Thursday, April 30, 2020

श्री गंगाजी की संक्षिप्त प्राचीन कथा

श्री गंगाजी की संक्षिप्त प्राचीन कथा


महाभारत (वनपर्व, 109वां अध्याय) जब राजा भगीरथ ने सुना कि महात्मा कपिल ने हमारे पितरों को भस्म कर दिया था और उनको स्वर्ग नहीं मिला, तब राजा ने अपना राज्य मंत्री को प्रदान करे, हिमालय पर जाकर एक सहस्त्र वर्ष पर्यन्त घोर तप किया। जब गंगा प्रकट हुई तक भगीरथ ने उनसे अनुरोध किया कि कपिल के क्रोध से 60000 गर के पुत्र, जो हमारे पूर्व पुरुष (पुरखे) थे, जल गये है। आप अपने अपने पवित्र जल से स्नान कराकर स्वर्ग प्राप्त करा दीजिये। गंगा ने इस पर उत्तर दिया कि तुम शिवजी की आराधना कर उनको प्रसन्न करो। वे ही स्वर्ग से गिरती हुए मुझको धारण कर सकते हैं-अन्य किसी की भी शक्ति से मुझे धारण करने की क्षमता नहीं है। राजा भगीरथ ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने के बाद शिवजी को प्रसन्न किया। शिवजी ने प्रसन्न हो राजा को वर प्रदान करते हुए अपने सिर का गंगा को धारण करना स्वीकार किया।
शिवजी के यह वर प्रदान करते ही हिमाचल की ज्येष्ठ कन्या गंगा बड़े वेग से स्वर्ग से गिरी और शिवजी ने अपने सिर पर उन्हें भूषण के समान धारण किया। तीन धारावली गंगा शिवजी के सिर पर मोती की माला के समान शोभा पाने लगी। पृथ्वी पर आने के बाद गंगाजी ने राजा सगर से पूछा कि कहो राजन! अब मैं किस ओर चलूं? भगीरथ ने उस और प्रस्थान किया जिस ओर राजा सगर के 60000 पुत्र मरे थे। गंगा राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चली गयी। शिवजी गंगा को धारण करने के बाद कैलाश की ओर चले गये। राजा भगीरथ गंगा को समुद्र तक ले आए। गंगा ने समुद्र को (जिसको अगस्तमुनि ने पी लिया था) अपने जल से पूर्व कर दिया। राजा भगीरथ ने अपने पुरुषों को जल प्रदान कर उन्हें स्वर्ग पहुंचा दिया।
वाल्मीकि रामायण (बाल कांड 35वां  सर्ग)-हिमालय की पहली कन्या गंगा और दूसरी उमा है। जब देवताओं ने अपने कार्य सिद्धि के लिये हिमाचल से गंगा को मांगा तक उसने त्रैलोक्य के हित की कामना से गंगा को दे दिया। गंगा आकाश को गयी। हिमवान ने अपनी दूसरी कन्या उमा का विवाह रूद्र से कर दिया।
वाल्मीकि रामायण (बाल कांड 42वां सर्ग)-अयोध्या के राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गोकर्ण क्षेत्रा में जाकर सहस्त्र वर्ष तक तपस्या की। ब्रह्मा प्रकट हुए। भगीरथ ने यह वर गांगा कि राजा सगर के पुत्रों की भस्म गंगा के जल से बहाई जाय। ऐसा ही होगा, यह कहते हुए ब्रह्मा ने भगीरथ से कहा कि तुम गंगा को धारण करने के लिये शिवजी को  प्रार्थना करो। गंगा का आकाश से गिरना पृथ्वी से नहीं सहा जाएगा।
तब राजा भगीरथ ने एक वर्ष तक एक अंगूठे से खड़े होकर शिव की आराधना की। उपापति प्रसन्न होकर प्रकट होते हुए बोले-‘राजन् मैं अपने मस्त पर गंगा को धारण करूंगा।’ उकेस बाद गंगा विशाल रूपा और दुःसह वेग से आकाश से शिवजी के मस्तक पर गिरी। गंगा ने यह सोचा था कि वे अपने वेगवती धाराओं से शिवजी को लिये हुए पाताल लोक को चली जायंगी। किन्तु गंगा की यह धारणा गलत निकली। गंगा के इन गर्वपूर्ण विचारों को जान कार अन्तर्यामी शिव ने गंगा के गिरते ही अपनी जटा में गंगा को छिपा लिया। गंगा शिवज के मस्तक पर गिरने के बाद अनेक वर्षों तक शिवजी के जटामंडल में ही घूमती रही।
