Friday, August 22, 2025

गणेश चतुर्थी व्रत: संपूर्ण विधि, कथा और महत्व

 गणेश चतुर्थी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व रखता है। यह सिर्फ भगवान गणेश की पूजा का अवसर नहीं है, बल्कि यह संकट निवारक, विघ्न हरण और सौभाग्य वृद्धि का भी दिव्य साधन माना गया है।

इस ब्लॉग में हम जानेंगे:

  1. गणेश चतुर्थी व्रत का इतिहास और उद्गम

  2. भगवान गणेश के जन्म की कथा

  3. व्रत की विधि और अनुष्ठान

  4. व्रत के फल और महत्व

  5. विभिन्न मास की चतुर्थियों का व्रत




1. गणेश चतुर्थी व्रत का इतिहास और उद्गम

गणेश चतुर्थी का जन्मोत्सव भगवान गणेश के जन्म से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार, जब भगवान गणेश का रूप देखने पर चंद्रमा ने उनकी हंसी उड़ाई थी, तब उन्हें श्राप मिला कि इस दिन चंद्र को देखने वाले पर मिथ्या कलंक लगेगा।

लेकिन गणेश जी ने इसे दूर करने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मेरा पूजन और व्रत करने वाला व्यक्ति अपने सभी दोषों और विघ्नों से मुक्त हो जाएगा।

इसलिए इस व्रत को विशेष महत्व प्राप्त है और इसे करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।

2. भगवान गणेश के जन्म की कथा

भगवान गणेश का जन्म विभिन्न कथाओं में बताया गया है। मुख्य कथा कुछ इस प्रकार है:

  • पार्वती जी स्नान कर रही थीं। शिवजी ने अनजाने में द्वार पर आकर देखा।

  • पार्वती ने अपने अंग-राग से गणेश का निर्माण किया और उन्हें द्वारपाल नियुक्त किया।

  • जब शिवजी ने गणेश को रोकने के लिए आदेश दिया, तब गणेश ने पालन नहीं किया और उनका मस्तक शिवजी ने काट दिया।

  • बाद में शिवजी ने हाथी के शिशु का सिर लगाकर गणेश को पुनर्जीवित किया।

  • उन्हें गणाध्यक्ष, विघ्ननाशक और बुद्धिदाता का वरदान मिला।

तब से गणेश को विनायक, गजानन और गणपति नामों से जाना जाता है।

3. गणेश चतुर्थी व्रत की विधि

व्रत की अवधि

  • भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक।

  • व्रत करने वाले व्यक्ति को 10 दिन तक उत्सव और पूजा करनी चाहिए।

प्रतिमा और कलश स्थापना

  1. कलश स्थापित करें।

  2. कलश पर मिट्टी, धातु या स्वर्ण की गणेश प्रतिमा रखें।

  3. कलश पर दूर्वा, मोदक, सिंदूर, पुष्प और फल रखें।

पूजा और अनुष्ठान

  • गणेश जी के साथ ऋद्धि-सिद्धि और दो बच्चों की पूजा करें।

  • नित्य भजन-कीर्तन और आरती करें।

  • रात्रि में जागरण करें और सुबह गणेश की पूजा के साथ अगले वर्ष के लिए निमंत्रण दें।

दक्षिणा और दान

  • ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।

  • विधिपूर्वक दान करें और प्रेम तथा श्रद्धा से पूजा करें।

4. व्रत का फल और महत्व

गणेश चतुर्थी व्रत से:

  • विघ्न और संकट दूर होते हैं।

  • धन, संपत्ति, संतान और आरोग्य प्राप्त होता है।

  • स्त्रियों के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी है।

  • कथा सुनने और सुनाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

5. मासानुसार चतुर्थी व्रत

  1. चैत्र मास: वासुदेव स्वरूप गणेश की पूजा।

  2. वैशाख मास: संकषण गणेश की पूजा।

  3. ज्येष्ठ मास: प्रद्युम्न स्वरूप गणेश की पूजा।

  4. आषाढ़ मास: अनिरुद्ध स्वरूप गणेश की पूजा।

  5. श्रावण मास: दूर्वागणेश की पूजा।

  6. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी: सिद्धिविनायक व्रत, प्राकट्य का दिन।

