गुग्गा नवमी राजस्थान और उत्तर भारत के कई हिस्सों में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण धार्मिक और लोकपर्व है। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। गुग्गा नवमी व्रत 2025 में 17 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन वीर गोगाजी चौहान, जिन्हें ‘जाहर पीर’ और ‘गोगा पीर’ के नाम से भी जाना जाता है, की विशेष पूजा-अर्चना होती है।
गोगाजी कौन थे?
राजस्थान के महान वीरों की सूची में गोगाजी चौहान का नाम विशेष सम्मान से लिया जाता है। इन्हें पाँच पीरों में स्थान प्राप्त है और राजस्थानी समाज इन्हें देवता स्वरूप पूजता है। लोककथाओं के अनुसार, गोगाजी भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करते हैं और विशेष रूप से सर्पदंश से रक्षा के लिए पूजित होते हैं। इनके साहस और करुणा से जुड़ी कई कहानियाँ, भजन और लोकगीत आज भी ग्रामीण संस्कृति में जीवंत हैं।
पूजा की परंपरा
गुग्गा नवमी से जुड़ी पूजा-विधि सावन पूर्णिमा से ही आरंभ हो जाती है और यह क्रम पूरे 9 दिनों तक चलता है। अंतिम दिन, यानी नवमी तिथि को, गोगाजी की विशेष पूजा की जाती है।
सुबह स्नान करके घर की सफाई की जाती है।
खीर, चूरमा, गुलगुला जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
कुम्हारिन द्वारा लाई गई गोगाजी की मूर्ति को रोली, चावल से तिलक किया जाता है और भोजन का भोग लगाया जाता है।
घोड़े के आगे दाल रखी जाती है और रक्षा-बंधन की राखियाँ उतारकर गोगाजी को अर्पित की जाती हैं।
कुछ स्थानों पर लकड़ी के घोड़े पर सवार गोगाजी की प्रतिमा होती है, तो कहीं मिट्टी से बनी मूर्ति की स्थापना की जाती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
गोगाजी की पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकजीवन का अहम हिस्सा है। गाँवों में घर-घर पूजा कराने का कार्य कुम्हार समुदाय करता है, जबकि गाँव के मुख्य मंदिर का चढ़ावा प्रायः चमार जाति के लोग ग्रहण करते हैं। पूजा-पद्धति में क्षेत्र के अनुसार कुछ भिन्नताएँ अवश्य हैं, परंतु जहाँ भी राजस्थानी समाज बसा है, वहाँ यह परंपरा निभाई जाती है।
मेले और प्रमुख स्थल
राजस्थान के कई शहरों में गुग्गा नवमी के अवसर पर मेलों का आयोजन किया जाता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध बीकानेर वाटी क्षेत्र का ‘मैडी’ स्थल है, जिसे गोगाजी का प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहाँ दूर-दूर से भक्त आकर दर्शन करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
निष्कर्ष
गुग्गा नवमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि राजस्थान की वीरता, लोकविश्वास और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह दिन हमें गोगाजी की अदम्य वीरता, सर्पों से रक्षा करने की शक्ति और जनकल्याण के भाव की याद दिलाता है। 17 अगस्त 2025 को, जब यह पर्व मनाया जाएगा, तब एक बार फिर लोकगीतों, भजनों और श्रद्धा की गूंज हर ओर सुनाई देगी।
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