तब राजा भगीरथ ने कठोर तप करके शिवजी को फिर प्रसन्न किया। शिवजी ने हिमालय के बिन्दु सरोवर के निकट गंगा को अपने जटा से छोड़ दिया। छोड़ते ही गंगा के 7 सोते हो गये। जिन में से आह्लादनी, पावनी और नालिनी ये तीन धाराएं पूर्व की ओर तथा सुचक्षु सीता और सिंधु ये तीन धाराएं पश्चिमी दिशा में गयी। सातवीं धारा राजा भगीरथ के रथ के पीछे चली। जिस मार्ग से राजा जा रहे थे उसी मार्ग से उनके पीछे-पीछे गंगा जी समुद्र तक पहुंची। राजा भगीरथ अपने पूर्व पुरुषों (पुरखों) की भस्म के निकट गंगा को ले गये। जब गंगा ने अपने जल से उस भस् राशि का ेबहाया, तब वे सब पाप मुक्त होकर स्वर्ग को गये। भगीरथ के पीछे-पीछे चलने एवं भगीरथ द्वारा ही पृथ्वी पर आने के कारण ही श्री गंगा जी का नाम भागीरथी विख्यात हुआ।
लिंग पुराण (6वां अध्याय)-हिमालय के मैनाक और क्रौंच नामक दो पुत्रा तयो गंगा और उमा नामक दो कन्यायें थीं।
पद्य पुराण ( पाताल खण्ड 82 वां अध्याय)- वैशाख शुक्र सप्तमी को जन्हु मुनि ने गंगा जी को पी लिया था और उसी दिन पिफर अपने दाहिने कान के छिद्र से बाहर निकाल दिया। उसी से इस तिथि का नाम गंगा सप्तमी हुआ। जैसे देवताओं में विष्णु सर्वोपरि हैं उसी प्रकार सम्पूर्ण नदियों में गंगा जो श्रेष्ठ है।
देवी भागवत (9वां स्कन्दधः6 से 8 अध्याय तक) तथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण ( प्रकृति खण्ड-6-7 अध्याय)-विष्णु भगवान की तीन स्त्रियां थीं-लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा। एक समय गंगा पर विष्णु का अधिक प्रेम देखकर सरस्वती क्रोध वश गंगा के केश पकड़ने को तैयार हुई। लक्ष्मी ने दोनों का बीच बचाव किया। इस पर सरस्वती ने लक्ष्मी पर क्रोध पर शाप दिया कि तुम वृक्ष एवं नदी रूप होगी तथा गंगा को भी शाप दिया कि तुम भी नदी होकर पृथ्वीतल में जाओंगी। इस पर गंगा ने क्रोधित होकर सरस्वती अपनी कला से नदी रूप हुई जो भरतखण्ड में अपने से भारतीय कहलायी और आपव विष्णु के निकट स्थिर रहीं। गंगा जी भगीरथ के ले आने से भरतखण्ड में आयी और भागीरथी कहलायीं। शिवजी ने गंगा को अपने सिर में धारण कर लिया। लक्ष्मी जी अपनी कला से पद्यावती नदी होकर भारत में आयीं जो पद्या या पद्दा कहलायी। लक्ष्मी जी स्वयं पूर्ण अंश से विष्णु भगवान के समीप ही रहीं। उसके उपरान्त वह धर्मध्वज की कन्या होकर तुलसी नाम से प्रसि( हुई। ये सब कलियुग के पांच सहस्त्र वर्ष बीतने तक भरतखण्ड में रहेंगी। पश्चात नदी रूप त्याग कर सब विष्णु भगवान के स्थान पर चली जायेंगी।
कूर्म पुराण (ब्राह्मी संहिता, उत्तरार्द्ध, 36वां अध्याय) हिमालय पर्वत तथा गंा नदी सर्वत्र पवित्र हैं। सत्ययुग में नैमिशारण्य, त्रेता में पुष्कर, द्वापर में कुरुक्षेत्र तथा कलियुग में गंगा जी तीर्थों में प्रधान है।
अग्नि पुराण (110वां अध्याय) गंगा सर्वदा सब जीवों को गति देने वाली है। जब तक मनुष्य की हड्डी गंगा जी में रहती है तब तक वह स्वर्ग में निवास करता है। गंगा जल के स्पर्श, पान और दर्शन तथा गंगा शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य की सद्गति होती है। गंगाद्वार, प्रयाग तथा गंगासागर इन तीन स्थानों में गंगा जी का मिलना दुर्लभ है।
हरिद्वार के समीप ही ऋषिकेश एवं लक्ष्मणझूला भी दर्शनीय स्थान हैं जहां समय-समय पर ऋषि, साधु, महात्मा आदि के दर्शन प्राप्त होते रहते हैं।