  7. आश्विन शुक्ल चतुर्थी: कपर्दीश विनायक की पूजा।

  8. कार्तिक कृष्ण चतुर्थी: करक चौथ, स्त्रियों के लिए विशेष।

  9. मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी: कच्छ् चतुर्थी।

  10. पौष मास: विघ्नेश्वर गणेश की पूजा।

  11. माघ कृष्ण चतुर्थी: संकट हरण व्रत।

निष्कर्ष

गणेश चतुर्थी व्रत सिर्फ पूजा नहीं है, बल्कि संकट निवारण और सौभाग्य वृद्धि का सर्वोत्तम साधन है।
इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करने वाले व्यक्ति को जीवन में संपूर्ण मंगल और सफलता प्राप्त होती है।

#गणेशचतुर्थी #गणेशव्रत #गणेशपूजन #गणेशमहिमा #गणेशकथा #विघ्नहर्ता #भाद्रपदचतुर्थी #संकटनिवारण #हिंदूधर्म #आस्था #गणेशोत्सव #भगवानगणेश #विनायक #संपन्नता #सौभाग्यवर्धक #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami
For more information: www.benimadhavgoswami.com Website: www.himachalpublications.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612 Facebook: Ribhukant Goswami Instagram: Ribhukant Goswami Twitter: Ribhukant Goswami Linkedin: Ribhukant Goswami Youtube: AstroGurukulam

चतुर्थी व्रत क्यों है विशेष? जानिए इसका विज्ञान और महत्व

 हिंदू धर्म में हर तिथि और वार का अपना विशेष महत्व माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रत्येक तिथि किसी न किसी देवता या ग्रह के प्रभाव में आती है। यही वजह है कि चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की उपासना का दिन माना गया है।



तिथियों के अधिष्ठाता कौन हैं?

पुराणों में तिथियों के अधिष्ठाताओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया है:


तिथि

अधिष्ठाता देवता

1 (प्रतिपदा)

अग्नि

2

ब्रह्मा

3

गौरी

4

गणेश

5

सर्प

6

कार्तिकेय

7

सूर्य

8

वसु

9

दुर्गा

10

काल

11

विश्वेदेव

12

विष्णु

13

कामदेव

14

शिव

15

चंद्रमा

अमावस्या

पित्तर

जैसा कि देखा जा सकता है, चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता भगवान गणेश हैं, जो विघ्न और बाधाओं को हरने वाले देवता माने जाते हैं।

चतुर्थी का विशेष महत्व

चतुर्थी के दिन सूर्य और चंद्रमा का जो स्थान होता है, वह मनुष्य के जीवन में संभावित बाधाओं का संकेत देता है।

यदि इस दिन साधना, व्रत और पूजन किया जाए, तो:

  • अंतःकरण शांत और संयमित रहता है।

  • जीवन में आने वाली बाधाओं का प्रभाव कम होता है।

  • विघ्नों और नकारात्मक घटनाओं से सुरक्षा मिलती है।

इसलिए चतुर्थी व्रत को विशेष महत्व दिया गया है।

सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव

सूर्य ब्रह्मांड की प्राणशक्ति है और चंद्रमा ब्रह्मांड की मनःशक्ति का प्रतीक। दोनों ग्रहों की स्थिति तिथि के प्रभाव को तय करती है।

  • अमावस्या: चंद्रमा सूर्य की कक्षा में विलीन होता है।

  • पूर्णिमा: सूर्य और चंद्रमा आमने-सामने रहते हैं।

  • अष्टमी: दोनों ग्रह अर्ध-सम दूरी पर होते हैं।

यही उनके तालमेल तिथि के अनुसार हमारी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर असर डालता है।

