यह एकादशी सावन शुक्ल पक्ष ‘पुत्रदा एकादशी’ के नाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात् वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराके दान देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। सारा दिन भवान के वंदन, कीर्तन में बिताना चाहिए तथा रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास ही सोना चाहिए। इस व्रत को रखने वाले निःसन्तान व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
कथा - प्राचीन समय में महिष्मती नगरी में महीजित नामक राजा राज्य करते थे। अत्यन्त धर्मात्मा, शान्ति प्रिय तथा दानी होने पर भी उनके कोई सन्तान नहीं थी। इसी से राजा अत्यन्त दुःखी थे। एक बार राजा ने अपनी राज्य के समस्त ऋषियों को बुलाया तथा संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। इस पर परम ज्ञानी लोमश ऋषि ने बताया कि आपने पिछले सावन मास की एकादशी को आपने तालाब से प्यासी गाय को पानी पीने से हटा दिया था। उसी के शाप से आपके कोई सन्तान नहीं हो रही है। इसलिये आप सावन मास की पुत्रदा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखिये तथा रात्रि जागण कीजिए, पुत्र अवश्य प्राप्त होगा। ऋषि के आज्ञानुसार राजा एकादशी व्रत रहा और पुत्ररत्न प्राप्त हुआ।
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