

धार्मिक दृष्टि से दक्षिणायन की अवधि में कुछ मांगलिक कार्यों को टालना उचित माना गया है। आमतौर पर इन कार्यों को करने की मनाही होती है:

  • विवाह समारोह

  • गृह प्रवेश

  • मुंडन संस्कार

  • उपनयन (जनेऊ संस्कार)

ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों को उत्तरायण में करना अधिक शुभ और फलदायक होता है।

साधना और आत्म-उन्नति का समय

जहाँ एक ओर दक्षिणायन में कुछ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है, वहीं यह समय अंतरमुखी होने का भी है। यह काल तप, ध्यान, व्रत और आत्म-चिंतन का सर्वोत्तम समय माना गया है।

जो भी साधक ईश्वर-प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहते हैं, उनके लिए यह काल विशेष फलदायी माना जाता है।

कब से कब तक रहेगा दक्षिणायन?

  • प्रारंभ: 21 जून 2025

  • समाप्ति: 21 दिसंबर 2025

इसके पश्चात सूर्य उत्तरायण की दिशा में बढ़ेंगे, जो कि देवताओं का दिन होता है और शुभ कार्यों की शुरुआत का संकेत देता है।

निष्कर्ष

सूर्य का दक्षिणायन प्रवेश केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई एक सांस्कृतिक यात्रा है। यह समय है आत्मचिंतन का, ध्यान और साधना का — जहाँ बाहरी जगत की चहल-पहल से दूर होकर हम भीतर की ओर झाँक सकते हैं।

तो इस दक्षिणायन काल में थोड़ा रुकें, थोड़ा सिमटें, और खुद से मिलने का एक अवसर दें। #Dakshinayan2025 #सूर्य_का_दक्षिणायन #SunTransition #SpiritualVibes #SadhanaTime #VedicEnergy #InnerPeace #YogaSeason #SolsticeIndia #SanatanCulture#भक्ति #धार्मिक #आध्यात्मिकता #सनातनधर्म #SanatanDharma #हिन्दूधर्म #सनातन #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami For more information: www.benimadhavgoswami.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612


Thursday, June 12, 2025

कुमार षष्ठी 30 जून 2025: संतान सुख और कल्याण के लिए समर्पित एक पावन पर्व

 हर महीने जब चंद्रमा शुक्ल पक्ष में होता है और उसका छठा दिन आता है, तब मनाया जाता है एक खास पर्व – कुमार षष्ठी, जिसे स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। ये दिन भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है, जो कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और देवताओं के सेनापति के रूप में जाने जाते हैं।

इस पर्व को खासतौर पर संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखद भविष्य के लिए मनाया जाता है। कई माता-पिता तो इसे संतान षष्ठी भी कहते हैं, खासकर उत्तर भारत में। वहीं दक्षिण भारत में इस दिन की भक्ति और धूमधाम का अंदाज़ थोड़ा अलग और बेहद रंगीन होता है।



कुमार षष्ठी क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने इसी दिन ताड़कासुर जैसे राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस दिन को असुरों पर विजय और दिव्य शक्ति की आराधना के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

संतान के इच्छुक दंपत्ति या वो माता-पिता जो अपने बच्चों की तरक्की, सेहत और दीर्घायु चाहते हैं, वे इस दिन भगवान स्कंद की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पूजा की तैयारी कैसे करें?

1. सुबह जल्दी उठना और स्नान

जैसे ही सूरज की पहली किरण फूटे, कोशिश करें कि आप जाग जाएं। स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें। पूजा में स्वच्छता सबसे ज़रूरी होती है — ये बात हम सब जानते हैं।

2. घर और पूजा स्थल की सफाई

सिर्फ शरीर नहीं, घर और विशेष रूप से पूजा का स्थान भी साफ करना चाहिए। अगर संभव हो तो कुछ फूलों से सजावट करें। घर का माहौल खुद-ब-खुद भक्ति से भर जाएगा।

3. व्रत का संकल्प लें

भगवान स्कंद को स्मरण करते हुए मन ही मन संकल्प लें कि आज आप उपवास रखेंगे और श्रद्धा से पूजा करेंगे। कुछ लोग फलाहार करते हैं, तो कुछ केवल जल पर व्रत रखते हैं — ये पूरी तरह आपकी क्षमता और श्रद्धा पर निर्भर करता है।

भगवान स्कंद की पूजा विधि

  • एक साफ वेदी पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर रखें।

  • पंचामृत (दूध, दही, शहद, शक्कर और घी) से उनका अभिषेक करें।

  • इसके बाद उन्हें चंदन और हल्दी का तिलक लगाएं।

  • दीपक जलाएं — घी का दीपक सबसे शुभ माना जाता है।

  • ताजे फूलों की माला अर्पित करें।

  • कुछ मीठा भोग लगाएं, जैसे गुड़, नारियल, या घर की बनी मिठाई।

  • मंत्रों का उच्चारण करें और आरती करें।

मूल मंत्र:
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महा सैन्या धीमहि, तन्नो स्कंदः प्रचोदयात्।”

“देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥”

अगर आप मंत्र न जानें, तो भी भगवान के प्रति सच्चे मन से प्रार्थना करें — यही सबसे बड़ा मंत्र होता है।

अर्चना, कथा और दान

पूजा के बाद भगवान स्कंद की कहानी (कथा) सुनना बेहद शुभ माना जाता है। इससे उनकी महिमा और जीवन से जुड़ी प्रेरणाएं पता चलती हैं।

इस दिन दान भी ज़रूरी माना गया है। अन्न, वस्त्र, और जरूरतमंदों की मदद करें। ऐसा करने से पूजा का फल और भी बढ़ जाता है।

स्कंद षष्ठी का आध्यात्मिक महत्व

इस दिन की गई पूजा और व्रत से न सिर्फ संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में आने वाली अनेक बाधाएं, रोग और मानसिक परेशानियाँ भी दूर होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो सच्चे मन से भगवान स्कंद की आराधना करता है, उसे साहस, शक्ति और आत्मबल की प्राप्ति होती है।

दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी

तमिलनाडु और केरल में इस पर्व का रूप बेहद भव्य होता है। मंदिरों में विशेष आयोजन, शोभायात्राएं और भजन-कीर्तन होते हैं। कुछ भक्त तो इस दिन कावड़ी यात्रा जैसी कठिन तपस्याएं भी करते हैं।

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कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...