Saturday, August 15, 2020

भाद्रपद संक्रान्ति

भाद्रपद संक्रान्ति
 तारीख 16 अगस्त रविवार की रात्रि 7:10 पर कुंभ लग्न में प्रवेश करेगी वारा अनुसार घोरा तथा नक्षत्र अनुसार महोदरी नामक यह संक्रांति कपटी एवं दुष्ट लोगों के लिए लाभप्रद रह सकती है। 45  मुहूर्ति इस संक्रांति का पुण्य काल दोपहर 12:46 बाद प्रारंभ होगा रविवारी संक्रांति होने से राजनीतिक क्षेत्रों में अस्थिरता एवं अशांति होने के संकेत हैं , कहीं अनाज की कमी के कारण दुर्भिक्ष एवं अराजकता व्याप्त हो सकती है। राजनेताओं में परस्पर विग्रह एवं टकराव पैदा हो सकते हैं। अनाज भी तेल आदि पदार्थों में अधिक तेजी के कारण प्रजा पीड़ित रह सकती है।
 संक्रांति फल-- मेष, वृष, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर,   कुंभ ,मीन राशि वालों के लिए लाभप्रद रहेगी ।
 शेष राशि वालों को कष्ट रह सकता है।
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Tuesday, August 11, 2020

श्री कृष्णजन्माष्टमी

श्री कृष्णजन्माष्टमी
भाद्रपद कृष्णाष्टमी को ‘जन्माष्टमी’ उत्सव मनाया जाता है। इसी तिथि को श्री कृष्ण का मथुरा नगरी में कंस के कारागार में जन्म हुआ था। इस दिन कृष्ण जन्मोत्सव के उपलक्ष में मन्दिरों में जगह-जगह कीर्तन तथा झांकियां सजाई जाती हैं। बारह बजे रात्रि तक व्रत रखकर भगवान का प्रसाद लिया जाता है। दूसरे दिन प्रातः ही इसी उपलक्ष में ‘नन्द महोत्सव’ भी मनाया जाता है। भगवान के ऊपर  हल्दी, दही, घी, तेल आदि छिड़क कर आनन्द से पालने में झुलाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन उपवास करने से मनुष्य सात जन्मों के पापों से छूट जाता है। 
कथा - द्वापर युग में जब पृथ्वी पाप तथा अत्याचारों के भार से दबने लगी तो पृथ्वी गाय का रूप बनाकर सृष्टिकर्ता विधाता के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं के सम्मुख पृथ्वी की दुखान्त कथा सुना गये। तब सभी देवगण निर्णयार्थ विष्णु के पास चलने का आग्रह किये और सभी लोग पृथ्वी को साथ लेकर और क्षीर सागर पहुंचे जहां भगवान विष्णु अनन्त शय्या पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हुई तथा सबसे आने का कारण पूछा। तब दीन वाणी में पृथ्वी बोली-महाराज! मेरे ऊपर बड़े-बड़े पापाचार हो रहे हैं, इसलिये इसका निवारण कीजिये। यह सुनकर भगवान बोले-मैं ब्रजमण्डल में वसुदेव गोप की भार्या, कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। तुम लोग ब्रजभूमि में जाकर यादवकुल में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अन्तध्र्यान हो गये। वही देवता तथा पृथ्वी ब्रज में बाकर यहुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोपियों के रूप में पैदा हुये।
कुछ दिन व्यतीत हुये, वसुदेव नवविवाहित देवी तथा साले कंस के साथ गोकुल जा रहे थे- तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि हे कंस! जिसको तू अपनी बहन समझकर साथ ले जा रहा है, उसी के गर्भ का आठवां पुत्र तेरा काल होगा? कंस यह सुनते ही तलवार निकालकर देवकी को मारने दौड़ा। तब सवुदेव ने हाथ जोड़कर कहा- कंसराज! यह औरत बेकसूर है इसे आपका मारना ठीक नहीं। पैदा होते ही मैं आपको अपनी सब संतानें दे दिया करुंगा तो कौन आपको मारेगा? कंस उनकी बात मान गया तथा उन्हें जेल में ले जाकर बन्द कर दिया। इसी रीति से वसुदेव अपने सभी पुत्रों को देते गये तथा पापिष्ट कंस मारता गया। देवकी के सात पुत्रा मारे जाने के पश्चात् आठवें गर्भ की बात जब कंस को मालूम हुई, तब विशेष कारागार में डालकर पहरा लगवा दिया। भादों की भयानवी रात के समय जब शंख, चक्र, गदा, पद्यमधारी भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो चारों ओर प्रकाश फैल गया।
लीलाधारी भगवान की यह लीला देख वसुदेव-देवकी उनके चरणों में गिर पड़े। भगवान कृष्ण ने बालक रूप में होकर अपने को गोकुल नन्द घर पहुंचाने तथा वहां से कन्या लाकर कंस को सौंपने का आदेश दिया। जब वसुदेव कृष्ण को गोकुल ले चलने को तैयार हुये तभी उनके हाथ की हथकड़ियां तड़तड़ा कर टूट गई। दरवाजे अपने-आप खुल गये। पहरेदार सोये हुये नजर आये। वसुदेव ने जब कृष्ण को लेकर यमुना में प्रवेश किया तो जमुना बढ़ने लगीं, यहां तक कि गले को छू लिया। चरण चरण-कमल छूने को लालायित जमुना कृष्ण द्वारा पैर लटका देने पर बिलकुल घट गई। वसुदेव यमुना पार कर गोकुल गये वहां खुले दरवाजे तथा सोई हुई यशोदा को देखकर बालक कृष्ण को वहीं सुला दिया और सोई हुई कन्या को लेकर चले आये। जब वसुदेव कन्या लेकर आ गये तो जेल के दरवाजे पूर्ववत बन्द हो गये। वसुदेव देवकी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गई तथा कन्या रोने लगी। जगे हुए प्रहरी गणां ने कन्या रुदन सुनकर तुरन्त कंस के पास खबर कर दी। यह सुनते ही कंस ने कन्या को लेकर पत्थर पर पटकना चाहा। लेकिन वह हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई तथा वहां पहुंचते ही साक्षात् देवी के रूप में होकर बोली- हे कंस! तुम्हें मारने वाला तो गोकुल में बहुत पहले ही पैदा हो चुका है। यही भगवान कृष्ण बड़े होने पर, अकासुर, पूतना तथा क्रूर कंस जैसे राक्षसों का वध कर पृथ्वी तथा भक्तों की रक्षा की।
आरती श्रीकृष्ण जी की
आरती श्री कृष्ण की कीजै।। टेक......
शंकटासुर को जिसने मारा। तृणावर्त को आय पछारा।।
उनके गुण का वर्णन कीजै।। आरती...........
यमुनार्जुन वट जिसने तारे। बकासुरादि असुर जिन मारे।।
उनकी कीरति वर्णन कीजै।। आरती..........
जिसने घेनुक प्राण निकारे।कलियानाग नाथि के  डारे।।
उसी नाथ का कीर्तन कीजै।। आरती..............
व्योमासुर को स्वर्ग पठाया। कुब्जा को जिसने अपनाया।।
दयावान के सुपरथ हूजै।। आरती...............
वृषभासुर सेजिसने मारे। चारुणादिक सभी पछारे।।
आरती यदुनन्दन की कीजै।। ..............
जिसनेकेसी केश उखारे। कंसासुर के प्राण निकारे।।
आरती कंस हनन की कीजै।। आरती....
जिसने द्रोपदि लाज बचाई। नरसीजी का भात चढ़ाई।।
आरत भक्त वक्षल की कीजै।। आरती...............
भक्तन के जो है रखवारे। रनवीरा’ मन बसनेवो।।
उनहां पर बलिहारी हुजै।। आरती....
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Sunday, August 02, 2020