Wednesday, April 29, 2020

|| आज का पंचांग ||29/04/2020।।

|| आज का पंचांग ||
29/04/2020
शुरू कीजिए अपनी दिनचर्या गुरु ऋभुकान्त गोस्वामी जी द्वारा रचित पंचांग के साथ।
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Tuesday, April 28, 2020

Aaj ka Panchang

28/04/2020
शुरू कीजिए अपनी दिनचर्या गुरु ऋभुकान्त गोस्वामी जी द्वारा रचित पंचांग के साथ।
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Sunday, April 26, 2020

अक्षय तृतीया

|| अक्षय तृतीया  ||
आप सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं।
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से पुकारा गया ह। इस दिन किये गये होम, जप, तप स्नान आदि अक्षय रहते हैं, ऐसी मान्यता है। यह तिथि परशुराम का जन्म दिन होने के कारण ‘परशुराम’ तीज भी कही जाती है। त्रैतायुग का आरम्भ इसी तिथि से हुआ है। इस दिन गंगा स्नान का बड़ा ही महात्म्य है। इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए, कलश, पंशा, खड़ाऊं, छाता, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा आदि फल, शक्कर आदि पदार्थ ब्राह्मण को दान करना चाहिए उसी दिन चारों धामों में उल्लेखनीय श्री बद्रीनाथ धाम के पट खुलते हैं। इस दिन भक्त जनों को श्री बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रख के मिश्री तथा चने की भीगी दाल से भोग लगाना चाहिए।
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Thursday, April 16, 2020