काल का महत्व

हिंदू धर्म में सृष्टि और प्रलय जैसी बड़ी घटनाओं से लेकर छोटे कर्मों तक में काल को प्रधान कारण माना गया है।

मूर्ख यह सोच सकते हैं कि काल निष्क्रिय है, लेकिन वास्तव में यही कारण है:

  • अस्तित्व

  • जन्म और मृत्यु

  • वृद्धि और परिवर्तन

  • विनाश

सूर्य और चंद्रमा इस काल निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि सभी सकाम व्रत चंद्र तिथियों पर आधारित हैं

निष्कर्ष

चतुर्थी तिथि केवल एक दिन नहीं, बल्कि जीवन में बाधाओं को दूर करने और मानसिक संयम बनाए रखने का अवसर है। इस दिन गणेश व्रत और पूजा करने से न केवल मन शांत रहता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और सफलता भी आती है।

#गणेशचतुर्थी #गणेशव्रत #विघ्नहर्ता #भगवानगणेश #चतुर्थीव्रत #हिंदूधर्म #धार्मिकज्ञान #हिंदूसंस्कृति #आध्यात्मिकता #व्रतपूजन #ज्योतिषज्ञान #सनातनधर्म #चंद्रसूर्यप्रभाव #गणेशभक्ति #व्रतकमहत्व #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami
For more information: www.benimadhavgoswami.com Website: www.himachalpublications.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612 Facebook: Ribhukant Goswami Instagram: Ribhukant Goswami Twitter: Ribhukant Goswami Linkedin: Ribhukant Goswami Youtube: AstroGurukulam

रुद्रयामल तंत्र में गणपति उपासना: सरल और शीघ्र साधना का मार्ग

 हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी साधना जल्दी फल दे। कठिन साधना और लंबा समय किसी के बस की बात नहीं होती। ऐसे साधकों के लिए रुद्रयामल तंत्र में गणपति उपासना का सरल और शीघ्र सिद्धि देने वाला मार्ग बताया गया है। इसे अपनाकर व्यक्ति अपने मनोरथ को जल्दी पूरा कर सकता है।



तंत्र शास्त्र और उसका महत्व

तंत्र शास्त्र को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है:

  1. आगम

  2. यामल

  3. तंत्र

इनमें यामल ग्रंथ विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि यह शिव और शक्ति की एकता को दर्शाते हैं। रुद्रयामल इसी यामल ग्रंथों में शामिल है।

तंत्र शास्त्र का ज्ञान इतना व्यापक है कि साधक अपनी रुचि और आवश्यकता अनुसार लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि आस्तिक परंपरा में तंत्र शास्त्र को साधना और आस्था की मूल धरोहर माना जाता है।

गणपति साधना क्यों जरूरी है?

गुरु की कृपा प्राप्त कर साधना पथ पर कदम रखने वाले साधक के लिए महागणपति की उपासना अनिवार्य है।

  • यह विघ्नों को दूर करता है।

  • कठिन रास्तों को आसान बनाता है।

  • ऋद्धि-सिद्धि, विद्याप्राप्ति और मंगल कार्यों में सहायक है।

साधना के दौरान गणपति की कृपा पाना, सफलता की कुंजी मानी जाती है।

उपासना के प्रकार

रुद्रयामल में महागणपति की उपासना कई रूपों में बताई गई है:

1. पंचबालक

हेरम्ब, शरजन्मा, कार्तवीर्यार्जुन, हनुमद्, भैरव।

2. षटकुमार

हेरम्ब, शरजन्मा, महामृत्युंजय, कार्तवीर्यार्जुन, हनुमद्, भैरवी।

3. सप्तबालक

गणेश, बटुक, स्कन्द, मृत्युंजय, कार्तवीर्यार्जुन, सुग्रीव, हनुमान।

साधक अपनी क्षमता और भक्ति के अनुसार उपासना का चुनाव कर सकता है।

गणपति महामन्त्र

रुद्रयामल तंत्र के अनुसार गणपति का महामन्त्र इस प्रकार है:

