Sunday, October 23, 2022

#रुप चतुर्दशी

रूप चतुर्दशी
यह चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन सौन्दर्य रूप श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत भी रक्खा जाता है। ऐसा करने से भगवान सुन्दरता देते हैं। इसी दिन नरक चतुर्दशी का व्रत भी रक्खा जाता है।
कथा --एक समय भारतवर्ष में ‘हिरण्यगर्भ’ नामक नगर में एक योागिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अतः उन्होंने समाधिा लगा ली। समाधिा लगाये कुछ ही दिन बीते थे कि उनके शरीर में कीड़े पड़ गये, बालों में छोटे-छोटे कीड़े लग गये। आंखों के रोओं और भौहों पर जुंये जम गये। यह दशा उन योगिराज की हो गई कि योगिराज बहुत दुःखी रहने लगा।
इतने में ही वहां नारद जी घूमते हुए, वीणा और खरताल बजाते हुए आ गए। तब योगिराज बोले-हे भगवान्! मैं भगवान के चिन्तन में लीन होना चाहता था परन्तु मेरी यह दशा क्यों हो गई।
तब नारद जी बोले-हे योगिराज! तुम चिन्तन करना जानते हो परन्तु देह-अत्याचार का पालन नहीं जानते हो। इसलिए तुम्हारी यह दशा हुई है।
तब योगिराज ने नारद जी से देह-आचार के विषय में पूछा।
इस पर नारद जी बोले-देह आचार से अब तुम्हें कोई लाभ नहीं है। पहले तुम्हें जो मैं जानता हूं उसे करना फि़र देह-आचार के बारे में बताऊंगा।
थोड़ा रुक कर नारद जी ने कहा-इस बार जब काÆतक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आवे तो तुम उस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा ध्यान से करना। ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा ही स्वरूप और रूपवान हो जाएगा।
योगिराज ने ऐसा ही किया और उनका शरीर पहले जैसा ही हो गया। उसी दिन से इसको रूप चतुर्दशी कहते हैं।

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