Sunday, October 23, 2022

#दिवाली

दीवाली (दीपावली)
कार्तिक मास की आमावस्या के दिन दीपावली (दीवाली) मनाई जाती है। इस दिन भगवती महालक्ष्मी का उत्सव बड़े धाूमधााम के साथ मनाया जाता है। जिस तरह रक्षा बन्धान ब्राह्मणों का, दशहरा क्षत्रियों का, होली शूद्रों का त्यौहार है उसी प्रकार दीवाली वैश्यों का त्यौहार माना जाता है। परन्तु भारतवर्ष महान देश होने के कारण चारों बड़े-बड़े त्यौहारों को सभी हिन्दू मनाते हैं। चाहे वे कोई भी वर्ण के क्यों न हों। इस दिन लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिये पहले से घरों को लीप-पोतकर साफ़ सुथरा कर किया जाता है। घरों को अच्छी तरह से सजाकर घी के दीपों की रोशनी की जाती है। बच्चे उमंग में भरकर आतिशबाजी (सुर्रो, पटाखे) छोड़ते हैं।
पूजन विधिा - लक्ष्मी पूजन के लिए पहे  सफ़ेदी से दीवार पोत लें। फि़र गेरूआ रंग से दीवार पर ही बहुत सुन्दर गणेशजी और लक्ष्मीजी की मूर्ति बना ले। इसके अलावा जिन देवी देवताओं को और मानते हों, उनकी पूजा करने को उनके मंदिरों को जायें। साथ में जल, रोली, चावल, खील, बताशे, अबीर, गुलाल, फ़ूल, नारियल, मिठाई, दक्षिणा, धाूप, दियासलाई आदि सामग्री ले जाए  और पूजा करें। फि़र मंदिरों से वापिस आने के बाद अपने घर के ठाकुरजी की पूजा करें।
गणेश लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा बाजार से लावें अपने व्यापार के स्थान गद्दी पर बही खातों की पूजा करें। और हवन करावें। द्(गद्दी) की पूजा और हवन आदि के लिए पंडितजी से पूंछ कर सामग्री इकट्ठी कर ले। घर में जो सुन्दर-सुन्दर भोजन मिठाई आदि बनी हों उनमें से थोड़ा-थोड़ा  देवी देवताओं के नाम का निकालकर ब्राह्मण को दे दे। इसके अलावा एक ब्राह्मण को भी भोजन करा देवें। इस दिन धान के देवता धानपति कुबेरजी, विघ्न विनाशक गणेशजी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा बुद्घि की दाता सरस्वतीजी की भी लक्ष्मीजी के साथ पूजा करें।
दिवाली के दिन दीपकों की पूजा का बहुत महत्व है। इसके लिए दो थालों में दीपकों को रखें। छः चौमुखा दीपक दोनों थालों में सजायें। छब्बीस छोटे दीपकों में तेल बत्ती रखकर जला लेवें। फि़र जल, रोली, खील, बताशे, चावल, फ़ूल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से उनको पूजें और टीका लगा लेवें। फि़र गद्दी {व्यापार का स्थान} की गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर में आकर पूजा करें। पहले तो पुरुष पूजा कर लें फि़र स्त्रियाँ पूजा करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में स्थान-स्थान पर रख देवें। एक चौमुखा और छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मी के पास ही रख देवें। स्त्रियाँ लक्ष्मीजी का व्रत करे। इसके बाद जितनी स्त्रियाँ  हो उतने रुपये बहुओं को देवें। घर के सभी छोटे माता-पिता सभी बड़ों के पैर छुएं और अशीर्वाद लेवें।
जहां दीवार पर गणेश लक्ष्मी बनाये हों वहां उनके आगे 1 पट्टे पर एक चौमुखा दीपक और छः छोटे दीपक में घी बत्ती डालकर रख देवें तथा रात्रि के बारह बजे पूजा करें। दूसरे पट्टे पर एक लाल कपड़ा बिछावें। उस पर चांदी या मिट्टी के गणेश लक्ष्मी रखें। उनके आगे 101 रुपये रखें। एक बर्तन में 12 सेर चावल, गुड़, 4 केला, दक्षिणा, मूली, हरी गवारफ़ली, 4 सुहाली, मिठाई आदि गणेश लक्ष्मी के पास रखें। फि़र गणेश लक्ष्मी, दीपक, रुपये आदि सबकी  पूजा करें। एक तेल के दीपक पर काजल पाड़ लें। फि़र उसे सभी स्त्रि पुरुष अपनी आंखों में लगावें।
दिवाली पूजन की रात को जब सब सोकर सुबह उठते हैं उससे पहले स्त्रियाँ घर से बाहर सूप बजाकर गाती फि़रती हैं। इस सूप पीटने का मतलब यह होता है कि जब घर में लक्ष्मी का वास होगा तो दरिद्र को घर से निकाल देना चाहिए। उसे निकालने के लिये ही सूप बजाती फि़रती हैं। साथ ही दरिद्र से कहती जाती हैं-