learn lalkitab online

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Thursday, April 09, 2020

लाल किताब के अनुभव सिद्ध टोटके

  1. लाल किताब के टोटके उत्तर भारत में ही नहीं, अब दक्षिण में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। इस लाल किताब के लेखक पं. रूपचन्द्र जोशी जी ने इस पुस्तक में ज्योतिष और हस्त रेखा दोनों का फलादेश दिया है और ग्रह के कष्ट निवारण हेतु कुछ नुस्खों-टोटकों (Remedial measure) का वर्णन किया है उनमें से कुछ जो मेरे इस क्षेत्र में कई वर्षो के शोध कार्य से लाभप्रद सिद्ध हुए हैं, याने वास्तविक प्रकरणों में लाभप्रद सिद्ध हुए हैं, उन्हीं Remedial measure का वर्णय इस लेख में करूंगा जिससे जन साधारण उससे लाभान्वित हो सकें।
लाल किताब के लेखक की मान्यता है, कि जन्म कुन्डली देखते समय हमें फलादेश कहने के लिए व्यक्ति की जन्म लग्न कुछ भी हो उसके लग्न में मेष, द्वितीय भाव में वृषभ, तृतीय भाव में मिथुन, चतुर्थ में कर्क, पंचम में सिंह, छठे में कन्या, सातवें में तुला, आठवें में वृश्चिक, नवे में धनुः दसवें में मकर, ग्वारहवें में कुंभ और बारहवें में मीन राशि आदि मानकर फलादेश बताने से सटीक रहेगा। इसी प्रकार लाल किताब के रचयिता ने प्रथम भाव को सूर्य का भाव माना है, द्वितीय भाव को वृहस्पति का, तीसरा भाव मंगल का , चोथा भाव चंद्र का,पंचावा भाव वृहस्पति का,छटा भाव केतु का, सप्तम भाव शुक्र और बुध दोनों का, अष्टम भाव मंगल और शनि दोनों का, नवम पुनः गुरू का, दशम शनि का, एकादश पुनः गुरू का और द्वादश भाव राहु का मानकर फलादेश कहा गया है।
उपरोक्त दोनों मूल सिद्धान्तों को मानकर लाल किताब में फलादेश कहा गया है। उपरोक्त ज्योतिष के सिद्धातों के अलावा हस्त रेखा के सिद्धान्तों का भी पालन किया गया है। उसके अनुसार सभी बारह राशियों और ‘‘नवग्रहों’’ के स्थान हाथ में दर्शाए गए है वह हाथ का चित्र यहां सर्व साधारण की जानकारी के लिए दिया जा रहा है। उनके हस्त रेखा संबंध सिद्धान्तों का विश्लेषण अन्य लेख में करूंगा जिससे यह लेख विषय वस्तु के अनुरूप रहे।
लाल किताब के रचचिता के अनुसार यदि कोई ग्रह जन्म पत्री में पीड़ित हो तो उसके कष्ट निवारण हेतु उपाय इसमें दर्शाए गए है उदाहरण के तौर पर एक प्रसिद्ध कम्प्यूटर इंजीनियर की पत्रिका का परीक्षण करें। उनकी जन्म दिनांक 13 दिसम्बर, 1956 है। उनकी जन्म लग्न सिंह है और राशी मेष है। चतुर्थ स्थान में इनकी जन्म लग्न का स्वामी सूर्य, राहू और शनि द्वारा पीड़ित है। यहीं सूर्य, राशी से पंचम स्थान का स्वामी होकर अष्टम में पीड़ित है। अतः चंद्र के संबंधित वस्तुऐं दान करना उत्तम रहता है और चंद्र के लिए श्री शंकर भगवान की आराधना करना, शिव चालीसा का पाठ करना लाभ दायक रहेगा। इनके लिए सूर्य योग कारक है, अतः उसका पीड़ित रहना ठीक नहीं है। सूर्य का नग माणिक भी इन्हें लाभ देगा। इससे सूर्य बलवान होगा। 

