Thursday, May 21, 2020

वट सावित्री पूजन

                                                     वट सावित्री पूजन




ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को यह व्रत मनाया जाता है। इस दिन सत्यवान सावित्री तथा यमराज सहित पूजा की जाती है। तत्पश्चात फल का भक्षण करना चाहिए। यह व्रत रहने वाली स्त्रियों का सुहाग अचल होता है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से भी जीत लिया था।
सुवर्ण या मिट्टी से सावित्री-सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बनाकर धूप, चंदन, दीपक, फल, रोली, केसर से पूजन करना चाहिये तथा सावित्री सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।

वट सावित्री व्रत की तिथि: 22 मई 2020
अमावस्‍या तिथि प्रारंभ: 21 मई 2020 को रात 9 बजकर 35 मिनट से 
अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 22 मई 2020 को रात 11 बजकर 8 मिनट तक 

कथा - मद्र देश के राजा अश्वपति के पुत्री के रूप में सर्वगुण सम्पन्न सावित्री का जन्म हुआ। राजकन्या ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पतिरूप में वरण कर लिया। इधर यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे। आपकी कन्या ने वर खोजने में निःसन्देह भारी भूल की है। सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा भी है, परन्तु वह अल्पआयु है और एक वष्र के बाद ही उसकी मृत्यु हो जायगी।
नारद की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा विवर्ण हो गया। ‘वृथा ने होहिं  देव ऋषि बानी’ ऐसा विचार करके उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं। ऐसे अल्पआयु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं। इसलिए कोई अन्य वर चुन लो? इस पर सावित्री बोली पित जी! आर्य कन्यायें अपना पति एक बार ही वरण करती हैं। राजा एक बार आज्ञा देता है! पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं! तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अब चाहे जो हो मैं सत्यवान को ही वर स्वरूप स्वीकार करुंगी। सावित्री ने नारद से सत्यवान मृत्यु का समय मालूम कर लिया था। अन्ततोगत्वा उन दोनों को पाणिग्रहण संस्कार में बाधा गया। वह ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रात-दिन रहने लगी समय बदला, ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओं ने राज्य छीन लिया। 
नारद का वचन सावित्री को दिन प्रतिदिन अधीर करता रहा। उसने जब जाना कि पति के मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से चलने को तैयार हो गई।
सत्यवान वन में वन में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ गया। वृक्ष पर  चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह व्याकुल हो गया और वृक्ष के ऊपर से नीचे उतर आया। सावित्री अपना भविष्य समझ गई तथा अपने जंघे पर सत्यवान को लिटा लिया। उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यन्त प्रभावशाली महिषारुढ यमराज को आते देखा। धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चल दिये तो सावित्री उनके पीछे चल दी। पहले तो यमराज ने उसे दैवी विधान सुनाया परन्तु उसकी निष्ठा देखकर वर मांगने को कहा।
सावित्री बोली-मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा- ऐसा ही होगा अब लौट जाओ। यमराज की बात सुनकर उसने कहा-भ्गवान् मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं। पति-अनुगमन मेरा कत्र्तव्य है। यह सुनकर उन्होंने फिर वह मांगने को कहा। सावित्री बोली-हमारे ससुर द्युत्मसेन का राज्य छिन गया है उसे वे पुनः प्राप्त कर लें तथा धर्मपरायण हों। यमराज ने यह वर भी देकर लौट जाने को कहा, परन्तु उसने पीछा न छोड़ा। अंत में यमराज को सत्यवान का प्राण छोड़ना पड़ा तथा सौभाग्यवती को सौ पुत्र होने का वरदान भी देना पड़ा।
सावित्री को यह वरदान देरकर धर्मराज अन्तर्धान हो गये। इस प्रकार सावित्री उस बटवृक्ष के नीचे आई जहां पति का मृत शरीर पड़ा था। ईश्वर की अनुकम्पा से उनमें जीवन संचार हुआ तथा सत्यवान उठकर बैठ गये। दोनों हर्ष से पे्रमालिंगन करके राजधानी की ओर गये, तथा माता-पिता को भी दिव्य ज्योति वाला पाया। इस प्रकार सावित्री सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भागते रहे।
यह व्रत सुहागिन स्त्रियों को करना चाहिए।

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