भारतीय संस्कृति में व्रतों का महत्व
हमारी संस्कृति में व्रत-त्योहार केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं होते, बल्कि ये हमारे जीवन को सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक संतुलन और पारिवारिक सुख-शांति देने वाले आध्यात्मिक उपाय भी होते हैं। इन्हीं में से एक खास व्रत है रम्भा तृतीया, जिसे कुछ क्षेत्रों में रम्भा तीज भी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।
रम्भा तृतीया व्रत कब और क्यों किया जाता है?
रम्भा तृतीया व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मई या जून महीने में आती है। इस वर्ष यह व्रत 29 मई को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास रखकर विधिपूर्वक पूजा करती हैं और देवी शक्ति से घर, पति और संतान सुख की प्रार्थना करती हैं।
इस व्रत की एक विशेष बात यह भी है कि इसे पूर्वविद्धा तिथि में किया जाता है, यानी यदि तृतीया तिथि एक दिन पहले सूर्योदय से पहले ही लग जाए, तो व्रत उसी दिन कर लिया जाता है।
पूजा विधि: कैसे करें रम्भा तृतीया व्रत?
1. प्रातःकाल स्नान और शुद्धता
व्रत करने वाली स्त्री को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। फिर घर के किसी पवित्र स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
2. पाँच अग्नियों की स्थापना
व्रती को अपने पास पाँच अग्नियाँ प्रज्वलित करनी चाहिए, जो इस प्रकार हैं:
गार्हपत्य
दक्षिणाग्नि
सभ्य
आहवनीय
भास्कर
इन अग्नियों के मध्य में पूर्वाभिमुख होकर पद्मासन में बैठें।
3. देवी की मूर्ति या चित्र की स्थापना
अपने सामने एक देवी की मूर्ति या चित्र रखें जो:
चार भुजाओं वाली हो
आभूषणों से सुसज्जित हो
जटा-जूट और मृगचर्म धारण किए हुए हों
यह रूप शक्ति की सम्पूर्णता का प्रतीक माना गया है।
मंत्र और आहुति
अब देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करें और निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:
"ॐ महाकाल्यै नमः"
"ॐ महालक्ष्म्यै नमः"
"ॐ महासरस्वत्यै नमः"
इसके अलावा महामाया, महादेवी, महिषासुर मर्दिनी, गंगा, यमुना, नर्मदा, वैतरणी आदि शक्तियों का भी पूजन करें।
फिर इन नामों के साथ "नमः" की जगह "स्वाहा" बोलते हुए 108 बार आहुति दें। यह क्रिया देवी को आह्वान और आभार प्रकट करने के लिए की जाती है।
अर्पण और प्रार्थना
पूजा के अंत में देवी को फल, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। फिर यह मंत्र बोलें:
"त्वं शक्तिस्त्वं स्वधा स्वाहा त्वं सावित्री सरस्वती ।
पतिं देहि गृहं देहि सुतान् देहि नमोऽस्तु ते ॥"
इस प्रार्थना के माध्यम से देवी से उत्तम पति, सुखद गृहस्थ जीवन और संतान सुख की कामना की जाती है।
पौराणिक कथा और महत्व
यह व्रत सबसे पहले देवी पार्वती ने अपनी माता की आज्ञा से किया था। उन्होंने इस व्रत के प्रभाव से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया और उन्हें सुख, समृद्धि व संतान सुख प्राप्त हुआ।
इसी कारण यह व्रत आज भी महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। जो स्त्री श्रद्धा और नियम से यह व्रत करती है, उसके जीवन में गृहस्थ सुख, सौंदर्य और सौभाग्य स्थायी हो जाते हैं।
निष्कर्ष
रम्भा तृतीया केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक ऐसी आध्यात्मिक साधना है जो महिलाओं को मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और पारिवारिक संतुलन देती है। यह व्रत एक ओर हमें सनातन परंपरा से जोड़ता है और दूसरी ओर हमारे जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है।
इस 29 मई को आप भी श्रद्धा से रम्भा तृतीया व्रत करें और देवी शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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