इसी प्रकार एक प्रसिद्ध उद्योगपति जिनकी जन्म तारीख 30 जुलाई, 1965 है और धनु लग्न, सिंह राशी में जन्म हुआ है। इनका योगकारक गुरू पीड़ित है वह राहू के साथ छठे स्थान में हैं। अतः बुध से संबंधित वस्तुओं का दान करने से लाभ होगा। पीपल के वृक्ष को गमले में लगाकर पालना या पीपल को जल चढ़ाने से लाभ होगा। घर के सभी सदस्यों से पैसे इकट्ठें करके मंदिर में दान करने से लाभ होगा। गुरु इनके लिये योगकारक है, अतः पीला पुखराज भी लाभकारी रहेगा।
ग्रह के पीड़ित रहने पर उक्त ग्रह से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। सूर्य पीड़ित होने के समय एक टोटका यह भी है कि वह व्यक्ति मुंह में मीठी वस्तु खाकर ऊपर से पानी पीए। यह टोटका बहुत सरल है और इसके करने से सूर्य को चंद्र एवं मंगल जैसे मित्रों की सहायता से बल मिलेगा और सूर्य जनित कष्ट कम होंगे।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि उपरोक्त महानुभाव को बुध संबंधित वस्तुओं का दान करना या उन्हें पानी में बहा देने से लाभ होगा।
उपरोक्त महाशय के लिए लाल किताब के अनुसार मंगल बहुत योगकारी बन गया है। अतः मंगल की दशा-अंतर दशा बहुत उत्तम फल देगी। लाल किताब की थ्योरी के अनुसार इनका केतु मोक्ष कारक सिद्ध होगा वह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति है। इनका चंद्र भी बुध के साथ प्रसन्न नहीं है। अतः शिव की आराधना लाभकारी रहेगा। इनकी मूल पत्रिका में शनि ने ‘‘शश’’ नामक ‘‘पंचमहापुरुष राजयोग’’ बनाया है और मंगल ने कुलदीपक योग बनाया है, परंतु लाल किताब के अनुसार इनका मंगल अधिक बलशाली साबित हुआ है। अतः यह यदि लाल मूंगे की अंगूठी धारण करें तो बहुत उन्नति कारक सिद्ध होगी।
अब मैं एक भाग्यशाली विद्वान महिला की पत्रिका का विशलेषण लाल किताब के अनुसार करूंगा। उनकी जन्म तारीक्ष 5 मई, 1958 है तथा मेष लग्न, वृश्चिक राशि है। यह उनकी आश्चर्यजनक पत्रिका है क्योंकि इस पत्रिका का फलादेश बताने में हमें, लाल किताब के अनुसार भी यह पत्रिका ऐसी ही रहेगी। इनका योग कारक गुरु सप्तम में पीड़ित है। अतः इन्हें शुक्र से संबंधित दान करना चाहिए- शुक्र का मंत्रजाप करना चाहिए। इससे जीवन में उत्तम फल मिलेगा। श्री महालक्ष्मी जी की पूजा अर्चना बहुत लाभकारी रहेगी।
किसी को सूर्य पीड़ित होने पर हृदय रोग हो सकता है, गवन्र्मेन्ट से हानि, आॅखों में कष्ट, पेट की बीमारियां, हड्डी की प्राबलम हो सकती है। ऐसे प्रकरण में गुड़, गेहूं, ताॅबा, लाल वस्त्र, लाल फूल दान करने से लाभ होता है। सूर्य को श्री विष्णु भगवान का स्वरूप माना है। अतः श्री विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करने से लाभ होगा।
यदि किसी का सूर्य कर्म स्थान (दशम) में पीड़ित हो तो यह टोटका है कि बहते पानी में तांबे का सिक्का बहा देना लाभकारी रहेगा। प्रत्येक भाव में सूर्य अनिष्टकारी होने पर भिन्न-भिन्न टोटके दिए गए है। सभी का वर्णन करना संभव नहीं है। यही सिद्धान्त सभी ग्रहों के लिए है।