दोहा - काने भेंड़ दरिद्र तू, घर से जा अब भाज।
तेरा यहां कुछ काम नही, वास लक्ष्मी आज।।
नही आगे डंडा पड़े, और पड़ेगी मार।
लक्ष्मी जी बसती जहां, गले न तेरी दार।।
फि़रि तू आवे जो यहां, होवे तेरी हार।
इज्जत तेरि नही करें, झाडू ते दें मार।।
फि़र घर में आकर स्त्रियाँ कहती हैं इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहां निवास करिये।
दिवाली मनाने के संबंधा में कथायें
(1) कहा जाता है इस दिन भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का इन्द्र बनाया था। तब इन्द्र ने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक दिवाली मनाई कि मेरा स्वर्ग का सिहासन बच गया।
(2) इसी दिन समुद्र मंथन के समय और सागर से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं। और भगवान को अपना पति स्वीकार किया।
(3) जब श्री रामचन्द्रजी लंका से वापस आये तो इसी अमावस्या को उनका राजतिलक किया गया था।
(4) इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने संवत् की रचना की थी। बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर मुहूर्त निकलवाया था कि नया संवत् चैत सुदी प्रतिपदा से चलाया जाय।
*5) इसी दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद का निर्वाण हुआ था।
लक्ष्मीजी की कहानी
एक साहूकार की बेटी थी। वह रोजाना पीपल सींचने जाया करती थी। पीपल में से लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा कि मेरी सहेली बनजा, तब साहूकार की बेटी ने कहा कि मैं अपने पिताजी से पूछ आऊं, तब कल सहेली बन जाऊंगी। घर जाकर उसने अपने पिताजी से सारी बात कह सुनाई। तब पिताजी ने कहा कि वह तो लक्ष्मी जी हैं और हमें क्या चाहिये। तू सहेली बन जा, दूसरे दिन साहूकार की बेटी पीपल सींचने गई और लक्ष्मी जी की सहेली बन गई। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी लक्ष्मी जी के यहां जीमने गई तो लक्ष्मी जी ने उसको ओढ़ने के लिये शाल-दुशाला दिया, सोने की चोकी पर बैठाकर सोने की थाली में अनेक प्रकार के भोजन कराये। जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर के लिये लौटने लगी तब लक्ष्मी जी ने उसे पकड़ लिया और कहा-मैं भी तेरे घर जीमने आऊंगी। तब उसने कहा अच्छा आ जाना। घर आकर वह रूठकर बैैठ गई। साहूकार ने पूछा कि लक्ष्मी जी तो भोजन करने आयेंगी। और तू उदास होकर बैठी है तब साहूकार की बेटी ने कहा-पिताजी! लक्ष्मी जी ने तो मुझे इतना दिया और बहुत सुन्दर भोजन कराया, मैं उन्हें किस प्रकार खिलाऊंगी हमारे घर में तो कुछ भी नहीं है। तब साहूकार ने कहा जो अपने से बनेगा वही खातिर कर देंगे। परन्तु तू गोबर मिट्टी से चौका देकर सफ़ाई कर ले। चौमुखा दीपक बना ले और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील किसी रानी का नौ लखा हार उठा लाई और उसे साहुकार की बेटी के पास डाल गई। साहूकार की बेटी ने उस हार से सोने को चोकी की तैयारी करी। फि़र आगे-आगे गणेशजी और लक्ष्मी जी साहूकार की बेटी के यहां आ गये। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी से सोने की चौकी पर बैठने को कहा। लक्ष्मी जी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा कि इस पर तो राजा रानी बैठते हैं तब साहूकार की बेटी ने कहा कि तुम्हें हमारे यहां तो बैठना ही पड़ेगा। तब लक्ष्मी जी उस चौकी पर बैठ गईं। तब साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी की बहुत खातिर की, इससे लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं और साहूकार के बहुत धान दौलत हो गई। हे लक्ष्मी माता! जैसे तुम साहूकार की बेटी की चौकी पर बैठी और धान दिया वैसे सबको देना।

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