रक्षा-बन्धन (श्रावणी)

रक्षा-बन्धन (श्रावणी)
यह त्यौहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई बहन को स्नेह की डोर में बांधने वाला त्यौहार है। इस दिन बहन-भाई के हाथ में रक्षा बांधती है तथा मस्तक पर टीका लगाती है। रक्षा बंधन का अर्थ है (रक्षा$बंधन) अर्थात् किसी को अपनी रक्षा के लिये बांध लेना। राखी बांधते समय बहन कहती है- हे भैया! तुम्हारे शरण में हूं मेरी सब प्रकार से रक्षा करना। एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई तथा खून गिरने लगा। द्रौपदी ने जब देखा तो वह तुरन्त धोती का कोर फाड़कर भाई के हाथ में बांध दिया। इसी बन्धन के ऋणी श्रीकृष्ण ने दुःशासन द्वारा चीर खींचते समय द्रौपदी की लाज रखी थी।
मध्य कालीन इतिहास में एक ऐसी घटना मिलती है जिसमें चित्तौड़ की हिन्दूरानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी। हुमायूं ने कर्मवती की राखी स्वीकार कर ली और उसकी सम्मान रक्षा के लिये गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।
कथा - एक बार युधिष्ठर ने कृष्ण भगवान से पूछा- अच्युत! मुझे रक्षा बन्धन की वह कथा सुनाइये जिससे मनुष्यों की प्रेत बाधा तथा दुःख दूर होता है। इस पर भगवान ने कहा- हे पाण्डव श्रेष्ठ! प्राचीन समय में एक बार देवों तथा असुरों में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ इस संग्राम में देवराज इन्द्र की पराजय हुई। देवता कान्ति विहीन हो गये। इन्द्र रणस्थल छोड़कर विजय की आशा को तिलांजलि दे-देकर देवताओं सहित अमरावती में चला गया।
विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। उसने राजपद से घोषित कर दिया कि इन्द्र देव सभा में न आयें तथा देवता एवं मनुष्य यज्ञ-कर्म न करें। सब लोग मेरी पूजा करें। जिसको इसमें आपत्ति हो वह राज्य छोड़कर चला जाय। दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ, वेद पठन-पाठन तथा उत्सव समाप्त कर दिये गये। धर्म के नाश होने से देवों का बल घटने लगा। इधर इन्द्र दानवों से भयभीत हो, बृहस्पति को बुलाकर कहने लगा-हे गुरु! मैं शत्रुओं से घिरा हुआ प्राणान्त संग्राम करना चाहता हूं। होनहार बलवान होेती है, जो होना होगा होकर रहेगा। पहले तो बृहस्पति ने समझाया कि कोप करना व्यर्थ है परन्तु इन्द्र की हठवादिता तथा उत्साह देखकर रक्षा विधान करने को कहा।
श्रावण पूर्णिमा के प्रातःकाल की रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
उक्त मन्त्रोच्चारण से बृहस्पति (देवगुरु) ने श्रावणी-पूर्णिमा के ही दिन रक्षा विधान किया। सह धर्मिणी इन्द्राणी के साथ वृत्र संहारक इन्द्र ने बृहस्पति की उस वाणी का अक्षरण पालन किया। इन्द्राणी ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराके इन्द्र के दांये हाथ में रक्षा की पोटली बांध दिया। इसी के बल पर इन्द्र ने दानवों पर विजय प्राप्त किया।

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कल्कि जयंती 2025: भगवान कल्कि के आगमन की प्रतीक्षा का पावन पर्व

  हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अ...