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।”

जप का विधान

  1. विनियोग: मंत्र का ऋषि, छंद और देवता के अनुसार नियोजन।

  2. ऋष्यादिन्यास: मंत्र के विभिन्न अंशों को शरीर के अंगों में नियोजित करना।

  3. कर-षडगन्यास: अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और अन्य अंगों में मंत्र की स्थापना।

  4. ध्यान: बीज और प्रतीक चिन्हों के साथ मानसिक साधना।

  5. मानसोपचार पूजा: गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल की कल्पना।

जप के बाद पाठ और स्तोत्र का नियमित अभ्यास करना चाहिए।

गणपति स्तोत्र

रुद्रयामल में वर्णित गणपति स्तोत्र कलियुग में शीघ्र सिद्धि देने वाला माना गया है।

  • न्यास, होम या तर्पण की आवश्यकता नहीं।

  • केवल जप और पाठ ही पर्याप्त हैं।

  • नियमित प्रातः, मध्याह्न और संध्या पाठ से लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा भी प्राप्त होती है।

सात प्रमुख मुद्राएँ

गणपति के सामने साधक सात मुद्राएँ दिखाए –

  1. दन्त

  2. पाश

  3. अंकुश

  4. विघ्न

  5. परशु

  6. मोदक

  7. बीजापुर

इनका सही ज्ञान किसी योग्य साधक से अवश्य लें।

नामोपासना

गणपति का नाम ही विशेष शक्ति रखता है।

  • = जीवात्मा

  • = मुक्तिदशा में ले जाना

  • पति = परमात्मा में विलीन होने तक का आशीर्वाद

विघ्नविनायक के 16 नाम

बालविघ्नेशाय नमः, तरुणाय नमः, भक्तविघ्नेशाय नमः … आदि।

गणपति के 12 प्रसिद्ध नाम

सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूमकेतु, भालचन्द्र, गजानन।

इन नामों का पाठ और श्रवण सभी मांगलिक कार्यों और यात्रा में लाभकारी है।

निष्कर्ष

रुद्रयामल तंत्र में गणपति उपासना साधक के विघ्न दूर करने, सफलता पाने और मंगल कार्यों को सिद्ध करने का सर्वोत्तम मार्ग है।
साधक अपनी भक्ति और क्षमता अनुसार इसका पालन जरूर करें।

#रुद्रयामलतंत्र #गणपति_उपासना #महागणपति #गणपति_महामंत्र #विघ्नहर्ता #तंत्रसाधना #गणेशस्तोत्र #गणपति_भक्ति #गणेशमंत्र#गणेशउपासना #साधना_मार्ग #गणपति_पूजा #विघ्नविनाशक #गणेश_आशीर्वाद #श्रीगणेश #पवित्रता #ध्यान #मंत्र #पूजा #व्रत #धार्मिकअनुष्ठान #संस्कार #ऋभुकान्त_गोस्वामी #RibhukantGoswami #Astrologer #Astrology #LalKitab #लाल_किताब #PanditVenimadhavGoswami
For more information: www.benimadhavgoswami.com Website: www.himachalpublications.com WhatsApp 9540166678 Phone no. 9312832612 Facebook: Ribhukant Goswami Instagram: Ribhukant Goswami Twitter: Ribhukant Goswami Linkedin: Ribhukant Goswami Youtube: AstroGurukulam

गणेश चतुर्थी व्रत: संपूर्ण विधि, कथा और महत्व

  गणेश चतुर्थी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व रखता है। यह सिर्फ भगवान गणेश की पूजा का अवसर नहीं है, बल्कि यह संकट निवारक, विघ्न हरण और ...