Wednesday, July 29, 2020

पुत्रदा एकादशी

पुत्रदा एकादशी
यह एकादशी सावन शुक्ल पक्ष ‘पुत्रदा एकादशी’ के नाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात् वेदपाठी   ब्राह्मणों को भोजन कराके दान देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। सारा दिन भवान के वंदन, कीर्तन में बिताना चाहिए तथा रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास ही सोना चाहिए। इस व्रत को रखने वाले निःसन्तान व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
कथा - प्राचीन समय में महिष्मती नगरी में महीजित नामक राजा राज्य करते थे। अत्यन्त धर्मात्मा, शान्ति प्रिय तथा दानी होने पर भी उनके कोई सन्तान नहीं थी। इसी से राजा अत्यन्त दुःखी थे। एक बार राजा ने अपनी राज्य के समस्त ऋषियों को बुलाया तथा संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। इस पर परम ज्ञानी लोमश ऋषि ने बताया कि आपने पिछले सावन मास की एकादशी को आपने तालाब से प्यासी गाय को पानी पीने से हटा दिया था। उसी के शाप से आपके कोई सन्तान नहीं हो रही है। इसलिये आप सावन मास की पुत्रदा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखिये तथा रात्रि जागण कीजिए, पुत्र अवश्य प्राप्त होगा। ऋषि के आज्ञानुसार राजा एकादशी व्रत रहा और पुत्ररत्न प्राप्त हुआ।

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Saturday, July 25, 2020

नाग पंचमी

नाग पंचमी
श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी होती है। इस दिन नागों की पूजा करी जाती है। इस दिन घर के दोनों कोनों में नाग की मूर्ति खींचकर अनन्तर प्रमुख महानगरों का पूजन करना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तीथि के स्वामी नाग माने जाते हैं। सुंगधित पुष्प तथा दूध सर्पों को बहुत प्रिय होते हैं।
कथा - प्राचीन दन्त कथाओं से ज्ञान होता है कि किसी ब्राह्मण के साथ पुत्र वधुएं थी , श्रावण मास लगते ही 6 बहुओं भाई के साथ माइके चली गयीं परन्तु अभागी सातवीं का कोई भाई नहीं था कौन बुलाने आता? बेचारी ने अति दुखित होकर पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग को भाई के रूप याद किया। करुणायुक्त, दीनवाणी को सुनकर शेषजी बृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये, और उसे लिवाकर चले गये। थोड़ी दूर रास्ता तय करने पर उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया तब फन पर बैठाकर नाग लोक ले गये। वहां वह निश्चित होकर रहने लगी। पाताल लोक में वह जब निवास कर रही थी, उसी समय शेष जी कुल परम्परा में नागों के बहुत से बच्चों ने जन्म लिया। उस नाग बच्चों को सर्वत्र विचरण करते देख शेष नाग रानी ने उस वधू को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया कि इसके प्रकाश से तुम अन्धेरे में भी सब कुछ देख सकोगी। एक दिन अकस्मात् उसके हाथ से दीपक टहलते हुए नाग बच्चों पर गिर गया। परिणामस्वरूप उन सबकी थोड़ी पूंछ कट गई।
यह घटना घटित होते ही कुछ समय बाद वह ससुराल भेेज दी गई जब अगला सावन आया तो वह वधू दीवार पर नाग देवता को उरेह कर उनकी विधिवत् पूजा तथा मंगल कामना करने लगी। इधर क्रोधी नाग बालक माताओं से अपनी पूंछ काटने का आदिकारण इस वधू को मारकर बदला चुकाने आये थे, लेकिन अपनी ही पूजा में श्रद्धा वनत उसे देखकर वह सब प्रसन्न हुए और उनका क्रोध समाप्त हो गया। बहनस्वरूपा उस वधू के हाथ से प्रसाद रूप में उन लोगों ने दूध तथा चावल भी खाया। नागों ने उसे सर्प कुल से निर्भय होने का वरदान तथा उपहार में मणियों की माला दी। उन्होंने यह भी बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हमें भाई रूप में जो पूजेगा उसकी हम रक्षा करते रहेंगे।
नाग पंचमी की तिथि: और शुभ मुहूर्त
नाग पंचमी की तिथि: 24 जुलाई 2020
नाग पंचमी तिथि प्रारंभ: 24 जुलाई 2020 को दोपहर 02 बजकर 34 मिनट से.
नाग पंचमी तिथि समाप्‍त: 25 अगस्‍त 2020 को दोपहर 12 बजकर 02 मिनट तक.
नाग पंचमी की पूजा का मुहूर्त: 25 जुलाई 2020 को सुबह 05 बजकर 39 मिनट से सुबह 08 बजकर 22 मिनट तक.

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Tuesday, July 07, 2020

भद्रा में शुभ कर्म त्याज्य

भद्रा में शुभ कर्म त्याज्य

 प्राचीन काल में देव और दानवों के संग्राम के अवसर पर भगवान महादेव के शरीर से भद्रा की उत्पत्ति हुई। इसका मुहँ गर्दभ के समान हैं। लम्बी इसकी पूंछ है। इसके तीन पैर हैं। इसकी गर्दन सिंह की तरह हैं। मुर्दे पर यह आरूढ़ हैं। इसके सात हाथ हैं। पेट इसका शुष्क यह महा भंयकर, विकराल मुखी और बड़े - बड़े भयानक दांतो से युक्त है। इसके साथ - साथ अग्नि की ज्वाला भी चलती है।    उत्पन्न होते ही इसने राक्षसों का संहार शुरू कर दिया। देवताओं ने प्रसन्न होकर उसे विष्टि नाम दिया और इसे करणों में स्थान दिया।
जब मेष, वृष, मिथुन, और वृश्चिक का चन्द्रमा होता है तब स्वर्ग लोक में भद्रा का निवास  माना  जाता है। कन्या, तुला, धानु, और मकर राशि के चन्द्रमा में  पाताल में भद्रा रहती है। कुंभ, मीन, और कर्क, सिंह के चन्द्रमा में भद्रा पृथ्वी पर होती है। किसी भी माह के कृष्ण पक्ष में दशमी, तृतीय, सप्तमी , और चतुर्दशी को भद्रा रहती है। प्रारम्भ की 2 तिथियों में  भद्रा तिथि की अंतिम तीस घटियों में लगती है। जबकि अंतिम 2 तिथियों प्रारम्भ की तीस घड़ी भद्रा रहती हैं। शुक्ल पक्ष में एकादशी, चतुर्थी, अष्टमी और पूर्णिमा को भद्रा जाननी चाहिए। मोटे रूप में केवल पृथ्वी की भद्रा ही शुभ कार्य मेंछोड़ने योग्य है। चाहिए। लेकिन अघिकांश पण्डितों का विचार है कि यथासम्भव सभी लोकों की भद्रा में शुभ कार्य नही किये जाने चाहिए। भद्रा में शुभ कार्य करने पर तो वह कार्य सिद्ध होगा ही नही, स्वंम भी अशुभ फ़ल प्राप्त करेगा। होली और रक्षा-बन्धान पर प्रायः भद्रा रहती है। जानकारी के अभाव मेें प्रायः गांवो में भद्रा में ही सूम जिमा देते है। और रक्षा - बन्धान कर देते है, जो बहुत ही अशुभ है।
भद्रा में अपराधाी को फ़ांसी लगाना, गिरफ्तार करना, ऊँट, घोड़े और बैल को ‘ सीधा ‘ (दमन) करना और उच्चाटन आदि तांत्रिक कर्म करना अच्छा माना जाता है। 
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कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...