इसी प्रकार यदि चंद्र पीड़ित हो तो मां का बीमार रहना, मानसिक चिन्ता रहना, अस्थमा रोग आदि कष्ट हो सकते हैं। उसके लिए चांदी को को बहते पानी में बहा देना। दूसरा टोटका यह भी है कि रात को दूध या पानी का एक बर्तन सिरहाने रखकर सो जावें और अगले सवेरे वह कीकर के वृक्ष पर डाल दें। चंद्रमा के कष्ट को दूर करने के लिए श्री शिव आराधना लाभकारी रहेगा। प्रत्येक भाव में पीड़ित चंद्र के लिए भिन्न-भिन्न टोटके है- जैसे, चंद्र तृतीय भाव में पीड़ित हो तो हरे रंग का कपड़ा कन्याओं को दान में देना आदि और चतुर्थ में चंद्र पीड़ित हो तो रात्रि को दूध नहीं पियें और हो सके तो सोमवार को पंडितो को दूध पिलावें।
यदि मंगल अनिष्टकारी हो तो मीठी रोटी तंदूर की दान करें या रेवड़िया पानी में बहा दें, या मीठा भोजन दान करें। मंगल के लिए श्री बजरंगबली जी की आराधना करें और प्रसाद चढ़ाकर ग्रहण करें आदि।
बुध अनिष्टकारी रहने पर कौड़ियों को जलाकर उनकी राख नदी में उसी दिन बहा दें और तांबे के पैसे में छेद करके पानी में बहा दें या बुध से संबंधित वस्तुएं दान करें। जैसे हरे मूंग, हरा कपड़ा, चांदी। बुध के कष्ट दूर करने के लिए श्री दुर्गा जी की आराधना ‘‘श्री दुर्गा सप्तशती’’ का पाठ करना बहुत लाभप्रद रहेगा। यदि हो सके तो नाक छिदवावें। महिलाएं यह काम सरलता से कर सकती है। यदि बुध के कारण कोई रोग हो तो सीता-फल किसी देवी के मंदिर में दान करें।
गुरु के अनिष्टकारी रहने पर परिवार के सभी सदस्यों से पैसा जमा करके मंदिर में दान करें। पीपल का वृक्ष गमले में लगाकर परिक्रमा करें। गुरु की वस्तुएं जैसे चनादाल, हल्दी साबित, केसर, तांबा (सोने की जगह) पीले फूल, केशरिया कपड़ा गुरुवार के दिन दान करें आदि।
शुक्र के अनिष्टकारी होने पर अपने भोजन में से कुछ भोजन निकाल कर गायों को खिलावें। गौंवों को घास (चरी) खिलावें। शुक्र से संबंधित वस्तुएं दान करें और श्री महालक्ष्मी जी पूजा आराधना करें।
शनि कष्टकारी होने पर मछलियों को आटा खिलाना, कौवों को अपने खाने में से कुछ खिलाना लाभ प्रद रहता है। शनि से संबंधित वस्तुएं दान करें और श्री शिवजी की पूजा आराधना करें।
केतु के अनिष्टकारी रहने पर काले कुत्ते को खाना खिलाना श्री गणेश जी की पूजा आराधना करना लाभप्रद रहता है। यदि आपके लड़के का व्यवहार आपके साथ ठीक नहीं है तो, उपरोक्त विधि से कुत्ते को रोटी खिलाना और मंदिर में कंबल दान करें।
राहू यदि किसी जन्म पत्रिका में अनिष्टकारी हो तो नारियल पानी में बहा दें और जौ को दूध में धोकर पानी में बहाने से, कोयले को पानी में बहाने से लाभ होगा। राहू की वस्तुएं ‘‘स्वीपर’’ को दान में देने से भी लाभ होगा। यदि किसी पर क्रीमिनल प्रकरण चल रहा हो तो वह भी उपरोक्त विधि करें प्रकरण में लाभ होगा।
उपरोक्त उपाय विधि दिन में ही करें रात में नहीं करें।
उपरोक्त लेखक की मान्यता यह भी है कि यदि किसी को शनि पंचम स्थान में हो तो मकान बनाते समय उसके पुत्र को कष्ट होगा। यह सिद्धान्त उसके अपने मकान पर लागू होगा, उसके पुत्र द्वारा बनाए मकान पर लागू नहीं होगा।
यदि किसी पत्रिका में सूर्य-शनि साथ हों और पत्नी का स्वभाव ठीक नहीं हो तो पत्नी के वजन के बराबर ज्वार दान करें इससे लाभ होगा।
लेखक के सिद्धान्त बहुत अच्छे है और उनके द्वारा बताए गए उपाय (टोटके) रेमेडियल मेजर अधिकतर प्रकरणों में बहुत लाभकारी सिद्ध हुए है। यह मैंने अपने कई वर्षो के शोध कार्य से वास्तविक प्रकरणों में अजमा कर देखें है और लाभप्रद सिद्ध हुए है।

कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...