हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी साधना जल्दी फल दे। कठिन साधना और लंबा समय किसी के बस की बात नहीं होती। ऐसे साधकों के लिए रुद्रयामल तंत्र में गणपति उपासना का सरल और शीघ्र सिद्धि देने वाला मार्ग बताया गया है। इसे अपनाकर व्यक्ति अपने मनोरथ को जल्दी पूरा कर सकता है।
तंत्र शास्त्र और उसका महत्व
तंत्र शास्त्र को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है:
आगम
यामल
तंत्र
इनमें यामल ग्रंथ विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि यह शिव और शक्ति की एकता को दर्शाते हैं। रुद्रयामल इसी यामल ग्रंथों में शामिल है।
तंत्र शास्त्र का ज्ञान इतना व्यापक है कि साधक अपनी रुचि और आवश्यकता अनुसार लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि आस्तिक परंपरा में तंत्र शास्त्र को साधना और आस्था की मूल धरोहर माना जाता है।
गणपति साधना क्यों जरूरी है?
गुरु की कृपा प्राप्त कर साधना पथ पर कदम रखने वाले साधक के लिए महागणपति की उपासना अनिवार्य है।
यह विघ्नों को दूर करता है।
कठिन रास्तों को आसान बनाता है।
ऋद्धि-सिद्धि, विद्याप्राप्ति और मंगल कार्यों में सहायक है।
साधना के दौरान गणपति की कृपा पाना, सफलता की कुंजी मानी जाती है।
उपासना के प्रकार
रुद्रयामल में महागणपति की उपासना कई रूपों में बताई गई है:
1. पंचबालक
हेरम्ब, शरजन्मा, कार्तवीर्यार्जुन, हनुमद्, भैरव।
2. षटकुमार
हेरम्ब, शरजन्मा, महामृत्युंजय, कार्तवीर्यार्जुन, हनुमद्, भैरवी।
3. सप्तबालक
गणेश, बटुक, स्कन्द, मृत्युंजय, कार्तवीर्यार्जुन, सुग्रीव, हनुमान।
साधक अपनी क्षमता और भक्ति के अनुसार उपासना का चुनाव कर सकता है।
गणपति महामन्त्र
रुद्रयामल तंत्र के अनुसार गणपति का महामन्त्र इस प्रकार है:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।”
जप का विधान
विनियोग: मंत्र का ऋषि, छंद और देवता के अनुसार नियोजन।
ऋष्यादिन्यास: मंत्र के विभिन्न अंशों को शरीर के अंगों में नियोजित करना।
कर-षडगन्यास: अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और अन्य अंगों में मंत्र की स्थापना।
ध्यान: बीज और प्रतीक चिन्हों के साथ मानसिक साधना।
मानसोपचार पूजा: गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल की कल्पना।
जप के बाद पाठ और स्तोत्र का नियमित अभ्यास करना चाहिए।
गणपति स्तोत्र
रुद्रयामल में वर्णित गणपति स्तोत्र कलियुग में शीघ्र सिद्धि देने वाला माना गया है।
न्यास, होम या तर्पण की आवश्यकता नहीं।
केवल जप और पाठ ही पर्याप्त हैं।
नियमित प्रातः, मध्याह्न और संध्या पाठ से लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा भी प्राप्त होती है।
सात प्रमुख मुद्राएँ
गणपति के सामने साधक सात मुद्राएँ दिखाए –
दन्त
पाश
अंकुश
विघ्न
परशु
मोदक
बीजापुर
इनका सही ज्ञान किसी योग्य साधक से अवश्य लें।
नामोपासना
गणपति का नाम ही विशेष शक्ति रखता है।
ग = जीवात्मा
ण = मुक्तिदशा में ले जाना
पति = परमात्मा में विलीन होने तक का आशीर्वाद
विघ्नविनायक के 16 नाम
बालविघ्नेशाय नमः, तरुणाय नमः, भक्तविघ्नेशाय नमः … आदि।
गणपति के 12 प्रसिद्ध नाम
सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूमकेतु, भालचन्द्र, गजानन।
इन नामों का पाठ और श्रवण सभी मांगलिक कार्यों और यात्रा में लाभकारी है।
निष्कर्ष
रुद्रयामल तंत्र में गणपति उपासना साधक के विघ्न दूर करने, सफलता पाने और मंगल कार्यों को सिद्ध करने का सर्वोत्तम मार्ग है।
साधक अपनी भक्ति और क्षमता अनुसार इसका पालन जरूर करें।
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