उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता प्रत्येक चंद्रग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है। जिसे चंद्र मालिन्य अथवा इंग्लिश में Penumbra भी कहा जाता है ।उसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया दूसरे शब्दों में भूभा Umbra में प्रवेश करता है । तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है। भूभा में चंद्रमा के संक्रमण काल को चंद्र ग्रहण कहा जाता है ।
ध्यान रहे कई बार पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया उपच् प्रवेश कर ,उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है। इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का केंद्र केवल धुंधला पड़ता है काला नहीं होता है इस धुंधलेपन को साधारण नंगी आंख से देख पाना संभव नहीं होता है ।धर्म शास्त्रकारों ने इस प्रकार के उप-ग्रहणों (उपच्छाया ) में चंद्र बिम्ब पर मालिन्य मात्र छाया आने के कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा ।प्रत्येक चंद्रग्रहण घटित होने से पहले तथा बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की इस उपच्छाया से गुजरना पड़ता है जिसे ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती ।
केवल चंद्रमा की आकृति थोड़ी धुंधली सी हो जाती है अतः धर्मनिष्ट एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण कोटि में ना मानते हुए एवं ग्रहण संबंधी पथ्य -अपथ्य का विचार ना करते हुए पूर्णिमा संबंधित साधारण व्रत ,उपवास ,दान , सत्यनारायण व्रत आदि का अनुष्ठान करना चाहिए। 5 जून 2020 शुक्रवार को उपच्छाया चंद्रग्रहण घटित होने गठित होंगे यह उपच्छाया ग्रहण भारत में देखा जा सकेगा । इस बात का ध्यान रहे कि यह छाया ग्रह वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता है ।इस उपच्छाया ग्रहण की समय अवधि में चंद्रमा की चांदनी में केवल कुछ धुंधलापन आ जाता है इस उपच्छाया ग्रहण के सूतक स्नानादि महात्म्य का विचार भी नहीं होगा ।
इस उपच्छाया चंद्र ग्रहण का स्पर्श आदि काल इस प्रकार है स्पर्श ( Enters Penumbra) 23:16
मध्य ( परमग्रास) 24:55
मोक्ष ( Leaves Penumbra) 26:34
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